नेपाल के लोगों से मिलती-जुलती है भारत के हिमालयी राज्यों में रहने वाले लोगों की वंशावली

वंशक्रम में से कुछ शुरुआती मिश्रण के ऐसे प्रमाण मिलते हैं जो उत्तराखंड, भारत की कुछ हिमालयी क्षेत्रीय जनसंख्या सहित विभिन्न नेपाली आबादी में भी व्याप्त हैं
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, विजय
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आनुवंशिक विविधता और नेपाल के निवासियों तथा इसके प्राचीन इतिहास को समझने के लिए, वैज्ञानिकों की एक टीम ने नेपाली आबादी के कई मातृपक्षीय या मैटरनल माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का अध्ययन किया। अध्ययन के मुताबिक तिब्बत के बर्मी समुदाय के लोग पूर्व ऐतिहासिक काल से हिमालयी क्षेत्र में बसे हुए हैं।

उनके पूर्वी एशिया से आए अधिकतर पूर्वजों को नव पाषाण युग या नियोलिथिक ऐज के तिब्बत से लगभग आठ लाख वर्ष पहले (केवाईए) की अवधि में हुए जनसंख्या के दूसरी जगहों पर बसने या माईग्रेशन से जोड़ा जा सकता है। यह अध्ययन प्रागैतिहासिक हिमालयी जनसंख्या की माता से संबंधी उत्पत्ति का पुनर्निर्माण करता है।

यह अध्ययन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियोसाइंसेस के वैज्ञानिकों की अगुवाई में किया गया।

यह आनुवंशिक प्रवाह, सगोत्र विवाह (एंडोगैमी), सम्मिश्रण, अलग रहने और प्राकृतिक चयन की उस व्याख्या को करने में मदद करता है जिसने नेपाली जनसंख्या के बीच आनुवंशिक विविधता को बनाए रखा है। यह दूसरे जगहों पर बसने की उन घटनाओं पर प्रकाश डालता है जिसके कारण यूरेशिया से वर्तमान नेपाली जनसंख्या के पूर्वी एशियाई पूर्वज नेपाल में आकर रहने लगे।

आधुनिक मनुष्य लगभग दो लाख वर्ष पहले (केवाईए) अफ्रीका में पैदा हुआ था और 60 और 70 केवाईए के बीच अफ्रीका से बाहर चला गया था। इस प्रक्रिया में कई आबादी पैदा हुई और हर एक का अपना विकासवादी इतिहास था।

आनुवंशिक प्रवाह (जेनेटिक ड्रिफ्ट), सगोत्र विवाह (एंडोगैमी), सम्मिश्रण, अलगाव और प्राकृतिक चयन कुछ ऐसी विकासवादी प्रक्रियाएं हैं, जिन्होंने समूचे विश्व में मानव जनसंख्या के बीच आनुवंशिक विविधता में योगदान दिया है। जिसमें आनुवंशिक रोगों, संक्रामक रोगों, औषधियों के लिए चिकित्सीय प्रतिक्रिया और अन्य स्थितियों के प्रति संवेदनशीलता और प्रतिरोध शामिल है।

इन घटनाओं को समझना नेपाल जैसे देश में अत्यधिक प्रासंगिक है क्योंकि वहां विश्व की सबसे समृद्ध जातीय, सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक विविधता है और विभिन्न मानवजनित या एंथ्रोपोलॉजिकल  रूप से अच्छी तरह से परिभाषित आबादी रहती है।

यह उस आबादी के हिस्सों को शरण देता है जो पूर्वी एशियाई (मंगोलियाई, तिब्बती, चीनी, दक्षिण पूर्व एशियाई) आबादी के समान हैं। ये लोग कुछ दक्षिण एशियाई लोगों के समान हैं और कुछ पश्चिम यूरेशियाई लोगों के समान हैं। पश्चिमी और पूर्वी हिमालय के बीच एक पुल के रूप में कार्य करते हुए, नेपाल दक्षिण और पूर्व एशियाई अनुवांशिक वंशक्रम को समझने के लिए एक अनोखा आधार प्रदान करता है।

वैज्ञानिकों ने पाया कि नेपाल की बहुत ऊंचाई पर रहने वाली शेरपा आबादी को छोड़कर, नेपाल के अधिकांश तिब्बती–बर्मी भाषी समुदाय तिब्बत, म्यांमार और दक्षिण एशिया से महत्वपूर्ण अनुवांशिकता रखते हैं और दक्षिण पूर्व तिब्बत, पूर्वोत्तर भारत, उत्तर भारत के उत्तराखंड, म्यांमार और थाईलैंड में रहने वाली आबादी के साथ अपने साझे वंशक्रम को उजागर करते दिखते हैं।

इस वंशक्रम में से कुछ शुरुआती मिश्रण के ऐसे प्रमाण मिलते हैं जो उत्तराखंड, भारत की कुछ हिमालयी क्षेत्रीय जनसंख्या सहित विभिन्न नेपाली जनसंख्या में भी व्याप्त हैं।

ह्यूमन जेनेटिक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन हिमालय के दक्षिण में रहने वाली तिब्बत की बर्मी जनसंख्या की जटिलता को दूर करने की दिशा में अगला कदम है।

वैज्ञानिकों ने कहा कि इस अध्ययन में अधिक आबादी को शामिल करने के साथ-साथ अन्य आनुवंशिक चिह्नों या मार्करों का उपयोग किया गया है जो इस बात की और इशारा करता है कि इस दिशा में आगे भी अध्ययन की आवश्यकता है।

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