मौजूदा समय में अधिक ऊर्जा भंडारण करने वाली लिथियम-आयन बैटरी बहुत मांग में हैं। इसका उपयोग मोबाइल फोन, लैपटॉप और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में काफी किया जा रहा है। ये रिचार्जेबल बैटरी वर्तमान में तरल या जेल इलेक्ट्रोलाइट्स का उपयोग करती हैं, इनमें आग लगने की डर, विषाक्तता, सीमित तापमान सीमा और रिसाव आदि जैसी समस्याएं हैं।
इन समस्याओं से निजात पाने के लिए पिछले कुछ दशकों से 'तरल जैसे' आयनिक चालकता वाले उपयुक्त ठोस इलेक्ट्रोलाइट्स का पता लगाया जा रहा है। ये ठोस इलेक्ट्रोलाइट विभिन्न समूहों द्वारा प्रदर्शित सुरक्षा, पैकेजिंग, तापमान की स्थिरता और ऊर्जा घनत्व को बढ़ाते हैं।
आब भारतीय शोधकर्ताओं ने लिथियम आयन बैटरी के लिए एक अधिक तापमान सहन करने वाला, स्थिर ठोस इलेक्ट्रोलाइट विकसित किया है। यह पदार्थ 30 से 500 डिग्री सेल्सियस तापमान में उपयोग किया जा सकता है।
आज के समय में ऊर्जा उत्पादन और भंडारण बहुत महत्वपूर्ण हो चुका है। वर्तमान में ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए दुनिया भर में कम लागत वाली, कुशल विकल्प विकसित करने के लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। फिलहाल मौजूदा समय में सबसे एडवांस या उन्नत तकनीक पारंपरिक रूप से इस्तेमाल हो रही बैटरी लिथियम-आयन और सोडियम-आयन बैटरियां है। जो कम समय के लिए उपयोग की जाती हैं।
अब इन बैटरियों में बदलाव करने का समय आ गया हैं। हालांकि वर्तमान तकनीक में कई वैज्ञानिक और तकनीकी सीमाएं हैं, उदाहरण के लिए, तरल इलेक्ट्रोलाइट्स की निर्भरता और इसके उपयोग में बढ़ते तापमान के चलते बेहद छोटा दायरा होना। इसलिए ठोस-अवस्था के भंडारण के लिए उपकरणों को विकसित करने की आवश्यकता है।
आवश्यकताओं को देखते हुए इस दिशा में, बिट्स पिलानी, पिलानी कैंपस में भौतिक विभाग के डॉ अंशुमान दलवी की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक पदार्थ विकसित किया है। यह पदार्थ लिथियम प्लस आयन बैटरी और सुपर कैपेसिटर के लिए तापमान को स्थिर रखने वाले ठोस इलेक्ट्रोलाइट्स के रूप में तथा ठोस-अवस्था में ऊर्जा का भंडारण किए जाने वाले उपकरणों को विकसित किया है।
इन उपकरणों की दक्षता और उनकी स्थिरता का परीक्षण किया गया है। इस शोध को भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा स्थापित एफआईएसटी कार्यक्रम द्वारा मदद दी गई है। एक्सआरडी फैसिलिटी में चल रहे शोध कार्य को मिश्र पदार्थ के उच्च तापमान पर उच्च रेजोल्यूशन के साथ जांच किया है। यह शोध 'मैटेरियल्स रिसर्च बुलेटिन इन 2021' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
टीम ने डीएसटी एफआईएसटी की मदद से अधिक तापमान वाले एक्स-रे डिफ्रेक्शन (एचटीएक्सआरडी) फैसिलिटी रिगाकू स्मार्टलैब का उपयोग किया है, जो विशेष रूप से नये ठोस इलेक्ट्रोलाइट्स के तापमान की स्थिरता के मूल्यांकन के लिए उपयोगी है। एक्सआरडी पैटर्न मूल स्थिति में 500 डिग्री सेल्सियस तक सहन कर सकते हैं। अब उच्च तापमान पर काम करने के लिए बैटरी और सुपरकैपेसिटर विकसित किये जा रहे हैं।
आयनिक लिक्विड (आईएल) डिस्पर्स्ड सोल्यूशन-जेल प्रक्रिया से गुजारे गये नासिकॉन (सुपरआयोनिक सोडियम कंडक्टर) से चलने वाले LiTi2(PO4)3 (एलटीपी) कंपोजिट हेतु 30 से 500 डिग्री सेल्सियस की सीमा के लिये एचटीएक्सआरडी तकनीक का इस्तेमाल किया गया। यहां बताते चलें कि इस तकनीक में तापमान की वजह से पदार्थ में होने वाले संरचनात्मक परिवर्तनों का भी अध्ययन किया जाता है।
अधिक तापमान हो जाने पर बैटरी आईएल एलटीपी के साथ जिनकी जरूरत न हो ऐसे यौगिक बनाने के लिए प्रतिक्रिया नहीं करता है। कंपोजिट का उपयोग लिथियम बटन सेल में किया गया था। बैटरी में सबसे अच्छी स्थिरता हासिल की गयी है। यह बढ़ते तापमान के दायरे में बैटरी के इस्तेमाल की संभावनाओं को बढ़ा देता है।
इसके अलावा नमूने को इलेक्ट्रिक दोहरे परत या डबल-लेयर (ईडीएलसी) सुपरकैपेसिटर के लिए इलेक्ट्रोलाइट्स के रूप में उपयोग किये जा रहे हैं। 10000 चक्रों के लिये 200 एफ/जी के करीब की उच्च क्षमता और कम से कम 100 डिग्री सेल्सियस के तापमान की स्थिरता प्राप्त की गयी है। ईडीएलसी का उपयोग एलईडी को सफलतापूर्वक बिजली देने के लिये किया गया था। ईडीएलसी को 200 डिग्री सेल्सियस पर कार्य करने के लिये तैयार किया जा रहा है।
डॉ दलवी ने बताया कि नासिकॉन, गार्नेट और कुछ अन्य तीव्र आयनिक ठोस के साथ आयनिक तरल कंपोजिट उच्च तापमान के साथ ऊर्जा भंडारण उपकरणों के रूप में बहुत अच्छे पाये गये हैं। ये उपकरण सैन्य और अंतरिक्ष में उपयोग करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।