Credit: Flickr
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अमीर देशों के स्कूलों की प्रगति के गिरते स्तर का बड़ा कारण प्रवासन

कई प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट के अध्ययनों में यह बात निकलकर आई
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विकासशील देशों में पिछले कई दशकों से यह धारणा बनी हुई है कि अमीर देशों के स्कूलों की प्रगति हमेशा नंबर वन रही है। लेकिन अब इस धारणा को तोड़ने का वक्त आ गया है। एक विस्तृत अध्ययन में यह बात निकल आई है कि विश्व के सबसे अधिक अमीर देशों के समूह (33 ओईसीडी सदस्य देश यानी आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के स्कूलों में छात्रों की प्रगति का स्तर पिछले एक दशक से लगातार गिरते जा रहा है और यह सिलसिला जारी है। 

द इकोनॉमिस्ट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी के पहले ही अमेरिका के स्कूलों की प्रगति लगातार नीचे की ओर जा रही थी। अमीर देशों में 2010 के पहले के पांच दशकों तक अपने राष्ट्रीय शैक्षिक प्रगति मूल्यांकन के माध्यम से पढ़ने वाले विद्यार्थियों के प्रदर्शन को ट्रैक किया है। इसे इन देशों का राष्ट्र का रिपोर्ट रिपोर्ट कार्ड भी कहा जाता है। 2010 के पहले के पांच दशकों में से अधिकांश देशों में सुधार होता रहा। लेकिन 2010 के बाद से स्कूली प्रगति में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।

स्कूलों की प्रगति स्तर के गिरने के कारणों में दो बातें सबसे अहम हैं। पहली बात यह निकल कर आई है कि छात्रों में पिछले दशक के दौरान तेजी से बदलाव आया और इससे स्कूलों के लिए उनमें सुधार करना मुश्किल हो गया है। दूसरा सबसे बड़ा कारण है अमीर देशों में पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ता प्रवासन।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्यययन में स्कूली प्रगति के गिरते स्तर का कारण बढ़ते प्रवासन ने महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि जर्मनी में पहली या दूसरी पीढ़ी के अप्रवासी किशोरों की हिस्सेदारी 2012  और 2022 के बीच दोगुनी हो गई  यानी 13 प्रतिशत से 26 प्रतिगति हो गई। ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया और स्विटजरलैंड में भी इसी प्रकार की बढ़ोतरी देखी गई है। ध्यान रहे नए बच्चे जो आते हैं आम तौर पर अपने साथियों की तुलना में गरीब होते हैं और उनके अपने घरों पर विदेशी भाषा बोलने की अधिक संभावना होती है। इससे स्कूली प्रगति में गिरावट दर्ज की गई।

पिछले दो दशकों में कई बड़े आर्थिक झटकों के बाद उभरे वित्तीय संकट के कारण गरीबी में बच्चों की हिस्सेदारी  33 ओईसीडी सदस्य देशों (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ) में से 20 में बढ़ी। 2018 तक अभी भी 13 देश (33 में से) ऐसे थे जिनकी गरीबी दर दस साल पहले की तुलना में अधिक थी।

ध्यान रहे कि यदि बच्चे बीमार या भूखे हैं तो ऐसे बच्चे कम सीखते हैं। यही नहीं गरीबी के कारण अव्यवस्थित घर भी उनकी हर प्रकार की प्रगति में रुकावट का कारण बनते हैं। इन कठिनाइयों के परिणामस्वरूप स्कूल में पिछड़ने वाले बच्चे अपने माता-पिता की वित्तीय स्थिति में सुधार होने पर भी पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं। एक और कारण बताया गया है कि स्क्रीन उनकी पढ़ाई को प्रभावित कर रही है।

अमीर दुनिया के 60 प्रतिशत से अधिक छात्रों का कहना है कि उनका फोन या टैबलेट कभी-कभी स्कूल की कक्षाओं के दौरान उनका ध्यान भटकाता है। जो छात्र स्कूल में उपकरणों के साथ बहुत समय बिताने की बात करते हैं, वे अंतरराष्ट्रीय परीक्षणों में दूसरों की तुलना में कम स्कोर करते हैं। स्पेन के पूर्व शिक्षा मंत्री मोंटेसे गोमेंडियो कहते हैं कि स्कूलों में मानकों को बढ़ाना सार्वजनिक नीति के अधिकांश अन्य क्षेत्रों में सुधार लाने की तुलना में अधिक कठिन है।

कई अन्य अमीर देशों के छात्रों के टेस्ट स्कोर भी निराशाजनक रुझान दिखाते हैं। दो दशकों से ओईसीडी के विश्लेषक दर्जनों जगहों पर 15 साल के बच्चों को प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट (पीआईएसए) के नाम से जानी जाने वाली तुलनात्मक परीक्षाओं में बैठने के लिए कह रहे हैं। 2018 में इन परीक्षणों में पाया गया कि ओईसीडी देशों में एक सामान्य 15 वर्षीय बच्चा गणित या विज्ञान में उतना ही निपुण था, जितना कि 2000 के दशक की शुरुआत और मध्य में हुआ करता था लेकिन 2009 के बाद यह गिरावट शुरू हुई। हालांकि इस मामले में पीआईएसए अंतरराष्ट्रीय परीक्षण डेटा ही एकमात्र उपलब्ध स्रोत नहीं है। देखा जाए तो नीदरलैंड में इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द इवैल्यूएशन ऑफ एजुकेशनल अचीवमेंट द्वारा हर कुछ वर्षों में आयोजित परीक्षाएं यह दिखाती हैं कि कई अमीर देशों में महामारी से पहले के वर्षों में स्तर गिर रहा था।

पिछले साल दो अर्थशास्त्रियों नादिर अल्टिनोक और क्लाउड डाइबोल्ट द्वारा प्रकाशित एक डेटासेट से पता चलता है कि 20 समृद्ध देशों के एक समूह में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता 1980 और 1990 के दशक में काफी तेजी से बढ़ी लेकिन उसके बाद से यह प्रगति धीमी हो गई है। पीआईएसए द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार ओईसीडी सदस्य देशों में लगभग एक चौथाई 15 वर्षीय बच्चे गणित और विज्ञान में बुनियादी दक्षता हासिल नहीं कर पाते हैं।

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