ग्लायोमा मस्तिष्क में होने वाला एक प्रकार का घातक ट्यूमर है जो जानलेवा हो सकता है। एक ताजा अध्ययन में भारतीय शोधकर्ताओं ने ग्लायोमा की वृद्धि से जुड़े जैव संकेतकों का पता लगाया है जो इसकी पहचान और उपचार में मददगार हो सकते हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुरऔर टाटा मेमोरियल अस्पताल, मुंबईके शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से किए गए शोध में एनएलआर समूह के जीन्स और उनसे संबंधित प्रतिरक्षा संकेतों की कार्यप्रणाली का अध्ययन किया गया है और जैव संकेतक प्रोटीन एनएलआरपी12 की पहचान की गई है। यह प्रोटीन प्रतिरक्षा संबंधी प्रतिक्रिया में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि तंत्रिका तंत्र में न्यूरॉन की सहायक ग्लियल कोशिका माइक्रोग्लिया में एनएलआरपी12 प्रोटीन की कमी से कोशिकाओं में असामान्य वृद्धि हो सकती है। जबकि, अध्ययन में एनएलआरपी12 की कमी वाली ग्लायोमा ट्यूमर कोशिकाओं का प्रसार कम देखा गया है।
ग्लियल कोशिकाएं तंत्रिका तंत्र में संतुलन बनाए रखने के साथ-साथ मरम्मत में भी अपनी भूमिका निभाती हैं और इन कोशिकाओं में ही ग्लायोमा ट्यूमर बनता है। सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोग्राफी के बावजूद ग्लायोमा से पीड़ित मरीजों के जीवित बचने की दर कम होती है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर की प्रमुख शोधकर्ता डॉ सुष्मिता झा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “कैंसर जीनोम एटलस से ग्लायोमा ग्रस्त रोगियों के आंकड़ों प्राप्त किए गए हैं। इन आंकड़ों के उपयोग से एनएलआर समूह के जीन्स, कोशिका प्रसार के संकेतकों, डीएनए मरम्मत, ट्यूमर रोकथाम और ग्लायोमा पैथोलॉजी से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण कड़ियों को जोड़कर उनका अध्ययन किया गया है। यह नेटवर्क उन जीन्स के बारे में जानकारी देता है जो ग्लायोमा में रूपांतरित हो जाते हैं।”
डॉ झा ने कहा कि “एटलस के आंकड़े ट्यूमर ऊतकों से प्राप्त होते हैं, जिसमें ग्लायोमा कोशिकाओं, एंडोथेलियल कोशिकाओं (रक्त वाहिकाओं की परत बनाने वाली कोशिकाएं) और ट्यूमर से जुड़े माइक्रोग्लिया/मैक्रोफेज (ट्यूमर के भीतर प्रतिरक्षा कोशिकाएं) सहित कई प्रकार की कोशिकाएं शामिल हैं। इसीलिए, अध्ययन में सामान्य कोशिकाओं और मस्तिष्क ट्यूमर कोशिकाओं में विशिष्ट अंतरों की पहचान के लिए कोशिका संवर्धन किया गया है। मस्तिष्क के ऊतकों से प्राप्त प्रयोगात्मक आंकड़ों के उपयोग से इन ऊतकों में नए जैव संकेतकों की मौजूदगी की पुष्टि की गई है।”
मस्तिष्क को संकेत भेजने वाली प्रोटीन से बनी रासायनिक संरचनाएं जिन्हें रिसेप्टर्स कहते हैं, प्रतिरक्षा कोशिकाओं द्वारा व्यक्त संदेशों को प्राप्त एवं रूपांतरित करने के लिए जानी जाती हैं। एनएलआर समूह के रिसेप्टर्स प्रतिरक्षा तंत्र से जुड़े प्रमुख नियामक होते हैं। एनएलआर रिसेप्टर्स को कई कैंसर रूपों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि, ग्लायोमा में एनएलआर की भूमिका के बारे में जानाकारी सीमित है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कैंसर के मामले में एनएलआर की भूमिका को समझने से चिकित्सीय रणनीति और दवाओं के विकास में मदद मिल सकती है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अनुदान प्राप्त यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं मेंडॉ सुष्मिता झा के अलावा निधि शर्मा, शिवांजलि सक्सेना, ईशान अग्रवाल, शालिनी सिंह, वर्षा श्रीनिवासन, एस. अरविंद, सुष्मिता पॉल और श्रीधर एपारी शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)