150 साल का हुआ मौसम विभाग, कैसा रहा अब तक का सफर

पहले चक्रवाती तूफान और फिर बाढ़ की वजह से चौपट हो रही भारत की अर्थव्यवस्था को काबू करने के लिए 1875 में मौसम विभाग की स्थापना की गई
1958 में आईएमडी ने नई दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे पर मौसम संबंधी अनुप्रयोगों के लिए रडार प्रौद्योगिकी को अपनाया
1958 में आईएमडी ने नई दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे पर मौसम संबंधी अनुप्रयोगों के लिए रडार प्रौद्योगिकी को अपनाया(साभार: आईएमडी)
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भारत प्राकृतिक रूप से जितना सुंदर और समृद्ध था, उतना ही संवेदनशील भी। यह देश उपजाऊ कृषि भूमि, प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता, और कुशल मानव श्रम के लिए जाना जाता था। यहां लगभग हर कीमती धातु जैसे सोना, चांदी, और हीरे की खदानें मौजूद थीं। साथ ही, भारत का वस्त्र उद्योग, मसालों का उत्पादन और व्यापार मार्गों पर नियंत्रण ने इसे विदेशी शासकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाया, इसलिए पहले मुगलों और फिर अंग्रेजों ने यहां अपना शासन स्थापित किया।

लेकिन यहां प्राकृतिक आपदाएं खासकर जलवायु संबंधी आपदाएं लोगों के लिए चुनौतियां बन गई थीं। कभी चक्रवात, कभी बाढ़ तो कभी सूखा खेती–किसानी के लिए परेशानी पैदा करते रहते थे। यही वजह थी कि भारत में मौसम को जानने–समझने की कवायद वैदिक काल से ही चली आ रही थी। अंग्रेजों ने इसे आधुनिक मौसम विज्ञान से जोड़ा। वैसे तो इसकी शुरुआत सत्रहवीं शताब्दी में बैरोमीटर के आविष्कार और 1709 में तापमान मापने के लिए पारा थर्मामीटर के आविष्कार से मानी जाती है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कुछ आरंभिक अधिकारी, जो उस समय के यूरोप की वैज्ञानिक जिज्ञासा से प्रभावित थे, ने भारत में शौकिया तौर पर मौसम संबंधी जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की। हालांकि भारत की जलवायु उनके अपने देश से बिल्कुल अलग थी। लेकिन 1785 में कलकता में कर्नल पियर्स ने एक शौकिया पर्यवेक्षक के रूप में भारत में आधुनिक मौसम विज्ञान की नींव रखीं। आधिकारिक तौर पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1792 में मद्रास में पहली खगोलीय वेधशाला एक दूरबीन के साथ स्थापित की। इसका उद्देश्य भारत में खगोल विज्ञान, भूगोल और नौवहन (नेविगेशन) के ज्ञान को बढ़ावा देना था। भारत में दूसरी वेधशाला ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1823 में कोलाबा, बॉम्बे (अब मुंबई), तीसरी 1836 में त्रिवेंद्रम (अब तिरुवनंतपुरम) में स्थापित की। शिमला में 1841 से चुंबकीय और मौसम संबंधी रिकॉर्ड रखा जाने लगा।

उधर 1857 की क्रांति के बाद भारत पर शासन करने के लिए अंग्रेजों ने साल 1858 में भारत सरकार अधिनियम पारित किया और पूरे भारत पर ब्रिटिश क्राउन का शासन शुरू हो गया। 1864 में कलकत्ता में एक विनाशकारी उष्णकटिबंधीय चक्रवात ने मात्र छह साल पहले अस्तित्व में आए भारत सरकार ने इसे चुनाैती के रूप में लिया। इस चक्रवात में 60 हजार से अधिक लोग मारे गए। साल 2023 में प्रकाशित एक पेपर “द कोलकाता साइक्लोन 1864: लॉस ऑफ लाइफ एंड इट्स इफेक्ट्स इन बंगाल, इंडिया” के मुताबिक 1737 से 2021 के बीच बंगाल के लोगों ने डेढ़ सौ से अधिक चक्रवात, बवंडर और टाइफून झेले हैं। 1737, 1864, 1874, 1876 और 1942 में बंगाल की खाड़ी में आए चक्रवात भयंकर थे, लेकिन 5 अक्टूबर 1864 को आया कोलकाता चक्रवात बंगाल ही नहीं, दुनिया के सबसे विनाशकारी चक्रवातों में से एक था।

इसके बाद 1866 और 1871 में मॉनसून की बारिश विफल हो गई। मौसम से जुड़ी इन आपदाओं से निपटने के लिए भारत सरकार ने साल 1875 में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की स्थापना की। इस तरह अब तक देश के अलग-अलग हिस्सों में खुले मौसम केंद्रों व सभी मौसम संबंधी कार्यों को एक केंद्रीय प्राधिकरण के अंतर्गत लाया गया। आईएमडी का गठन इस चुनौती को व्यवस्थित रूप से हल करने और औपनिवेशिक शासन की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से किया गया। यह भारतीय इतिहास का वह मोड़ था, जब पारंपरिक अनुभव आधारित ज्ञान को वैज्ञानिक पद्धति और तकनीकी उपायों के साथ जोड़ा गया।

एक ब्रिटिश मौसम एवं जीवाश्म विज्ञानी एच. एफ. ब्लैनफोर्ड को भारत सरकार का पहला मौसम रिपोर्टर नियुक्त किया गया। इसके बाद, बंगाल, पंजाब, मद्रास और संयुक्त प्रांत (जिसे अब उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है) की सरकारों के लिए चार प्रांतीय मौसम संबंधी रिपोर्टर स्थापित किए गए, जो क्रमशः कलकत्ता, लाहौर, मद्रास और इलाहाबाद में स्थित थे और अलीपुर (कलकत्ता) में केंद्रीय वेधशाला को छोड़कर सभी वेधशालाएं संबंधित प्रांतीय मौसम संबंधी रिपोर्टरों के सीधे नियंत्रण में काम करने लगीं। वेधशालाओं के पहले महानिदेशक सर जॉन एलियट थे जिन्हें मई 1889 में कलकत्ता मुख्यालय में नियुक्त किया गया। 1877 में भारत में भयंकर अकाल पड़ने के बाद, भारतीय मौसम विभाग को दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बारिश का मौसमी पूर्वानुमान तैयार करने के लिए कहा गया। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के लिए पहला दीर्घकालिक पूर्वानुमान 4 जून 1886 को आईएमडी द्वारा जारी किया गया था। यह भारत में मॉनसून वर्षा और हिमालय पर हिम आवरण से संबंधित था। इस प्रकार, भारत दीर्घकालिक पूर्वानुमान लगाने वाला पहला देश बन गया।

1856 में पुणे वेधशाला की स्थापना हुई
1856 में पुणे वेधशाला की स्थापना हुई (साभार: आईएमडी)

1875 से 1905 तक भारत मौसम विज्ञान विभाग का मुख्यालय कलकत्ता में स्थित था। 1875 में आईएमडी के नेटवर्क में 198 वर्षा स्टेशन और तापमान और अन्य मौसम संबंधी जानकारी देने वाली 87 वेधशालाएं शामिल थीं। 1900 तक यह संख्या बढ़कर 200 हो गई। 1905 में भारत मौसम विज्ञान विभाग का मुख्यालय शिमला स्थानांतरित कर दिया गया और कलकत्ता कार्यालय को शाखा कार्यालय का दर्जा दिया गया। भारत दैनिक मौसम रिपोर्ट पहली बार 1878 में शिमला से प्रकाशित हुई। इसी कार्यालय से मासिक मौसम समीक्षा, वार्षिक सारांश, मौसमी पूर्वानुमान अंतर्देशीय और बाढ़ के लिए डेटा तैयार करने का काम शुरू हुआ। यहां से नियमित रूप से चेतावनी भी जारी की जाती थी। आईएमडी ने बहुत पहले ही वैज्ञानिक परिणामों के प्रकाशन के महत्व को पहचान लिया गया था। ब्लैनफोर्ड ने “आईएमडी के संस्मरण” के प्रकाशन की शुरुआत की और खुद उनमें से कई के लेखक भी थे। “भारत की वर्षा” पर उनका काम बेजोड़ है।

1875 से 2025 के 150 वर्षों की यात्रा में, आईएमडी ने कई महत्वपूर्ण मील के पत्थर देखे हैं, जो इसे मौसम और उससे संबंधित विज्ञानों में दुनिया में एक प्रमुख संगठन के रूप में स्थापित करते हैं। कृषि के लिए मौसम के महत्व को जानते हुए 1856 में शिवाजी नगर, पुणे के कृषि कॉलेज परिसर में एक केंद्रीय एग्रोमेटेरोलॉजिकल वेधशाला स्थापित की गई, जिसने इस क्षेत्र में नवाचारों के लिए आधार तैयार किया और 1945 से क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्रों से किसानों के लिए मौसम बुलेटिन जारी किए जाने लगे। साथ ही, समन्वित फसल मौसम योजना शुरू की गई। 1967 में सूखा जलवायु विज्ञान और फसल उत्पादन पूर्वानुमान पर अध्ययन शुरू किए गए। 2021 में सभी जिलों और 3100 से अधिक खंडों में कृषि मौसम संबंधी परामर्श प्रदान किए जाने लगे, जिनमें एग्रोमेट फील्ड यूनिट्स और जिला एग्रोमेट यूनिट्स के मजबूत नेटवर्क का सहयोग लिया जाता था।

आईएमडी के हाइड्रोलॉजी (जल विज्ञान) क्षेत्र में योगदान की शुरुआत 1867 में कटक हाइड्रोलॉजिकल स्टेशन की स्थापना के साथ हुई। 1890 में भारत सरकार ने “भारत वर्षा प्रस्ताव” को अपनाया, जिसने पूरे देश में वर्षा माप को एक सामान्य रेन गेज के साथ मानकीकृत किया। बांधों की सुरक्षा के लिए जल संतुलन गणना तैयार करने के लिए 1949 में कोलकाता में दामोदर वेली कॉरपोरेशन (डीवीसी) मौसम विज्ञान इकाई की स्थापना की गई। वहीं 1954 में सरकार की बाढ़ नीति बनाने में आईएमडी ने बड़ी भूमिका निभाई। विमानन सेवाओं के लिए मौसम के महत्व को समझते हुए 1911 में आईएमडी के एविएशन डिवीजन की स्थापना की गई और 1921 में शिमला से रॉयल एयरफोर्स ऑपरेशनों के लिए पहला विमानन पूर्वानुमान जारी किया गया। 1929 में इंग्लैंड और भारत के बीच एयरमेल सेवाओं की शुरुआत ने एक भी नया इतिहास लिखा।

प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की उपलब्धि भी आईएमडी के लिए महत्वपूर्ण रही। सबसे पहले वायु डेटा मापने के लिए 1930 में पायलट बैलून निरीक्षण शुरू किया गया, जबकि 1964 में यूएसए से आयातित वेदर ब्यूरो रेडियो थियोडोलाइट, 1970 में मेटोक्स रेडियो थियोडोलाइट और 1977 में समीर द्वारा विकसित माइक्रोवेव उत्पाद इकाई जैसी प्रौद्योगिकियां शामिल की गई। 2008 में जीपीएस-आधारित रेडियो साउंडिंग सिस्टम की शुरुआत की। सैटेलाइट मौसम विज्ञान के साथ आईएमडी की भागीदारी 1960 में शुरू हुई, जब अमेरिका ने अपना पहला मौसम उपग्रह टाइरॉस-1 लॉन्च किया और आईएमडी ने 1963 में उपग्रह चित्र प्राप्त करना शुरू किया। विभाग ने वायु गुणवत्ता की निगरानी और पूर्वानुमान में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है। पिछले 150 वर्षों में मौसम विज्ञान, हाइड्रोलॉजी, विमानन, कृषि और पर्यावरण निगरानी में आईएमडी की भूमिका साल दर साल बढ़ती जा रही है।

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