नर्मदा कुप्पुस्वामी जानी-मानी स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं। वे 4 दशक से भी अधिक समय से इस पेशे में हैं और फिलहाल अमेरिका के शिकागो में काम कर रही हैं। उन्होंने ऑब्सटेट्रिकल नियोनेटल डेथ इवैलुएशन एंड रेडक्शन (वंडर) नाम से एक ऐप शुरू किया है। ये ऐप मातृत्व मृत्यु दर को कम करने में मदद करता है।
इस ऐप में गर्भवती महिलाओं के बारे में पूरी जानकारियां दर्ज की जाती हैं और उनकी जांच में आये आंकड़ों को ऐप में डाला जाता है। अगर टेस्ट रिजल्ट में कोई आंकड़ा सामान्य से कम पाया जाता है, तो ये ऐप एक अलार्म देता है, जिससे स्वास्थ कर्मचारी अलर्ट हो जाते हैं और गर्भवती महिला को जरूरी चिकित्सीय सेवा व दवाइयां मुहैया कराते हैं। जून 2019 में बिहार के दरभंगा जिले में ये ऐप लांच किया गया था और जिला अधिकारियों के मुताबिक, इस ऐप ने निचले स्तर के स्वास्थ्य कर्मचारियों मसलन एएनएम (ऑक्जिलरी नर्स मिडवाइव्स) व आशा को गर्भवती महिलाओं को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने में मदद की। अनिल अश्विनी शर्मा और उमेश कुमार राय ने इस ऐप को लेकर नर्मदा कुप्पुस्वामी से विस्तार से बात की। यहां पेश है बातचीत का मुख्य अंश:
सवाल: ये ऐप बनाने का खयाल आपको कैसे आया? ऐप तैयार करने में किस तरह चुनौतियां आईं?
जवाब: मेडिकल की पढ़ाई करते हुए मैंने पहली बार एक गर्भवती महिला को मरते हुए देखा था, तभी से मेरे मन में ये खयाल आया था कि मुझे इस समस्या के समाधान के लिए कुछ करना चाहिए। ये सोचकर ही मैं स्त्रीरोग विशेषज्ञ बनी। एक बार कई दिनों तक लगातार काम करने के बाद एक रात मेरे सामने एक विकट स्थिति आ गई थी। थकावट के कारण मुझे याद ही नहीं आ रहा था कि एक गर्भवती मरीज को कितनी दवाई देनी है। तब मैंने सोचा कि अगर ऐसी कोई व्यवस्था होती, जिससे पता चल पाता कि किसी स्थिति में कितनी दवाई की जरूरत है, तो इससे बहुत मदद मिल जाती। उसी दिन मुझे लगा कि ऐसा कुछ करने की जरूरत है, जिससे संकट के समय में डॉक्टरों को मदद मिल सके।
चूंकि सॉफ्टवेयर विकसित करने में काफी पैसा लगता है, इसलिए पैसे की कमी एक चुनौती थी। दूसरी चुनौती ये भी थी कि सभी चिकित्सक मरीजों के लिए इलाज के लिए कम्प्यूटर का इस्तेमाल नहीं करते हैं। जो ये जानते हैं कि कम्प्यूटर का इस्तेमाल इलाज में भी किया जा सकता है, वे भी इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें ये अतिरिक्त काम लगता है।
सवाल: ये ऐप कैसे काम करता है? मातृत्व मृत्यु दर कम करने में ये कैसे मदद करता है?
जवाब: वंडर एक सॉफ्टवेयर ऐप है, जिसे निम्न व मध्यस्तरीय स्वास्थ्य कर्मचारियों के इस्तेमाल के लिए तैयार किया गया है ताकि वे आत्मविश्वास के साथ गर्भवती महिलाओं को चिकित्सीय सेवा दे सके। इस ऐप में गर्भवती महिलाओं का रजिस्ट्रेशन किया जाता है और स्वास्थ्य कर्मचारी गर्भवती महिलाओं की निगरानी करते हैं। समय समय पर गर्भवती महिलाओं की जांच की जाती है और ब्लड प्रेशर, ऑक्सीजन का लेवल, तापमान आदि से जुड़े आंकड़े ऐप में डाले जाते हैं। ऐप में ऐसा सिस्टम है कि अगर किसी गर्भवती महिला का ब्लड प्रेशर, ऑक्सीजन लेवल, तापमान आदि सामान्य से कम होता है, तो ऐप में ये आंकड़े डालते ही संकेत मिलने लगता है। ये संकेत स्वास्थ्य कर्मचारियों को अलर्ट कर देते हैं कि गर्भवती महिला स्वास्थ्य जोखिम से जूझ रही है और उसे डॉक्टर से दिखाना चाहिए।
अगर सभी संकेतक सामान्य होते हैं, तो ऐप निम्नस्तरीय स्वास्थ्य कर्मचारियों को बताता है कि कैसे गर्भवती महिला की गुणवत्तापूर्ण देखभाल की जानी चाहिए। ऐपे उन सभी कारणों का समाधान देता है, जिनसे गर्भवती महिलाओं में दिक्कतें आ सकती हैं। उदाहरण के लिए, एएनएम गर्भवती महिला के घर जाकर इस ऐप के जरिए ही देखभाल कर सकती है। ‘वंडर किट’ भी है, जिसमें बायोमैट्रिक उपकरण होते हैं। इनके जरिए गर्भवती महिलाओं की कई तरह की जांच की जा सकती है।
अगर मरीजों को परिवहन की जरूरत है, तो 108 सिस्टम के जरिए इसकी व्यवस्था की जा सकती है और उन्हें स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया जा सकता है। अगर अस्पतालों में भी वंडर इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड सिस्टम है, तो ऐप अस्पताल के डॉक्टरों को अलर्ट भेज देता है कि फलां मरीज अस्पताल में आ रहा है और उसे क्या दिक्कतें है। इससे चिकित्सक पहले से तैयार रहते हैं और बिना किसी देरी के मरीजों का इलाज किया जा सकता है। ये व्यवस्था चिकित्सकों को संभावित इलाज, दवाइयां और टेस्ट के बारे में सुझाव देती है।
सवाल: मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वंडर ऐप पायलट प्रोजेक्ट के रूप में तमिलनाडु के इरोड जिले में शुरू किया गया था, जिसे बीच में ही बंद कर दिया गया, ऐसा क्यों किया गया?
जवाब: इस सवाल के लिए आपका शुक्रिया! उसमें एक चूक थी। उस पायलट प्रोजेक्ट को ‘सफल’ की जगह ‘असफल’ कहा गया। तमिलनाडु में ये प्रोजेक्ट पूरी तरह सफल था। इरोड से हमें जो सीख मिली, उसका इस्तेमाल हमने वंडर एप को और विकसित करने में किया और उसे दरभंगा में शुरू किया। मसलन, इरोड में हमने अस्पताल में होने वाली बच्चे के जन्म के वक्त होने वाली बेहोशी को वंडर ऐप के जरिए 92 प्रतिशत तक कम किया। दुनिया में गर्भवती महिलाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण बेहोशी है। 95 प्रतिशत मरीजों के लिए रेड अलर्ट था और उन्हें एक घंटे के भीतर मेडिकल सेवा दी गई और समस्याओं को नियंत्रण में लिया गया।
सवाल: लोगों में तकनीकी शिक्षा बेहद कम है। ऐसे में क्या आपको लगता है कि ये ऐप प्रभावी तरीके से काम कर पायेगा? क्या आप इस ऐप की सफलता की कोई कहानी साझा कर सकती हैं?
जवाब: हमारे पास दो वंडर ऐप हैं- एक मरीजों के इस्तेमाल के लिए और दूसरा निचले स्तर के स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए। दरभंगा में दूसरे ऐप का इस्तेमाल हो रहा है, इसलिए इसमें मरीजों के शिक्षित होने या नहीं होने से कोई समस्या नहीं होगी।
दरभंगा में कुल 65000 मरीजों में से 4.5 प्रतिशत मरीजों में गंभीर समस्याएं थीं। उन्हें 108 ट्रांसपोर्ट सिस्टम के जरिए तुरंत दरभंगा मेडिकल कॉलेज में पहुंचाया गया और इलाज हुआ। इसी तरह एक मरीज में खून की काफी कमी थी। एएनएम ने ऐप के जरिए ही इसकी शिनाख्त कर ली और 108 के जरिए उसे तुरंत मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। टेली हेल्थ ऐप के जरिए मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों को पहले से ही सूचित कर दिया गया था कि जो गर्भवती महिला भर्ती होने आ रही है, उसे खून की सख्त जरूरत है, ताकि मरीज के अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही खून का इंतजाम किया जा सके। जब महिला अस्पताल में आई, तो तुरंत उसे खून चढ़ाया गया औऱ दो दिनों में ही उसने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। नेशनल हेल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट में दरभंगा में प्रसूताओं को लेकर आंकड़ों में सुधार दिखा है।
सवाल: जून-जुलाई 2019 में बिहार के दरभंगा में ये ऐप लांच किया गया था, वहां ये कैसे काम कर रहा है?
जवाब: दरभंगा में इस ऐप के लांच होने से 6 महीने के भीतर 60000 गर्भवती महिलाओं का पंजीयन कराया गया। लेकिन, कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण प्रसूताओं को मिलने वाली सेवा पर असर पड़ा क्योंकि स्वास्थ्य कर्मचारियों को कोविड से जुड़ी गतिविधियों में लगाया गया था। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को चिकित्सीय सेवा देना एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन, तब भीये ऐप गर्भवती महिलाओं की मदद कर रहा था। अब हमने दोबारा ये कार्यक्रम शुरू कर दिया है और हमें लगता है कि कोविड पूर्व की स्थिति में पहुंचने में कुछ वक्त लगेगा।
सवाल: मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बिहार सरकार अब बिहार के बाकी जिलों में भी ये ऐप लांच करने की सोच रही है। क्या आपसे इस संबंध में संपर्क किया गया है?
जवाब: हां, पूरे बिहार में ये ऐप शुरू करने के लिए सरकार के साथ काम करने की उम्मीद कर रहे हैं। हम इसे दूसरे राज्यों में लागू करने के लिए भी बातचीत कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य देश के सभी राज्यों में इस ऐप को शुरू करना है।
सवाल : क्या केंद्र सरकार के साथ मिलकर अखिल भारतीय स्तर पर इस ऐप को चालू करने की आपकी कोई योजना है?
जवाब: हां! हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार इस तरफ ध्यान देगी। इस ऐप की अच्छाइयों और प्रभावों का प्रदर्शन कर सरकार का ध्यान खींचा जा सकता है।
सवाल: आपके अनुसार क्या वजह है कि भारत में मातृत्व मृत्यु दर ज्यादा दर्ज की जाती है?
सवाल: उच्च मातृत्व मृत्यु दर के पीछे कई वजहें हैं। इनमें से एक वजह कम उम्र में शादी कर देना है। अगर एक लड़की कम उम्र में गर्भवती हो जाती है, उसे गंभीर खतरा हो सकता है। गरीबी, आर्थिक कमजोरी व अशिक्षा अन्य वजहें हैं। गर्भवती महिलाओं को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवा देने वाले संस्थान भी अपर्याप्त हैं। एक बड़ी आबादी के लिए बहुत कम संस्थान उपलब्ध हैं।
पौष्टिक आहार की कमी और एनीमिया भी गर्भवती महिलाओं की जिंदगी को जोखिम में डालते हैं। भारत में करीब 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में एनीमिया होता है। भारत सरकार ने इसमें सुधार के लिए कई कदम उठाये हैं। इससे मातृत्व मृत्यु दर में काफी हद तक कमी आई है।
साल 1990 में प्रति एक लाख गर्भवती महिलाओं में से 556 की मौत हो जाती थी, जो साल 2016 में 77 प्रतिशत तक घटकर 130 पर आ गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस उपलब्धि के लिए भारत की सराहना की है। हालांकि ये उल्लेखनीय उपलब्धि है, लेकिन इससे ज्यादा मृत्य रोकना मुश्किल है क्योंकि पहले चरण के तहत जितना सुधार होना था, वो हो चुका है। अब जो सुधार होना है, वे स्वास्थ्य सेवाओं में करना होगा और हमें लगता है कि इसमें वंडर एप अहम भूमिका निभा सकता है।
सवाल: क्या आप वंडर ऐप में कुछ और विशेषताओं को शामिल करने पर विचार कर रही हैं?
जवाब: हां, हम नियमित तौर पर ऐप को अपग्रेड करते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में हर रोज बदलाव आता है। जब भी कोई नया तरीका ईजाद होता है, हम उसे ऐप में शामिल करने की कोशिश करते हैं। पहली बार ऐप लांच होने से लेकर अब तक कई बार इसे अपग्रेड कर चुके हैं। ये कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है। कोविड-19 और दरभंगा में बाढ़ के बाद भी हमने कुछ नया जोड़ा है।