इंसानों की तरह ही पीड़ा में ‘कराहते’ पेड़-पौधें, पांच मीटर दूर से सुन लेते हैं कई जीव

रिसर्च से पता चला है कि जब पेड़ों को दर्द होता है तो वो अल्ट्रासोनिक ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जिसे आस-पास के जीव सुन सकते हैं। इस ध्वनि की आवृत्ति 20 से 100 किलोहर्ट्ज के बीच होती है
सूखे में मुरझाई फसलें; फोटो: आईस्टॉक
सूखे में मुरझाई फसलें; फोटो: आईस्टॉक
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इसमें कोई शक नहीं कि पेड़-पौधों को भी हम इंसानों की तरह पीड़ा होती है, लेकिन वो अपने दर्द का इजहार किस तरह करते हैं, यह हमेशा से पहेली रहा है। जितना ज्यादा हम प्रकृति को समझने की कोशिश करते हैं उतनी ज्यादा नई बाते हमारे सामने आती रहती हैं।

जो स्पष्ट दर्शाता है कि प्रकृति का यह ताना-बाना हमारी सोच से कहीं ज्यादा गूढ़ है। कुछ ऐसा ही तेल अवीव विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की गई रिसर्च में सामने आया है।

जब पेड़-पौधे सूखा, बढ़ती गर्मी, कीटों के हमले, बाढ़ आदि के कारण तनाव में होते हैं तो उनके जीवन में एक समय ऐसा आता है, जब वो  झुक जाते हैं या उनकी पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। जो लोग पौधों के बारे में जानकारी रखते है वो इन संकेतों को देखकर समझ लेते हैं कि अब पेड़ों को किस चीज की जरूरत है। क्या उन्हें पानी चाहिए, या पानी ज्यादा हो गया है। या वो गर्मी का अनुभव कर रहे हैं और उन्हें किस पोषक तत्त्व की जरूरत है।

लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि जब पेड़ों को दर्द होता है तो वो ‘अल्ट्रासोनिक’ ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जिसे आस-पास के जीव सुन सकते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा किए इस नए अध्ययन में सामने आया है कि पीड़ा होने पर पौधे मौन नहीं रहते। वो ‘अल्ट्रासोनिक’ ध्वनियां उत्पन्न करते हैं, जिनकी आवृत्ति 20 से 100 किलोहर्ट्ज के बीच होती है। शोधकर्ताओं के अनुसार इस ध्वनि को तीन से पांच मीटर दूर से सुना जा सकता है।

हालांकि यह ध्वनि इतनी ऊंची है कि शायद ही इंसान इसे सुन सकते हैं। लेकिन कुछ जीव ऐसे हैं जो इन ध्वनियों को सुन सकते हैं। अनुमान है कि शायद चमगादड़, चूहे और पतंगे पौधों की आवाज से भरी दुनिया में रह सकते हैं और इन ध्वनियों को सुन सकते हैं।

वैज्ञानिकों द्वारा इससे पहले किए अध्ययन में सामने आया है कि पौधे, अन्य जीवों द्वारा की गई आवाजों पर प्रतिक्रिया भी करते हैं। देखा जाए तो पेड़-पौधों से प्रेम करने वाले लोगों के लिए यह रिसर्च रोमांचित कर देने वाली है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल सेल में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने टमाटर और तम्बाकू के पौधे पर अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि जब पौधों को पर्याप्त पानी दिया गया हो और उन्हें काटा या नुकसान पहुंचाया न जाए तो वो शांत रहते है। उस समय वो हर घंटे केवल एक ध्वनि पैदा करते हैं। हालांकि जब उनके तने काट दिए गए तो उन्होंने प्रति घंटे करीब 35 ध्वनियां पैदा की थी। यह शोर विशेष रूप से उन पौधों में भी स्पष्ट था, जो पानी की कमी के चलते तनाव में थे।

जानिए पौधे कैसे पैदा करते हैं यह ध्वनि

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह ध्वनि किसी संगीत की तरह नहीं थी, बल्कि यह क्लिक की तरह की आवाज थी। जैसा की कोई पॉपकॉर्न करता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पौधों में कोई स्वर तंत्र (वोकल कॉर्ड) या फेफड़े नहीं होते हैं। ऐसे में पौधे ध्वनि कैसे उत्पन्न करते हैं। यह जानकारी बहुत से लोगों के लिए उत्सुकता का विषय है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता लीलाच हदनी का कहना है कि पौधे ध्वनि कैसे उत्पन्न करते हैं, वर्तमान में यह सिद्धांत पौधों के जाइलम पर केंद्रित है। जाइलम पौधों में पाए जाने वाले वो ऊतक (वाहिकाएं) हैं जो पानी और पोषक तत्वों को पौधों की जड़ों से तनों और पत्तियों तक पहुंचाती हैं। जाइलम में पानी सतह के तनाव के साथ जुड़ा रहता है। ठीक वैसे ही जैसी स्ट्रा से पानी चूसा जाता है तो पानी में तनाव पैदा होता है।

इसी तरह जब जाइलम में हवा का बुलबुला बनता या टूटता है, तो यह थोड़ा पॉपिंग शोर कर सकता है। इसे केविटेशन कहते हैं। इसी तरह सूखे के दौरान बुलबुला बनने की सभावना अधिक रहती है। हालांकि शोधकर्ताओं का मानना है कि इस बारे में सटीक तौर पर जानने के लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है।

देखा जाए तो इस अध्ययन में टमाटर और तम्बाकू के पौधों पर ध्यान केंद्रित किया गया है लेकिन वैज्ञानिकों ने पौधों की अन्य प्रजातियों द्वारा उत्पन्न ध्वनियों को भी रिकॉर्ड किया है। इस बारे में शोधकर्ता हदनी का कहना है कि, "कई पौधे जैसे मकई, गेहूं, अंगूर, और कैक्टस भी जब तनावग्रस्त होते हैं तो ध्वनि उत्पन्न करते हैं। क्या अन्य जीवों के साथ संपर्क और संवाद करने के लिए पौधे इन ध्वनियों को उत्पन्न करते हैं यह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि इन ध्वनियों का अस्तित्व पारिस्थितिकी और विकास के लिए मायने रखता है।

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