अब बैक्टीरिया की मदद से पैदा होगी बिजली, ग्रीनहाउस गैसों में भी आएगी कमी

रेडबौड विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजिस्ट ने यह साबित कर दिखाया है कि मीथेन की खपत करने वाले बैक्टीरिया की मदद से बिजली पैदा की जा सकती है
अब बैक्टीरिया की मदद से पैदा होगी बिजली, ग्रीनहाउस गैसों में भी आएगी कमी
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क्या आपने कभी सोचा है कि बैक्टीरिया की मदद से बिजली पैदा की जा सकती है पर इस नामुमकिन लगने वाली बात को रेडबौड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सच साबित कर दिखाया है। विश्वविद्यालय से जुड़े माइक्रोबायोलॉजिस्ट ने अपनी प्रयोगशाला में यह साबित कर दिखाया है कि मीथेन की खपत करने वाले बैक्टीरिया की मदद से बिजली पैदा की जा सकती है।  

यदि यह खोज व्यवहारिक रूप से सफल होती है तो इससे न केवल बिजली की समस्या को हल करने में मदद मिलेगी। साथ ही वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते बोझ को कम करने में भी मददगार होगी। वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन से जुड़ी जानकारी को 12 अप्रैल 2022 को जर्नल फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोलॉजी में साझा किया है।

गौरतलब है कि कैंडिडैटस मेथनोपेरेडेन्स नामक बैक्टीरिया स्वाभाविक रूप से मीठे पानी के स्रोतों जैसे खाइयों और झीलों में पाए जाते हैं। जो अपने बढ़ने के लिए मीथेन का उपयोग करते हैं। नीदरलैंड में यह बैक्टीरिया ज्यादातर उन जगहों पर पनपते हैं जहां सतह और जमीन के भीतर पानी नाइट्रोजन से दूषित होता है, क्योंकि इन बैक्टीरिया को मीथेन को तोड़ने के लिए नाइट्रोजन की जरुरत पड़ती है। 

अपने इस अध्ययन में पहले शोधकर्ता इन सूक्ष्मजीवों में होने वाली रूपांतरण प्रक्रियाओं के बारे में जानना चाहते थे। साथ ही वो यह देखने के लिए भी उत्सुक थे कि क्या इसका इस्तेमाल बिजली पैदा करने के लिए भी संभव होगा। इस बारे में माइक्रोबायोलॉजिस्ट और शोध से जुड़ी शोधकर्ता कॉर्नेलिया वेल्टे का कहना है कि यह ऊर्जा क्षेत्र के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में जहां बायोगैस बनाई जाती है, वहां इसे सूक्ष्मजीवों द्वारा पैदा किया जाता है और बाद में जलाया जाता है, जो एक टरबाइन को चलाता है, जिससे बिजली पैदा होती है। ऐसे में वहां पैदा हुई आधे से भी कम बायोगैस को बिजली में बदला जाता है, जोकि इससे बिजली पैदा करने की अधिकतम क्षमता है। वो यह देखना चाहते थे कि क्या हम इन सूक्ष्मजीवों की मदद से कुछ बेहतर कर सकते हैं। 

कैसे बिजली पैदा करते हैं यह बैक्टीरिया

रेडबौड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इससे पहले भी यह कर दिखाया था कि एनामॉक्स बैक्टीरिया की मदद से बिजली पैदा की जा सकती है। जो मीथेन की जगह प्रक्रिया के दौरान अमोनियम का उपयोग करते हैं। इस बारे में माइक्रोबायोलॉजिस्ट हेलेन ओबोटर ने बताया कि मूल रूप से इन बैक्टीरिया में प्रक्रिया समान ही होती है। हम यहां दो टर्मिनलों के साथ एक प्रकार की बैटरी बनाते हैं, जिसमें एक जैविक टर्मिनल और दूसरा रासायनिक टर्मिनल होता है।

हम एक इलेक्ट्रोड पर बैक्टीरिया विकसित करते हैं, जिससे बैक्टीरिया मीथेन का रूपांतरण कर इलेक्ट्रान पैदा करते हैं। अब तक इस प्रक्रिया की मदद से शोधकर्ता 31 फीसदी मीथेन को बिजली में बदलने में कामयाब रहे है। हालांकि उनका लक्ष्य इससे ज्यादा क्षमता पैदा करने का है। जिसके लिए वो सिस्टम में सुधार कर रहे हैं। 

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