मनोविकारों का विज्ञान: मोटापे का मूल कारण है लोलुपता, और भी कई हैं वैज्ञानिक पहलू
ग्लूटनी यानी लोलुपता इंसान का ऐसा पाप है, जिसका परिणाम मरने के बाद भी झेलना पड़ सकता है। ऐसा धर्मों में कहा गया है, लेकिन विज्ञान क्या कहता है? यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ संवाददाता रोहिणी कृष्णमूर्ति ने विलियम बी इरविन से बात की, जो अमेरिका की राइट स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एमेरिटस और आठ पुस्तकों के लेखक इरविन ने “ओबिसिटी प्रिवेंशन” नामक पुस्तक में एक अध्याय “ग्लूटनी: रिलीजियस एंड फिलोसॉफिकल रिस्पॉन्सेस टू द ओबिसिटी एपिडेमिक” विषय पर लिखा है
पिछले कुछ वर्षों में लोलुपता के बारे में दुनिया का नजरिया किस प्रकार से बदला है?
लोलुपता को लेकर हमारे नजरिये में नाटकीय बदलाव आए हैं। करीब 500 साल पहले जब पश्चिमी दुनिया में चर्च एक प्रमुख भूमिका में था तब वह लोलुपता को सात पापों में से एक मानता था। चर्च का मानना था कि आप जीवित रहते हुए भले ही लोलुप होने का आनंद उठा लें लेकिन मृत्यु के बाद आपको निश्चय ही दंडित किया जाएगा। चर्च का मानना था कि नरक की गहराई में कुछ लालची लोगों के चित्र हैं जो अन्य प्राणियों द्वारा खाए जा रहे हैं। यह उस समय की बात है जब अधिकांश लोग केवल इस कारण से लोलुप नहीं हो सकते थे क्योंकि उन्हें भोजन की कमी का सामना करना पड़ता था।
अगर आप पूर्वी दुनिया की बात करते हैं तो देखेंगे कि बुद्ध ने खान-पान को लेकर कई प्रयोग किये थे और खुद को अति अल्प आहार पर जीवित रखने की कोशिश की। अंत में उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि उचित यह है कि न तो बहुत अधिक खाएं और न ही बहुत कम - बस सही मात्रा में खाएं।
अगर आप बहुत पीछे अफ्रीका के सवाना की स्थितियां देखें तो वहां लोग दिन-प्रतिदिन का जीवन जीते थे। रेफ्रिजरेटर नहीं था, खाना भी एकत्र नहीं कर सकते थे क्योंकि भोजन को साथ ढोकर ले जाना होता था। इसलिए इस आशंका में कि पता नहीं कब फिर भोजन मिले लोगों को जब भी अवसर मिलता और भोजन उपलब्ध होता वह आवश्यकता से अधिक खाते थे। हालांकि, अब हमारी दुनिया अविश्वसनीय तरीके से बदल चुकी है, जहां आप जो चाहें जब चाहें और जितनी मात्रा में चाहें खा सकते हैं। अब भी ऐसी जगहें हैं जहां भुखमरी एक समस्या बनी हुई है।
बहुत कम आय पर बसर करने वाला व्यक्ति भी पेटू यानी लोलुप हो सकता है। वे अपना ध्यान अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर केंद्रित करते हैं। वे सस्ती चीजें ढूंढते हैं और उन्हें खूब खाते हैं क्योंकि उन्हें खाने का वह क्षणिक आनंद अच्छा लगता है। सच तो यह है कि भोजन आपको जीवित रखता है और हर दिन जीने के लिए ऊर्जा देता है। भोजन का स्वाद इतना अच्छा होता है कि कुछ लोग इससे बहक जाते हैं। वे इससे मोहित हो जाते हैं। यह भी एक अच्छा जीवन जीने का तरीका होता है। लेकिन इसका दूसरा परिणाम यह है कि लोगों का वजन बढ़ जाता है।
हम लोगों के बारे में कोई बुरी/आलोचनात्मक राय नहीं बनाना चाहते। लेकिन, मुझे लगता है कि पेटूपन आपको खाने के लिए प्रेरित करता है। हम भोजन के चंगुल में फंस गए हैं और यह हमें कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहा है जो यकीनन हमारे लिए अच्छा नहीं है।
लोलुपता के बारे में राय बदलने में खाद्य उद्योग की भूमिका को लेकर आपके क्या विचार हैं?
आप लोगों की लोलुपता से बहुत सारा पैसा कमा सकते हैं। आप उन्हें अपना उत्पाद खाते रहने के लिए मजबूर कर सकते हैं। उत्पादों में चीनी और वसा की मात्रा बढ़ाना इसका एक तरीका है । जब मैं छोटा था, तब प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की संख्या बहुत कम थी। यह 1960 के दशक की बात होगी। कैप्टन क्रंच नाम का एक सीरियल हुआ करता था, जो कुरकुरा और चीनी से भरपूर था। मेरी मां इसका एक डिब्बा घर ले आई थी । और मुझे याद है कि एक सप्ताहांत में मैंने पूरा डिब्बा खा लिया क्योंकि वह कैंडी की तरह था। यह आपके दैनिक आहार का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकता है कि लोग इसे नाश्ते के रूप में खाते हैं।
इसलिए निर्माता कह सकते हैं कि जब तक लोग हमारे उत्पाद को खरीदने को इच्छुक हैं, हम उन्हें लुभाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। इसके पीछे उनकी यही प्रेरणा काम करती है। और फिर अगर आप स्वस्थ भोजन के विकल्पों को देखें, तो वे चाहते हैं कि लोग उनका उत्पाद भी खरीदें। लेकिन इसका वही प्रभाव नहीं होता। वे गाजर लेकर उसमें चीनी और वसा नहीं मिला सकते। यह उस तरह से काम नहीं करता। इसलिए, उनके विकल्प सीमित हैं। लेकिन अगर वे ऐसा कर सकते तो अवश्य करते।
ओबिसिटी प्रिवेंशन के एक अध्याय में आप तर्क देते हैं कि मोटापे का मूल कारण लोलुपता है। ऐसे अध्ययन हैं जो मोटापे या अत्यधिक खाने को आनुवंशिक प्रवृत्ति, गतिहीन जीवन शैली या अकेलेपन जैसे अन्य कारकों से जोड़ते हैं। इस पर आपके क्या विचार हैं?
मैं यहां कहना चाहूंगा कि हम एक साथ दो महामारियों से लड़ रहे हैं। मोटापे की महामारी, जो बहुत अच्छी तरह से मापी और प्रलेखित की गई है और दूसरी चीज जिसे मैं लोलुपता महामारी कहूंगा। मेरा यह भी मानना है कि एक के बिना दूसरे का होना असंभव नहीं है। लेकिन मैं यह सुझाव देना चाहूंगा कि अमेरिका में लोलुपता मोटापे का मूल कारण है। लोगों के पास भोजन तक पहुंच है और यह अच्छी बात है। आपके पास पर्याप्त भोजन हो सकता है और फिर भी आप मीठा और मोटा करने वाला भोजन खाने से कुछ हद तक संयम बरत सकते हैं। अतः लोलुपता मोटापे की महामारी का कारण है। इसलिए मैं यह दावा करूंगा। अगर आप मुझसे पूछें कि लोग मोटापा बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों को अपने जीवन का इतना अहम हिस्सा क्यों बनाते हैं, तो मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है।
आप एक शोध पत्र में लोलुपता पर दार्शनिक दृष्टिकोण की कमी के बारे में भी बात करते हैं। यह क्यों महत्वपूर्ण है?
दार्शनिक एक अलग दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि डॉक्टर लोलुपता शब्द का उपयोग करते हैं। और आधुनिक समय में दार्शनिकों को लोलुपता में लगभग कोई दिलचस्पी नहीं है। उस पेपर में मैंने एक दार्शनिक सूचकांक के माध्यम से देखा कि लोलुपता के बारे में कितने पेपर लिखे गए हैं। मुझे केवल तीन मिले। इसलिए यह ऐसी चीज जिसके बारे में हम बात नहीं करते हैं और इसे धर्म के लिए छोड़ दिया जाता है। फिलहाल आधुनिक दार्शनिक इसके बारे में बहुत कम बात करते हैं। किसी चीज को अपने जीवन पर नियंत्रण करने देना अच्छा विचार नहीं है। ऐसी कई चीजें हैं जो आपके जीवन पर नियंत्रण कर सकती हैं। उदाहरणों में अल्पकालिक भय, यौन भूख और भोजन या नशीले पदार्थों की भूख शामिल हैं।
एक तर्कसंगत व्यक्ति के रूप में आपको नियंत्रण में रहना चाहिए। आपको स्टीयरिंग व्हील पर रहना चाहिए। यदि आप शास्त्रीय दर्शन पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि सभी अलग-अलग दर्शन स्कूलों में लोगों ने कहा है कि भोजन का दुरुपयोग किया जा सकता है। आप बहुत अधिक खा सकते हैं और गलत कारणों से खा सकते हैं। और यदि आप ऐसा करते हैं तो आपने खुद पर नियंत्रण खो दिया है।
लालच और लोलुपता के बीच समानताओं को देखते हुए क्या ये दोनों आपस में जुड़े हुए हैं?
कोई व्यक्ति कई चीजों को लेकर लालची हो सकता है। लेकिन लोलुपता विशिष्ट है क्योंकि इसमें भोजन और शायद पेय भी शामिल है। एक लोलुप व्यक्ति लालची हो सकता है। संभव है वह ऐसा व्यक्ति हो जिसके पास बहुत सारा भोजन है लेकिन वह नहीं चाहेगा कि कोई और इसे खाए क्योंकि उससे उन्हें परेशानी होगी, भले ही उनके पास किसी भी इंसान की जरूरत से अधिक भोजन हो। ये दोनों शब्द भले ही करीब हैं, लेकिन दोनों अलग अवधारणाएं हैं।
ऊर्जा लोलुपता पर भी शोधपत्र हैं। यह लोलुपता से किस तरह अलग है?
इसका उपयोग उन लोगों का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो जरूरत से ज्यादा ऊर्जा का उपयोग करते हैं। अमेरिका में विशाल पिकअप ट्रक होते हैं जो अत्यधिक ऊर्जा की खपत करते हैं। वे ऊर्जा का अत्यधिक उपयोग करते हैं और आंशिक रूप से वे ऐसा अपनी ऊर्जा के उपयोग को प्रदर्शित करने के लिए करते हैं । ऊर्जा और भोजन के लोलुपों के बीच एक बात यह है कि आप बाद वाले के साथ खुद को नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि आप अन्य बीमारियों को लेकर अपने जोखिम को बढ़ाते हैं। मेरा मतलब है, अगर आप सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा पर हैं तो मुझे लगता है कि आप जनता को तो कष्ट पहुंचाते ही हैं, साथ ही आप अपने परिवार को भी संकट में डालते हैं।
लेकिन एक ऊर्जा लोभी जलवायु परिवर्तन में योगदान देकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। वे ऐसा क्यों करते हैं? मुझे लगता है कि वे इसका आनंद लेते हैं। यह उन चीजों में से एक है जो सुखद हैं, लेकिन आसपास के लोगों के लिए बुरे परिणाम लेकर आती हैं।
एक और अंतर यह है कि भोजन के लोभी पहले तो अच्छा महसूस कर सकते हैं और फिर बाद में जब उनका वजन बढ़ जाता है तो उन्हें बुरा लगने लगता है। ऊर्जा लोलुपता के लिए मुझे लगता है इसे समझाना थोड़ा कठिन है क्योंकि बड़े कार्बन पदचिह्न वाली कार में घूमना किसी व्यक्ति को अच्छा लग सकता है। यह उनकी व्यक्तिगत पहचान का हिस्सा हो सकता है और उन्हें किसी तरह का आनंद मिल सकता है।