क्वींस यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उनकी यह खोज कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए नए उपचार का मार्ग प्रशस्त कर सकती है, जिनमें सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी समस्याओं से ग्रस्त लोग भी शामिल हैं।
बता दें कि सिस्टिक फाइब्रोसिस एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है, जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है। लेकिन यह अग्न्याशय, यकृत, गुर्दे और आंतों जैसे अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को अक्सर सांस लेने में कठिनाई, फेफड़ों में बार-बार संक्रमण, साइनस में संक्रमण, धीमा विकास, उंगलियों में बदलाव और अधिकांश पुरुषों में बांझपन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि इन लक्षणों की गंभीरता लोगों में अलग-अलग हो सकती है।
अपनी इस खोज के बारे में क्वीन्स यूनिवर्सिटी के वेलकम-वोल्फसन इंस्टीट्यूट फॉर एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन (डब्ल्यूडब्ल्यूआईईएम) और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर मिगुएल ए वाल्वानो ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "एक्रोमोबैक्टर बैक्टीरिया लंबे समय तक रहने वाले गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है। लेकिन अब तक इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी कि इस प्रकार का बैक्टीरिया मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ कैसे व्यवहार करता है।“
उनके मुताबिक ये बैक्टीरिया सख्त होते हैं और कई अलग-अलग एंटीबायोटिक दवाओं का प्रतिरोध कर सकते हैं। ऐसे में, पारंपरिक इलाज की मदद से इस बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण का इलाज आसान नहीं होता। खासकर ऐसे मरीजों में जो सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं या फिर जिन्हें कीमोथेरेपी दी गई है, उनमें इसका उपचार वास्तव में कठिन होता है।
क्या कुछ आया अध्ययन में सामने
रिसर्च से पता चला है कि जब शरीर की प्रतिरक्षा कोशिकाएं (मैक्रोफेज) इन जीवाणुओं को घेर लेती हैं, तो यह बैक्टीरिया एक विशेष प्रोटीन कॉम्प्लेक्स जिसे टाइप III स्राव प्रणाली कहा जाता है, उसका उपयोग करके कोशिकाओं के भीतर भी जीवित रह सकता है। ऐसा करने के लिए यह कॉम्प्लेक्स ऐसे मॉलिक्यूल्स छोड़ते है जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं को खुद ब खुद मरने पर मजबूर कर देते हैं।
ऐसे में जब प्रतिरक्षा कोशिकाएं स्वयं नष्ट हो रही होती हैं, तो वो चेतावनी का एक संकेत देती है। इन संकेतों की मदद से वो इन घुसपैठियों से लड़ने के लिए अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को बुलावा भेजती हैं।
हालांकि, इसके बावजूद एनएलआरसी4 और एनएलआरपी3 नामक दो इनफ्लेमेशन सेंसरों की कमी वाली प्रतिरक्षा कोशिकाएं मरती नहीं हैं। इसका तात्पर्य है कि रोगजनक की पहचान करने के लिए इन दो सेंसरों की आवश्यकता होती है।
शोधकर्ताओं ने देखा कि जब 'एक्रोमोबैक्टर' संक्रमण का कारण बनता है, तो वो फेफड़ों की संरचना को नुकसान पहुंचाता है और यदि एक विशिष्ट स्रावी मार्ग ठीक से काम कर रहा है तो यह लोगों को बहुत बीमार कर देता है। हालांकि, यदि बैक्टीरिया द्वारा इस मार्ग में म्युटेशन होता है, तो वो गंभीर बीमारी का कारण नहीं बनता है।
इससे पता चलता है कि प्रतिरक्षा कोशिकाओं (मैक्रोफेज) द्वारा अपने आप को खत्म करने के लिए दिया संकेत टाइप III स्राव प्रणाली के मार्ग के कारण होता है। हालांकि, प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा भेजा यह संकेत बैक्टीरिया को खत्म के लिए पर्याप्त नहीं होता।
अपनी इस रिसर्च के अगले चरण में वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने का प्रयास करेंगें बैक्टीरिया 'एक्रोमोबैक्टर' के पास ऐसे कौन से अन्य हानिकारक प्रोटीन होते हैं, जो इसे जीवित रहने के साथ शरीर में अन्य प्रकार की कोशिकाओं पर हमला करने में मदद करते हैं। यह जानकारियां टाइप III स्राव प्रणाली और अन्य प्रोटीन संबंधी नए उपचार खोजने में मददगार हो सकती हैं।
इस अध्ययन के नतीजे सेल प्रेस जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।