शोधकर्ताओं ने एक ऐसी सामग्री विकसित की है जो सौर पैनलों की क्षमता में भारी वृद्धि कर सकती है। यह कारनामा लेहाई विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कर दिखाया है।
शोध में कहा गया है कि सौर सेल में सक्रिय परत के रूप में सामग्री का उपयोग करने वाला एक प्रोटोटाइप औसतन 80 प्रतिशत तक फोटोवोल्टिक अवशोषण करता है। जो फोटोएक्साइटेड वाहकों की उच्च उत्पादन दर को अभूतपूर्व तरीके से 190 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है। यह एक ऐसा उपाय है जो सिलिकॉन-आधारित सामग्रियों के लिए सैद्धांतिक शॉक्ले-क्विसर दक्षता सीमा से कहीं अधिक है और फोटोवोल्टिक के लिए क्वांटम सामग्रियों के क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाता है।
शोध में शोधकर्ता का कहना है कि यह कार्य टिकाऊ ऊर्जा समाधानों की हमारी समझ और विकास में एक महत्वपूर्ण छलांग है, जो निकट भविष्य में सौर ऊर्जा दक्षता और पहुंच को फिर से परिभाषित करने वाला नया नजरिया है। यह शोध साइंस एडवांसेज पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
शोध में कहा गया है कि सामग्री की दक्षता में उछाल मुख्य रूप से इसकी विशिष्ट "मध्यवर्ती बैंड अवस्थाओं" के कारण है, विशिष्ट ऊर्जा स्तर जो सामग्री की इलेक्ट्रॉनिक संरचना के भीतर इस तरह से लगाया गया हैं कि वह सौर ऊर्जा रूपांतरण के लिए आदर्श हैं।
इन अवस्थाओं में ऊर्जा का स्तर सबसे अधिक होता है, ऊर्जा की सीमाएं जहां सामग्री कुशलतापूर्वक सूर्य के प्रकाश को अवशोषित कर सकती है और चार्ज वाहक उत्पन्न कर सकती है जो लगभग 0.78 से 1.26 इलेक्ट्रॉन वोल्ट के बीच है।
इसके अलावा यह सामग्री विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के इन्फरा रेड और दिखाई देने वाले हिस्सों में अवशोषण के उच्च स्तर के साथ अच्छा प्रदर्शन करती है।
पारंपरिक सौर सेलों में, अधिकतम बाहरी क्वांटम दक्षता (ईक्यूई) 100 प्रतिशत है, जो सूर्य के प्रकाश से अवशोषित प्रत्येक फोटॉन के लिए एक इलेक्ट्रॉन के उत्पादन और जमा करने का काम करता है। हालांकि, पिछले कई वर्षों में विकसित कुछ उन्नत सामग्रियों ने उच्च-ऊर्जा फोटॉनों से एक से अधिक इलेक्ट्रॉन उत्पन्न करने और एकत्र करने की क्षमता हासिल की है, जो 100 प्रतिशत से अधिक के ईक्यूई के लिए जानी जाती हैं।
जबकि इस तरह की मल्टीपल एक्साइटन जनरेशन (एमईजी) सामग्रियों का अभी तक व्यापक रूप से व्यवसायीकरण नहीं किया गया है, लेकिन वे सौर ऊर्जा प्रणालियों की दक्षता को काफी हद तक बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। लेहाई द्वारा विकसित सामग्री में, मध्यवर्ती बैंड अवस्थाएं पारंपरिक सौर सेलों द्वारा खोई गई फोटॉन ऊर्जा को कैप्चर करने में सक्षम बनाती हैं, जिसमें परावर्तन और गर्मी का उत्पादन शामिल है।
शोधकर्ताओं ने "वैन डेर वाल्स गैप्स" तकनीक का फायदा उठाकर नई सामग्री विकसित की, जो परतदार दो-आयामी सामग्रियों के बीच परमाणु रूप से छोटे फासले हैं। ये फासले अणुओं या आयनों को सीमित कर सकते हैं और सामग्री वैज्ञानिक आमतौर पर सामग्री के गुणों को समायोजित करने के लिए अन्य तत्वों को सम्मिलित करने, या एक दूसरे से जोड़ने के लिए उनका उपयोग करते हैं।
शोध के मुताबिक, अपनी नई सामग्री विकसित करने के लिए, लेहाई शोधकर्ताओं ने जर्मेनियम सोलेनाइड (जीईएसई) और टिन सल्फाइड (एसएनएस) से बने दो-आयामी पदार्थ की परतों के बीच शून्य-संयोजी तांबे के परमाणु डाले। शोधकर्ताओं ने अवधारणा के प्रमाण के रूप में प्रोटोटाइप विकसित किया।
शोध के हवाले से शोधकर्ता ने कहा, इसकी तीव्र प्रतिक्रिया और बढ़ी हुई दक्षता तांबे के इंटरकलेटेड जीईएसई व एसएनएस की उन्नत फोटोवोल्टिक प्रयोगों में उपयोग के लिए क्वांटम सामग्री के रूप में क्षमता दिखाती है, जो सौर ऊर्जा रूपांतरण में दक्षता में सुधार के लिए एक मार्ग प्रदान करती है।
यह अगली पीढ़ी के, उच्च-कुशल सौर सेलों के विकास के लिए एक आशाजनक तरीका है, जो दुनिया भर में ऊर्जा की आवश्यकताओं को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
शोध के मुताबिक, नए डिजाइन किए गए क्वांटम पदार्थ को वर्तमान सौर ऊर्जा प्रणालियों में लगाने के लिए और अधिक शोध और विकास की आवश्यकता होगी। इन सामग्रियों को बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रयोगात्मक तकनीक पहले से ही अत्यधिक उन्नत है।
वैज्ञानिकों ने समय के साथ एक ऐसी विधि में महारत हासिल कर ली है जो पदार्थों में परमाणुओं, आयनों और अणुओं को सटीक रूप से सम्मिलित करती है।