मनोविकारों का विज्ञान: अन्याय के खिलाफ गुस्सा कितना जायज?
इलस्ट्रेशन: योगेंद्र आनंद

मनोविकारों का विज्ञान: अन्याय के खिलाफ गुस्सा कितना जायज?

गुस्से के पीछे का मुख्य उद्देश्य स्थिति को बदलना है। आमतौर पर लोग तब गुस्सा महसूस करते हैं जब वे किसी अन्याय का सामना करते हैं और उन्हें लगता है कि वे इस बारे में कुछ कर सकते हैं
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लगभग सभी धर्मों में कोध्र को इंसान का मनोविकार या पाप माना गया है। लेकिन वैज्ञानिक क्रोध के अलग-अलग पहलुओं पर भी अध्ययन कर रहे हैं। इस बारे में डाउन टू अर्थ की साइंस रिपोर्टर रोहिणी कृष्णामूर्ति ने ओल्गा क्लिमेकी से बात की, जो स्विट्जरलैंड के जिनेवा विश्वविद्यालय में मनोवैज्ञानिक, तंत्रिका विज्ञानी और वरिष्ठ शोधकर्ता हैं। ओल्गा के तंत्रिका तंत्र पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि मस्तिष्क का एक विशेष क्षेत्र क्रोध को नियंत्रित करने में मददगार हो सकता है

Q

गुस्से को लेकर हमारी समझ साल दर साल कैसे विकसित हुई है?

A

मैं मस्तिष्क के उन क्षेत्रों का अध्ययन करती हूं जो गुस्से की भावनात्मक घटक से अधिक संबंधित हैं।

यह समझना कि मस्तिष्क में क्या होता है, कभी-कभी हमें संभावित जैविक और मनोवैज्ञानिक तंत्रों के बारे में जानकारी देता है। कभी-कभी यह हमें आत्म-सूचना (सेल्फ-रिपोर्ट) से अधिक जानकारी दे सकता है, जो किसी व्यक्ति की सामाजिक वांछनीयता के कारण पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकती है।

प्रारंभ में जब मैंने इस शोध को शुरू किया, तब मैंने सोचा था कि गुस्सा एक विनाशकारी भावना है। हालांकि, मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि गुस्सा हमेशा असामाजिक व्यवहार से संबंधित नहीं होता। इसलिए मैंने गुस्से से जुड़े साहित्य पर और गहराई से नजर डाली। मैंने पाया कि संघर्षों में गुस्सा रचनात्मक या विनाशकारी हो सकता है। यह इस पर निर्भर करता है कि गुस्से का उपयोग कैसे किया जाता है। हालांकि यह भावना विनाशकारी और हानिकारक व्यवहार को प्रेरित कर सकती है। यह न्याय बहाल करने के लिए भी व्यवहार को प्रेरित कर सकती है।

गुस्सा इस भावना से जुड़ा होता है कि नियंत्रण हमारे हाथ में हैं और हम स्थिति को बदल सकते हैं। इसलिए गुस्सा संघर्ष के समाधान के लिए बहुत रचनात्मक हो सकता है, यह इस पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कैसे किया जाता है।

गुस्से पर दृष्टिकोण में एक मुख्य योगदान संघर्ष से संबंधित क्षेत्रों में शोध है। संघर्ष में विभिन्न भावनाओं पर शोध किया गया है। उदाहरण के लिए अब हम जानते हैं कि घृणा एक बहुत ही बुरी भावना है। नफरत में आप मान लेते हैं कि दूसरा व्यक्ति या समूह स्वाभाविक रूप से बुरा है और वह कभी नहीं बदलेगा। यह गुस्से से अलग है। गुस्से में आप मानते हैं कि दूसरे व्यक्ति ने कुछ बुरा किया है या दूसरे समूह ने कुछ बुरा किया है। इसलिए यह क्रिया पर अधिक केंद्रित है। गुस्से में आप अब भी स्थिति को नियंत्रण में महसूस करते हैं और आपके पास इस स्थिति का मूल्यांकन होता है जिससे ये लगता है कि हालात बदल सकते हैं। इसलिए, घृणा की तुलना में गुस्सा बहुत कम विनाशकारी है।

भावनाओं के साथ-साथ अलग-अलग भावों और विभिन्न व्यवहारिक परिणामों के बीच संबंध पर शोध करके हम यह बेहतर समझ सकते हैं कि विशिष्ट भावनाएं, संघर्ष के समाधान और सुलह को बढ़ावा देने वाले व्यवहार से कैसे संबंधित हैं।

Q

वैज्ञानिक प्रयोगशाला में गुस्सा कैसे उत्पन्न करते हैं?

A

कई अध्ययनों ने गुस्से वाले चेहरों की तस्वीरें दिखाईं। उदाहरण के लिए क्रोध से भरे चेहरे को देखकर डर उत्पन्न हो सकता है। इसलिए, मस्तिष्क की जिस सक्रियता को वो माप सकते हैं, वह डर हो सकती है। जब आप गुस्से से तमतमाए चेहरे को देखते हैं तो आप गुस्सा महसूस कर सकते हैं, लेकिन ऐसा होना जरूरी नहीं है।

कुछ बेहतर अध्ययनों में कुछ प्रकार की व्यवहारिक हेरफेर का उपयोग किया गया। फिर, कुछ अध्ययन पटकथा-आधारित होते हैं, जहां प्रतिभागियों से कहा जाता है कि वे एक घटना को याद करें जहां उन्होंने गुस्सा महसूस किया था या उन्हें एक ऐसी घटना की कल्पना करने के लिए कहा जाता है जहां वे गुस्सा महसूस कर सकते हैं। मुझे लगता है कि घटनाओं की कल्पना करने की समस्या यह है कि कुछ लोग घटनाओं की कल्पना बहुत अच्छी तरह से करते हैं। इसके अलावा, आप जिन घटनाओं की कल्पना कर सकते हैं वे उन घटनाओं से बहुत अलग हो सकती हैं जिनकी मैं कल्पना कर सकती हूं। इसलिए, हालात का मानकीकरण करना और एक प्रकार की सामान्य मस्तिष्क गतिविधि को मापना कठिन है।

मेरे अध्ययन में मैंने प्रतिभागियों को बिना कोई नुकसान पहुंचाए अपेक्षाकृत वास्तविक क्रोध उत्पन्न करने की कोशिश की। मैंने एक आर्थिक संवादात्मक आदर्श बनाया, जहां प्रतिभागियों ने दो अन्य लोगों - एक निष्पक्ष और एक अन्यायपूर्ण व्यक्ति के साथ बातचीत की ।

असामान्य व्यवहार के जरिए गुस्सा उत्पन्न किया गया। हमने फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई) स्कैनर का उपयोग करके क्रोध को मापा। ये एक प्रकार का स्कैन है जो दिखा सकता है कि आपके मस्तिष्क के कौन से क्षेत्र सबसे सक्रिय हैं। चूंकि हम एक कृत्रिम वातावरण बनाते हैं इसलिए यह कर पाना मुश्किल है। जब एक व्यक्ति को स्थिर लेटे रहना होता है और वो 3 मिमी से ज्यादा हिल-डुल नहीं सकता, तब वास्तविक जीवन की तरह क्रोध उत्पन्न करने वाली स्थिति को उत्पन्न करना कठिन हो जाता है। एक व्यक्ति के लिए प्रायोगिक क्रिया आमतौर पर लगभग आधे घंटे तक चलती है, जो कभी-कभी एक घंटे तक बढ़ सकती है।

Q

आपका तर्क है कि आक्रामकता, न कि गुस्सा, दूसरों को नुकसान पहुंचाने की क्रिया में शामिल है। क्या गुस्सा भी, कुछ स्थितियों में ऐसा नहीं करता?

A

जरूरी नहीं। गुस्से का मुख्य उद्देश्य स्थिति को बदलना होता है। लोग आमतौर पर तब गुस्सा महसूस करते हैं जब वे किसी अन्याय का सामना करते हैं और उन्हें लगता है कि वे इसके बारे में कुछ कर सकते हैं। क्रोध, चीजों को बेहतर के लिए बदलने और न्याय को बहाल करने की प्रेरणा के साथ आता है।

शायद, न्याय की बहाली दूसरों को नुकसान पहुंचाकर की जा सकती है। यह बहस का विषय है। मैं इस पर सहमत नहीं हूं। लेकिन कुछ लोगों की सोच है कि दूसरों को नुकसान पहुंचाना न्याय को बहाल करने में मदद कर सकता है। लेकिन यह शांतिपूर्ण वार्ताओं के माध्यम से भी हासिल किया जा सकता है। हालांकि, आक्रामकता एक विनाशकारी व्यवहार प्रवृत्ति है और इसलिए यह क्रोध से अलग है। कभी-कभी गुस्सा और आक्रामकता जुड़े होते हैं और कुछ अन्य समय में उनका जुड़ाव नहीं होता। मुझे लगता है कि यह क्रोध (जो एक भावना है) और आक्रामकता (जो एक व्यवहार है) के बीच एक अहम अंतर है।

इलस्ट्रेशन: योगेंद्र आनंद
Q

क्या गुस्सा और आक्रामकता मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों को सक्रिय करते हैं?

A

स्कैनर में मैं जानबूझकर अन्यायपूर्ण व्यवहार के संपर्क में लाकर प्रतिभागियों में गुस्सा उत्तेजित करती हूं। स्कैनर में दूसरे समय में मैं आक्रामकता को प्रेरित करती हूं। फिर, जब वे उत्तेजित (जो गुस्से से संबंधित है) किए जा रहे थे और जब वे असामाजिक कार्यों (आक्रामकता) का चयन कर रहे थे तब मैंने मस्तिष्क की सक्रियताओं की पड़ताल की।

जब उन्हें उकसाया जा रहा था, तब हमने मस्तिष्क के एक क्षेत्र (जिसे एमिग्डाला कहा जाता है) में सक्रियता देखी। तो यह मस्तिष्क क्षेत्र है जो प्रासंगिकता की पहचान से जुड़ा है।

इसलिए, शायद जब वे गुस्से में थे, तो दूसरे का अन्यायपूर्ण व्यवहार उन्हें अधिक महत्वपूर्ण लग रहा था। हमने टेंपोरल कॉर्टेक्स के कुछ हिस्सों और फ्यूजिफॉर्म कॉर्टेक्स के कुछ हिस्सों में भी गहन सक्रियता देखी। टेंपोरल कॉर्टेक्स यह बताता है कि संज्ञानात्मक दृष्टिकोण से क्या हुआ। फ्यूजिफॉर्म कर्टेक्स मस्तिष्क के पीछे होता है, जो चेहरों से संबंधित दृश्य जानकारी की पड़ताल करता है। इसलिए, शायद उत्तेजना उनके लिए अधिक प्रासंगिक थी और उन्होंने चेहरे पर अधिक ध्यान दिया।

फिर, जब उन्होंने व्यवहार (शायद अन्यायपूर्ण तरीके से) करने का निर्णय लिया, हमने पोस्टिरियर सिंगुलेट कॉर्टेक्स के कुछ हिस्सों में अधिक सक्रियता देखी। यह एक ऐसा क्षेत्र है जो अक्सर आत्म-संदर्भित विचार, मन के भटकाव और चिंतन से संबंधित होता है। शायद वे सोच रहे थे कि यह व्यक्ति अतीत में मेरे प्रति अन्यायपूर्ण रहा है।

Q

क्या हम स्पष्ट रूप से समझते हैं कि मस्तिष्क के कौन से क्षेत्र गुस्से को नियंत्रित या विनियमित करने में मदद करते हैं?

A

जीव-विज्ञान के स्तर पर हमारे पास कुछ दृष्टिकोण हैं। लेकिन हमने इसे पूरी तरह से नहीं समझा है। मेरे अध्ययन से एक पहलू उभरा है, जो डॉर्सोलैटरल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (डीएलपीएफसी) की भूमिका को लेकर है। यह मस्तिष्क का वह क्षेत्र है जो हमारी कनपटी के पीछे स्थित है। यह भावनाओं या विचारों को नियंत्रित करने और व्यवहार पर काबू करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

मेरे प्रयोगों से हमें यह स्पष्ट होता है कि जब प्रतिभागियों के डीएलपीएफसी (जो भावनाओं को नियंत्रित और विनियमित करने वाला मस्तिष्क क्षेत्र है) में अधिक सक्रियता होती है तो वे बाद में कम आक्रामक होते हैं। इसलिए, ऐसा लगता है कि उत्तेजना के दौरान अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना, कम आक्रामकता से जुड़ा हुआ है। लेकिन हमें और अधिक अध्ययन की जरूरत है। हमें ऐसे अध्ययन की आवश्यकता है जो डीएलपीएफसी में हेरफेर करें। मेरा अध्ययन पहला है जो यह दिखाता है कि गुस्सा नियंत्रण और डीएलपीएफसी के बीच एक संबंध है, लेकिन फिर हमें इन विभिन्न तंत्रों की कारणात्मकता को स्थापित करने के लिए और अधिक अध्ययन की दरकार है।

Q

क्या हम यह समझते हैं कि डीएलपीएफसी की सक्रियता बाद में असामाजिक व्यवहार में कमी का कारण कैसे बन सकती है?

A

हम इसे सीधे-सीधे नहीं समझते। मुझे लगता है कि इस प्रयोग से हम जो नया सिद्धांत (जिसका परीक्षण किया जाना चाहिए) निकाल सकते हैं, वह यह है कि यदि लोग उत्तेजना के दौरान अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हैं, तो यह बाद में उनके व्यवहार को प्रभावित कर सकता है। हमें अन्य प्रयोगों से पता है कि भावनाओं का नियंत्रण असामाजिक व्यवहार को कम कर सकता है और समाज के लिए दोस्ताना व्यवहार को बढ़ा सकता है। लेकिन कार्य कारण सिद्धांत स्थापित करने के लिए इसका परीक्षण किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक बेतरतीब (रैंडमाइज्ड) नियंत्रित परीक्षण नहीं था।

Q

डॉर्सोलैटरल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स की गतिविधि को वैज्ञानिक कैसे नियंत्रित कर सकते हैं?

A

सैद्धांतिक रूप से, इस मस्तिष्क क्षेत्र को विभिन्न तरीकों से नियंत्रित किया जा सकता है। इसे फीडबैक के माध्यम से काबू में किया जा सकता है। जब प्रतिभागी स्कैनर में लेटे होते हैं, तो वे अपने गुस्से को नियंत्रित करना सीखते हैं। या आप इसे करंट लगाकर बाहरी रूप से कर सकते हैं, जो कुछ मस्तिष्क गतिविधियों को कम करती या बढ़ा देती है। मैं व्यक्तिगत रूप से इन प्रयोगों में शामिल नहीं होती, लेकिन अन्य समूह ऐसा करते हैं। कार्य कारणता दिखाने के लिए, इस प्रकार के प्रयोग करना दिलचस्प हो सकता है।

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