अमेरिकी वैज्ञानिकों का दावा है कि कृत्रिम मिठास के लिए उपयोग होने वाले आम स्वीटनर 'सुक्रालोज' में पाया जाने वाला केमिकल किसी व्यक्ति के डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है। यहां तक की इसका सेवन कैंसर तक का कारण बन सकता है।
गौरतलब है कि इस कृत्रिम स्वीटनर के बारे में मान्यता है कि इसमें कैलोरी की मात्रा बिलकुल नहीं होती है। ऐसे में इसे आमतौर पर चीनी के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है। बता दें कि यह चीनी से 600 गुणा ज्यादा मीठा होता है। यही वजह है कि इसे सॉफ्ट ड्रिंक्स, डाइट सोडा, च्युइंग गम जैसे हजारों उत्पादों में इस्तेमाल किया जाता है।
इस बारे में नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि 'सुक्रालोज' में पाया जाने वाला एक केमिकल, सुक्रालोज-6-एसीटेट, "जीनोटॉक्सिक" होता है, जो डीएनए मतलब कि कोशिकाओं में मौजूद अनुवांशिक जानकारी को नुकसान पंहुचा सकता है। इस रिसर्च के नतीजे जर्नल ऑफ टॉक्सिकोलॉजी एंड एनवायर्नमेंटल हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं।
डीएनए में मौजूद यह जानकारी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत अहम होती है। जो इस बात को नियंत्रित करती है कि हमारा शरीर कैसे बढ़ता है, और उसे कैसे स्वस्थ रखा जा सकता है। देखा जाए तो इस तरह यह कई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है।
शोधकर्ताओं द्वारा किए 2018 में किए पिछले अध्ययन से पता चला है कि सुक्रालोज के पाचन के बाद शरीर में कई यौगिक बनते हैं जिनमें से एक सुक्रालोज-6-एसीटेट भी होता है। यह यौगिक, आंत की परत को नुकसान पहुंचा सकता है। वहीं नए अध्ययन से पता चला है कि यह इसके साथ-साथ ऑक्सीडेटिव तनाव को बढ़ा सकता है। साथ ही सूजन और यहां तक कि कैंसर का कारण भी बन सकता है।
स्वास्थ्य के लिए सही नहीं कृत्रिम मिठास
इस बारे में अध्ययन का नेतृत्व करने वाली और नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर सुसान शिफमैन का कहना है कि, "हमारे अध्ययन में सामने आया है कि सुक्रालोज-6-एसीटेट जीनोटॉक्सिक होता है।" उन्होंने आगे बताया कि, "हमें यह भी पता चला है कि जब उनका उपभोग और पाचन नहीं किया जाता, तब भी व्यावसायिक रूप से उपलब्ध सुक्रालोज उत्पादों में ‘सुक्रालोज-6-एसीटेट’ की थोड़ी मात्रा होती है।"
डॉक्टर शिफमैन ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि, "अन्य अध्ययनों से पता चला है कि सुक्रालोज आंत के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, ऐसे में हम देखना चाहते थे कि वहां क्या हो रहा है।"
उन्होंने बताया कि, "यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण ने किसी भी जीनोटॉक्सिक पदार्थ के लिए प्रति व्यक्ति हर दिन 0.15 माइक्रोग्राम की सुरक्षा सीमा स्थापित की है। हालांकि शोध से पता चला है कि सुक्रालोज द्वारा मीठे किए गए दैनिक पेय पदार्थों में पाया जाने वाला सुक्रालोज-6-एसीटेट का स्तर पहले ही इस सीमा का पर कर गया है।" उनके मुताबिक यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह गणना सुक्रालोज-6-एसीटेट की अतिरिक्त मात्रा पर विचार नहीं करती जो लोगों द्वारा सुक्रालोज के पाचन के बाद उत्पन्न होती है।
सरल शब्दों में कहें तो सुक्रालोज-6-एसीटेट इन पेय पदार्थों में सेवन से पहले ही मौजूद होता है, लेकिन उससे भी ज्यादा हमारे पेट में पाचन के समय बनता है। ऐसे में शिफमैन का कहना है कि, "संक्षेप में, हमने यह पाया है कि सुक्रालोज-6-एसीटेट जीनोटॉक्सिक होता है। यह संपर्क में आने वाली कोशिकाओं में डीएनए को नुकसान पहुंचाता है।"
इस बारे में फ्रेंच नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ की एक रिसर्च से पता चला है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह अध्ययन सुक्रालोज और उसके चयापचयों से जुड़े संभावित स्वास्थ्य प्रभावों को उजागर करता है। साथ ही यह इसके उपभोग से जुड़े जोखिमों के बढ़ते प्रमाण के कारण सुक्रालोज को लेकर जारी नियमों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर जोर देता है। एतिहात के रूप में शोधकर्ताओं ने लोगों से इन उत्पादों से दूर रहने का आग्रह किया है, जिनमें सुक्रालोज होता है।