आज दुनिया भर में पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। प्लास्टिक ओसियन के अनुसार यह कुल प्लास्टिक उपयोग का 40 फीसदी से अधिक है। दुनिया भर में सालाना लगभग 50,000 करोड़ प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग किया जाता है। हर मिनट 10 लाख से अधिक थैलियों का उपयोग किया जाता है। अब वैज्ञानिक भोजन की पैकेजिंग में प्लास्टिक से पीछा छुड़ाने की जुगत में लगे हैं।
भोजन की पैकेजिंग के लिए घास के रेशे अब प्लास्टिक की जगह लेंगे। यह 100 फीसदी बायोडिग्रेडेबल और डिस्पोजेबल सामग्री है, यानी इसको नष्ट किया जा सकता है। इस सामग्री को बनाने का लक्ष्य ‘सिनप्रोपैक’ नामक एक नई परियोजना के तहत रखा गया है। जिसका उद्देश्य आजकल पैकेजिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले डिस्पोजेबल प्लास्टिक के लिए एक स्थायी विकल्प तैयार करना है।
यह परियोजना उद्योग, उपभोक्ताओं और जानकारी इकट्ठा करने वाले संस्थानों को एक साथ लेकर आई है। पहले इसका निर्माण छोटे पैमाने पर तथा सामान की जांच करने के लिए किया जाएगा। बाद में इसे व्यावसायिक आधार पर भोजन की पैकेजिंग के लिए उपयोग किया जाएगा।
डेनिश टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट के केंद्र निदेशक ऐनी क्रिस्टीन स्टीनक जोर हस्त्रुप कहते हैं कि घास से बनी डिस्पोजेबल पैकेजिंग के बहुत सारे पर्यावरणीय लाभ है। पैकेजिंग 100 फीसदी बायोडिग्रेडेबल होगी, इसलिए यदि कोई गलती से इस पैकेजिंग को वातावरण में छोड़ देता है, तो यह स्वाभाविक रूप से नष्ट हो जाएगी।
दुनिया भर में हर साल करोड़ों टन, खासकर डेनमार्क में भोजन और पेय घर ले जाने के लिए 10,000 टन से अधिक पैकेजिंग की खपत होती है।
10,000 टन डिस्पोजेबल प्लास्टिक को बायो आधारित या बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग की मात्रा में बदलने से पैकेजिंग उत्पादन में होने वाले कार्बन उत्सर्जन में सालाना लगभग 2,10,000 टन सीओ2 की कमी आएगी।
यह परियोजना खाद्य उत्पादों के लिए एक बार उपयोग होने या सिंगल-यूज पैकेजिंग के लिए ग्रीन बायोमास के उपयोग करने की संभावनाओं को बढ़ाने के साथ-साथ तकनीक के लिए एक स्थायी जैव-अर्थव्यवस्था व्यवसाय मॉडल को पेश करने जा रही है। पैकेजिंग से संबंधित समाधानों में यह एक बहुत अच्छा बदलाव होगा।
ग्रीन बायोमास दुनिया के कई देशों में खासकर डेनमार्क में एक आसानी से उपलब्ध होने वाले संसाधन है। प्रोटीन उत्पादन के लिए ग्रीन जैव शोधन पहले से ही काफी उपयोग किया जा रहा है।
शोधकर्ता ने कहा जब हम घास काटते हैं और जानवरों के चारे के लिए इसमें से प्रोटीन निकालते हैं, तो हम सेल्यूलोज के लिए घास के रेशों और लुगदी में सुधार कर सकते हैं। जिसका उपयोग हम पैकेजिंग का उत्पादन करने के लिए कर सकते हैं।
आरहस विश्वविद्यालय में जैविक और रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर मोर्टन एंबी-जेन्सेन कहते हैं कि यह जैव शोधन (बायोरिफाइनिंग) के लिए अतिरिक्त लाभ का एक शानदार तरीका है, क्योंकि घास के सभी रेशों (फाइबर) का मवेशियों को खिलाने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता है।
प्रोटीन निकाले जाने के बाद जैव शोधन (बायोरिफाइनिंग) में खिलाई जाने वाली घास का लगभग 70 फीसदी रेशे (फाइबर) होते हैं। सिनप्रोपैक परियोजना में, शोधकर्ता घास और तिपतिया घास दोनों को रेशे (फाइबर) के स्रोतों के रूप में देखते हैं, क्योंकि तिपतिया घास भविष्य की जैव शोधन (बायोरिफाइनिंग) के लिए पहला बायोमास होगा।
हालांकि, परियोजना पीट, एक प्रकार की घास जो काटे गए बायोमास का उपयोग करने की संभावनाओं पर भी करीब से नजर डालेगी, जो आमतौर पर अधिक रेशेदार होती है और इसमें कम प्रोटीन होता है।
परियोजना में आरहूस विश्वविद्यालय और डेनिश टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट में प्रदर्शन और इससे संबंधित सुविधाओं में प्रौद्योगिकी का परीक्षण शामिल है। कंपनी एलईएएफ पैकेजिंग जो पहले से ही खाद्य उद्योग के लिए 100 फीसदी बायोडिग्रेडेबल फाइबर पैकेजिंग का उत्पादन और निर्माण कर रही है। कंपनी घास के रेशों का परीक्षण कर कार्यक्षमता को साबित करेगी, और इसका उपयोग व्यावसायिक पैमाने पर किया जाएगा।