कोविड-19 संक्रमण से मिली सीख, उभरेंगे विज्ञान के नये आयाम

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित चर्चा परिचर्चा में भाग लेते विशेषज्ञ
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित चर्चा परिचर्चा में भाग लेते विशेषज्ञ
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भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में चर्चा-परिचर्चा की एक श्रृंखला का आयोजन किया गया। इसी कड़ी में ‘द अदर साइड ऑफ़ पैनडेमिक: महामारी के अन्य पहलू’ विषय पर आयोजित परिचर्चा कार्यक्रम में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया, वित्त मंत्रालय के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल और नैसकॉम की प्रेसिडेंट देबजानी घोष ने भाग लिया। 

प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने डीएसटी के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि यह भारत सरकार का इकलौता ऐसा विभाग है जो किसी एक क्षेत्र में सीमित न होकर विभिन्न अन्य क्षेत्रों में भी काम कर रहा है। विज्ञान के अतिरिक्त  कृषि, उद्योग और महिलाओं से जुड़े विषयों में डीएसटी की भूमिका उल्लेखनीय है। परिचर्चा के विषय को इंगित करते हुए प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि “कोविड-19 महामारी काल में घर से बाहर निकलते समय हम इससे क्या सीख लें रहे हैं, इसे समझना जरूरी है। इसके अलावा, अब हमारे सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। जब हम चुनौतियों की बात करते हैं तो हमारे सामने नए अवसर भी आते हैं। यह अवसर विज्ञान से जुड़े हुए अलग-अलग क्षेत्रों में हमारी बेहतरी की मिसाल बन सकते हैं।” उन्होंने कहा कि इस संक्रमण काल से हमने काफी कुछ सीखा है और हम आगे भी विज्ञान के नए प्रारूप देखने में सक्षम होंगे। 

कोविड-19 महामारी के संदर्भ में वंचित पॉलिसी और सपोर्ट पर बल देते हुए प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने महामारी से बहुत कुछ सीखने की बात कही है, जिससे आगे चलकर विज्ञान के नए प्रारूप उभरकर आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी के लिए 'इनोवेशन चेन' की जरूरत है। इसमें इनोवेशन ईको-सिस्टम के कई आयाम शामिल हैं। विज्ञान को भविष्य के लिए तैयार रहने के साथ-साथ अलग-अलग क्षेत्रों को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के साथ बढ़ाने की कोशिश करनी होगी। 

वित्त मंत्रालय के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने बताया कि कोविड-19 के के दौरान अर्थव्यवस्था में  उत्पन्न हुई खाई को भरने की कोशिश में भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं। महामारी के दौरान अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में आए बदलाव को देखते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था की उपभोक्ता, आपूर्ति और श्रम व्यवस्था को और लचीला बनाने आवश्यकता पर भी विशेष बल दिया। इसके साथ ही संजीव सान्याल ने कृषि क्षेत्र को भी और लचीला बनाने की बात करते हुए किसानों की बिचौलियों से मुक्ति और अपनी कीमत पर उपज बेचने की आजादी को आर्थिक सुधारों की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में रेखांकित किया है। यह एक अनकहा पहलू है कि कृषि के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के कई अन्य क्षेत्र भी स्वतः ही जुड़ जाते हैं जैसे कि इंडस्ट्रीज, आयात निर्यात आदि।  

सान्याल ने यह भी कहा कि जब हम तमाम क्षेत्रों की बात कर रहे हैं तो वैज्ञानिकों की बात भी की जानी चाहिए। वैज्ञानिकों को भी उद्यमी बनने की तरफ बढ़ावा मिलना चाहिए। इससे वे इंडस्ट्रीज में सहायता कर सकेंगे। अपनी नई खोजों और तकनीकों को इंडस्ट्रीज के सामने पेश कर सकेंगे और आत्मनिर्भर भारत बनने की ओर यह एक प्रभावी कदम हो सकता है। 

एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डॉ.  रणदीप गुलेरिया ने पूर्व में आयी कई महामारियों के हवाले से कहा कि “कोविड-19 के दौरान हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि लोगों को ठीक रखें और उनमें जागरूकता लाएं कि किस तरह से वह अपना ख्याल रख सकते हैं और इस महामारी से अपना बचाव कर सकते हैं। कई संभ्रांत और पढ़े लिखे व्यक्ति अब भी कुछ मिथक में फंसे हुए हैं, जिसकी वजह से वह इस महामारी की चपेट में आते जा रहे हैं।” 

पब्लिक हेल्थ सेक्टर में निवेश करने के साथ ही निवेश के सही तरीके को जानने की जरूरत पर बल देने के बाद डॉ गुलेरिया ने एक रोचक तथ्य साझा करते हुए बताया कि कोविड-19 महामारी के दौरान कुछ आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए हैं, जैसे कि कुछ लाइफस्टाइल डिसऑर्डर्स में कमी पायी गई है। लोगों के घर में रहने, घर का खाना खाने और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने की वजह से उनकी इम्यूनिटी बूस्ट हुई है। इसकी वजह से लोग कम बीमार पड़े हैं। महामारी के प्रति लोगों को आगाह करते हुए डॉ रणदीप गुलेरिया ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस वायरस से फिलहाल छुटकारा संभव नहीं है। ऐसे में, इसके साथ ही न्यू नॉर्मल की ओर जिंदगी बढ़ानी होगी और इस दौरान कई चुनौतियों का सामना भी करना होगा। 

परिचर्चा में अपनी बात रखते हुए नैसकॉम की प्रेसिडेंट देबजानी घोष ने बताया कि आपदा में अवसर की बात इस वक्त हर कोई कर रहा है। लेकिन, अवसर तभी होते हैं जब हम उसे देखते हैं और यह तभी हो सकता है जब हम सामान्य से हटकर कुछ देखें। कोविड-19 के संक्रमण काल के बाद हमारे पास यह एक अवसर है कि हम 'न्यू नॉर्मल' को बना सकें। हर कोई न्यू नॉर्मल शब्द पर बात तो कर रहा है, लेकिन इसमें टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कैसे किया जाए, इस पर भी बात की जानी चाहिए। घोष ने कहा कि टेक्नोलॉजी को अब हम तमाम तरह से अपनी जीवनशैली में शामिल कर चुके हैं, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर अपने जीवन में शामिल करने और कोविड-19 के संक्रमण के बाद का हिस्सा बनाने के लिए चार मुख्य तथ्यों पर काम करना बेहद जरूरी होगा। ये चार तथ्य हैं- विश्वास, प्रतिभा, लोगों द्वारा किये जा रहे नवाचार और उत्साह। इन चारों पहलुओं के मिशन से ही आत्मनिर्भर भारत का निर्माण सही दिशा में संभव है।  (इंडिया साइंस वायर)

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