दशकों से चूहों, चमगादड़ों जैसे जीवों को इंसानों में फैलती बीमारियों का दोषी माना जाता रहा है। एड्स, इबोला, जीका, स्पैनिश इन्फ्लुएंजा, एच2एन2 इन्फ्लुएंजा, इन्सेफेलाइटिस, निपाह, सार्स, मर्स, चिकनगुनिया, लासा बुखार और कोविड-19 जैसी ऐसी कई घातक बीमारियां हैं, जो दूसरे जीवों से इंसानों में फैली हैं।
हालांकि वायरसों के प्रसार के मामले में इंसान भी कम नहीं है। असल में इंसान दूसरे जीवों के लिए कहीं ज्यादा बड़ा खतरा हैं, जो अन्य जीवों की तुलना में कहीं ज्यादा वायरसों के प्रसार की वजह बनते हैं।
एक नए अध्ययन से पता चला है कि जंगली जीव जितने वायरस इंसानों को देते हैं उससे कहीं ज्यादा इंसानों से जानवरों में फैलते हैं। यह इस बात की पुष्टि करता है कि जीवों के बीच वायरसों का होने वाला यह आदान-प्रदान एक तरफा नहीं है और इंसान, पशुओं की तुलना में उन्हें करीब दोगुने वायरस देते हैं।
यह जानकारी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए एक नए अध्ययन में सामने आई है। इसके नतीजे जर्नल नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में 25 मार्च 2024 को प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध वायरसो के 1.2 करोड़ जीनोम सीक्वेंसों का विश्लेषण किया है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं को वायरसों के एक से दूसरी प्रजाति में प्रसार के करीब 2,904 मामले देखने को मिले हैं। उनमें से 79 फीसदी मामलों में वायरसों के एक से दूसरी प्रजाति में प्रसार के सबूत मिले थे। हालांकि प्रसार के 21 फीसदी मामलों इंसान शामिल थे।
शोध के मुताबिक कई नई और बार-बार उभरने वाली संक्रामक बीमारियां जानवरों के बीच फैलने वाले वायरस से उत्पन्न होती हैं। रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक 36 फीसदी मामलों में पशुओं से इंसानों में वायरसों के फैलने के प्रमाण मिले हैं। गौरतलब है कि पशुओं से इंसानों में वायरस के प्रसार को ‘जूनोसिस’ कहा जाता है। इनमें इबोला, जीका, फ्लू या कोविड-19 जैसे प्रकोप शामिल हैं, जो बेहद गंभीर महामारियों को भी जन्म दे सकते हैं।
आमतौर पर यह बीमारियां तब फैलती हैं जब कोई वायरस अपने मेजबान होस्ट से अलग एक नया होस्ट खोजने में सक्षम हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि कोई जानवर किसी खास वायरस से ग्रस्त है और वो किसी प्रकार इंसानों या अन्य जानवरों के संपर्क में आता है तो वो उसे भी संक्रमित कर देता है।
हालांकि इन जूनोटिक बीमारियों के इंसानी स्वास्थ्य पर पड़ते गंभीर प्रभावों को देखते हुए आमतौर पर इंसानों को वायरसों के स्रोत के बजाय शिकार के रूप में देखा जाता रहा है। यही वजह है कि इंसानों से दूसरे जीवों में फैलने वाले वायरस पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। लेकिन रिसर्च से पुष्टि हुई है कि इंसान, जानवरों को कहीं ज्यादा वायरस देते हैं।
बढ़ते संक्रमण का दोषी कौन: इंसान या जानवर?
वैज्ञानिकों को 64 फीसदी मामलों में वायरसों के इंसानों से पशुओं में फैलने के प्रमाण मिले हैं। वायरस के इस तरह के प्रसार को ‘एंथ्रोपोनोसिस’ कहा जाता है। इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक एंथ्रोपोनोसिस से प्रभावित जीवों में कुत्ते और बिल्लियों जैसे पालतू पशुओं के साथ-साथ सूअर, घोड़े, मुर्गियों और बत्तखों जैसे पक्षी भी शामिल थे।
इतना ही नहीं चिम्पांजी, गोरिल्ला और हाउलर बन्दर जैसे प्राइमेट के साथ-साथ रैकून, ब्लैक-टफ्टेड मर्मोसेट और अफ्रीकी सॉफ्ट-फर्ड चूहे में भी इंसानों से वायरस के फैलने के उदाहरण सामने आए हैं।
रिसर्च में यह भी सामने आया है कि जब इंसानों से जानवरों में वायरस फैलता है, तो वो उनकी पूरी प्रजाति के अस्तित्व के लिए खतरा बन जाता है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात की भी जानकारी हासिल की है कि मेजबान के बीच स्थानांतरण के दौरान वायरल जीनोम के किन हिस्सों में म्युटेशन हुआ था।
रिसर्च से पता हाला है कि इंसानों में मौजूद वायरस अक्सर मनुष्यों से जानवरों में फैलते हैं, जो एक महत्वपूर्ण लेकिन अनदेखा तथ्य है। इस बारे में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में जेनेटिक्स इंस्टीट्यूट और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर फ्रेंकोइस बैलौक्स ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, "मनुष्य वायरसों को साझा करने वाले जीवों के विशाल नेटवर्क में एक बिंदु की तरह हैं।"
रिसर्च के मुताबिक इंसानों और पशुओं दोनों में असंख्य सूक्ष्मजीव होते हैं, जो संपर्क में आने से दूसरी प्रजातियों में जा सकते हैं। शोध में यह भी सामने आया है कि जब वायरसों का प्रसार मेजबानों के बीच होता है, तो वे केवल एक मेजबान जीव के साथ विकसित होने की तुलना में अधिक आनुवंशिक परिवर्तन या म्युटेशन से गुजरते हैं। इससे पता चलता है कि वायरस को अधिक प्रभावी ढंग से फैलने के लिए अपने नए मेजबानों के अनुकूल होने की आवश्यकता पड़ती है।
इसके अलावा जो वायरस पहले ही विभिन्न जीवों को संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं, उनमें अनुकूलन की आवश्यकता बहुत कम होती है। इससे संकेत मिलता है कि उनमें स्वाभाविक रूप से ऐसे गुण होते हैं जो उन्हें अलग-अलग मेजबानों को संक्रमित करने के काबिल बनाते हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ वायरसों को नए जीवों को संक्रमित करने के लिए कहीं अधिक बदलावों की आवश्यकता हो सकती है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता सेड्रिक टैन ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, "जब इंसानों से जानवरों में वायरस फैलते हैं तो वो उन्हें गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। यहां तक की ये उनके अस्तित्व को भी खतरे में डाल सकते हैं।" उनके मुताबिक यह इंसानों के लिए भी समस्याएं पैदा कर सकता है।
इससे खाद्य आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। इसकी वजह से एक बीमारी को रोकने के लिए बहुत सारे जीवों को मारना पड़ सकता है, जैसा कि बर्ड फ्लू के मामले में हुआ था। इतना ही नहीं यदि कोई वायरस इंसानों से किसी नए जीव को संक्रमित करता है, तो यह मनुष्यों से गायब होने के बाद भी फैलता रह सकता है। ऐसे में यह मनुष्यों को फिर से प्रभावित करने से पहले म्युटेशन का शिकार हो सकता है और कहीं अधिक खतरनाक बन सकता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह समझने से कि वायरस विभिन्न प्रजातियों में अलग-अलग मेजबानों को संक्रमित करने के लिए कैसे और क्यों बदलते हैं, यह जानने में मदद मिल सकती है कि मनुष्यों और जानवरों में नई बीमारियां कैसे विकसित होती हैं।
आमतौर पर माना जाता है कि कोशिका में प्रवेश किसी वायरस द्वारा मेजबान को संक्रमित करने का प्रारंभिक चरण है। हालांकि, टीम ने पाया है कि मेजबान कोशिकाओं से जुड़ने और प्रवेश करने से जुड़े बहुत से बदलाव वायरल प्रोटीन में नहीं पाए गए थे। इससे पता चलता है कि नए मेजबानों को अपनाना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसे हम अभी भी पूरी तरह नहीं समझ नहीं पाए हैं।