वैज्ञानिकों ने खोजा ऐसा प्रोटीन जो रीढ़ की हड्डियों में कमजोर पड़ चुकी डिस्क को फिर से पैदा कर सकता है

अध्ययन के अनुसार, जेब्राफिश में पाए जाने वाले प्रोटीन के उपयोग से कमजोर व उम्रदराज होती डिस्क को फिर से पैदा किया जा सकता है
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, साइंटिफिक एनिमेशन
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मनुष्य की रीढ़ की हड्डियों के बीच रबड़ जैसी डिस्क होती है जो हमारी कमर और गर्दन को सहारा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। डिस्क के कमजोर पड़ जाने की स्थिति तब आती है जब रीढ़ की हड्डी के डिस्क का नरम हिस्सा, कठोर बाहरी आवरण में दरार के द्वारा इसे अंदर की ओर धकेलता है।

यह समस्या अन्य आस-पास की नसों में व्यवधान उत्पन्न कर सकती हैं और इसके परिणामस्वरूप हाथ या पैर में दर्द, सुन्नता या कमजोरी हो सकती है। प्रत्येक डिस्क को हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है।

अब भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा प्रोटीन खोजा है जो जेब्राफिश की रीढ़ की हड्डी में पाया जाता है, यह प्रोटीन डिस्क के रखरखाव में अहम भूमिका निभाता है। यह मेरुदण्ड अस्थिखण्ड में कमजोर पड़ चुके डिस्क को फिर से पैदा करने में सहायता करता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि यह प्रोटीन कमजोर पड़ चुके मानव डिस्क के फिर से पैदा करने संबंधी चिकित्सा के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है।

अक्सर लोगों में डिस्क स्वाभाविक रूप से कमजोर पड़ जाती है, जिससे पीठ के निचले हिस्से, गर्दन और पीठ में दर्द सहित कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। मौजूदा दौर में कमजोर पड़ चुकी डिस्क के लिए केवल लक्षण संबंधी उपचार ही उपलब्ध हैं, जिनमें दर्द निवारक या सूजन कम करने वाली दवाएं शामिल हैं।

गंभीर मामलों में डिस्क के खिसक जाने या डिस्क फ्यूजन सर्जरी की जाती है। वैज्ञानिकों ने कहा, डिस्क के कमजोर पड़ने की गति को कम करने या लोगों में डिस्क को फिर से पैदा करने पर आधारित एक उपचार प्रक्रिया को विकसित करने की तत्काल जरूरत है।

चिकित्सा परीक्षण लोगों में डिस्क के कमजोर पड़ते जाने के चरणों से सम्बंधित आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं, लेकिन डिस्क के रखरखाव में अहम भूमिका निभाने वाली कोशिका और आणविक प्रक्रियाओं के बारे में उपलब्ध जानकारी सीमित है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कमजोर पड़ते डिस्क की गति को कम करने या मनुष्यों में डिस्क को फिर से पैदा करने पर आधारित कोई चिकित्सा प्रक्रिया या उपचार की अभी तक जानकारी नहीं है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत, पुणे के अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (एआरआई) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि मेरुदंड में गैप या अंतर, डिस्क कोशिकाओं से स्रावित कोशिका कम्युनिकेशन नेटवर्क फैक्टर 2ए (सीसीएन2ए) नामक एक प्रोटीन, कमजोर व उम्रदराज होते डिस्क में इसको फिर से पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

साथ ही इसके लिए एफजीएफआर 1-एसएचएच जिसे फाइब्रोब्लास्ट ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर-सोनिक हेजहोग कहते हैं, पाथवे नामक तरीके में बदलाव करके यह कोशिका में फैलाव उत्पन्न करता है और कोशिका को संरक्षित करता है।

एक मॉडल के रूप में जेब्राफिश का उपयोग करने वाला यह अध्ययन विवो अध्ययन में पहला है, जो दिखाता है कि अन्तः विकसित सिग्नलिंग कैस्केड को सक्रिय करके कमजोर व उम्रदराज होते डिस्क को फिर से पैदा करना संभव है। यहां बताते चलें कि 'विवो' अध्ययन में जानवरों, पौधों या संपूर्ण कोशिकाओं जैसे जीवित विषयों के साथ परीक्षण किया जाता है। उदाहरण के लिए, मनुष्यों में प्रायोगिक दवा की सुरक्षा और असर का आकलन करने के लिए नैदानिक परीक्षणों को विवो अध्ययनों में माना जाता है।

वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि सीसीएन2ए- एफजीएफआर 1-एसएचएच, सिग्नलिंग कैस्केड डिस्क के रखरखाव और डिस्क को फिर से पैदा करने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाता है। अध्ययन में आनुवांशिकी और जैव-रसायन दृष्टिकोण का उपयोग किया गया है और यह डिस्क के कमजोर पड़ने की गति को धीमा करने या कमजोर हो चुके मानव डिस्क में इसको फिर से पैदा करने की प्रक्रिया के लिए एक नई रणनीति तैयार करने में मदद कर सकता है। यह अध्ययन डेवलपमेंट नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। 

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