भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाए स्वदेशी स्पेक्ट्रोग्राफ, यहां किया गया स्थापित 

इस स्पेक्ट्रोग्राफ को देश में ही डिजाइन और विकसित किया गया है| इसकी कीमत विदेश से आयात किए जाने वाले स्पेक्ट्रोग्राफ से करीब ढाई गुना कम है
Photo: wikimedia commons
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भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा बनाए स्पेक्ट्रोग्राफ को देवस्थल ऑप्टिकल टेलिस्कोप में लगाया गया है| इस स्पेक्ट्रोग्राफ को देश में ही डिजाइन और विकसित किया गया है, जिसकी कीमत विदेश से आयात किए जाने वाले स्पेक्ट्रोग्राफ से करीब ढाई गुना कम है| इनकी मदद से बहुत दूर स्थित तारों और आकाशगंगाओं से निकलने वाले हलके प्रकाश और उसके स्रोत का पता लगाया जा सकता है। यह उपकरण लगभग एक फोटॉन प्रति सेकंड की फोटॉन दर के साथ प्रकाश के स्रोत का पता लगा सकते हैं। यह जानकारी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में सामने आई है|

इससे पहले इन स्पेक्ट्रोग्राफ को विदेश से आयात किया जाता था, जिससे यह बहुत महंगे पड़ते थे| पर अपने देश में ही विकसित इन स्पेक्ट्रोग्राफ की कीमत ढाई गुना कम है| इन्हें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्‍टीट्यूट ऑब्‍जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस), नैनीताल में विकसित किया गया है। इसपर करीब 4 करोड़ रुपए का खर्च आया है|

इसको एरीज-देवस्‍थल फैंट ऑब्जैक्‍ट स्‍पेक्‍ट्रोग्राफ एंड कैमरा (एडीएफओएससी) नाम दिया गया है| इसे 3.6-एम देवस्थल ऑप्टिकल टेलिस्कोप (डीओटी) पर सफलता पूर्वक स्थापित कर दिया गया है| गौरतलब है कि यह टेलिस्कोप नैनीताल, उत्तराखंड के पास है, जो एशिया में सबसे बड़ा है। 

यह एक विशिष्ट उपकरण है, जो देश में उपलब्ध स्पेक्ट्रोग्राफ में सबसे बड़ा है| यह बेहद मंद और धुंधले आकाशीय स्रोतों की निगरानी के लिए 3.6-एम देवस्थल ऑप्टिकल टेलिस्कोप का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें विशेष कांच से बने कई लेंसों की एक जटिल संरचना है| साथ ही इसमें आकाश से संबंधित चमकदार छवियों को प्राप्त करने के लिए 5 नैनोमीटर स्मूथनेस की पॉलिश की गई है। यही वजह है कि यह आकाशगंगाओं के आसपास मौजूद ब्‍लैक होल्‍स से लगे क्षेत्रों और ब्रह्माण्‍ड में होने वाले धमाकों और दूर आकाशगंगाओं में स्थित तारों से निकलने वाले मंद प्रकाश के स्रोत का पता लगाने में सक्षम है|

इस परियोजना में लगे तकनीशियनों और वैज्ञानिकों की अगुवाई एआरआईईएस के वैज्ञानिक अमितेश ओमार ने की है| इस दल ने स्पेक्ट्रोग्राफ और कैमरे के कई ऑप्टिकल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स सबसिस्टम्स पर अनुसंधान किया और उन्हें विकसित किया है। एआरआईईएस के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी ने बताया कि, "भारत में एडीएफओएससी जैसे जटिल उपकरणों के निर्माण के स्वदेशी प्रयास खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।"

स्पेक्ट्रोग्राफ, खगोलीय टेलिस्कोप का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जिसका उपयोग खगोलविदो द्वारा युवा आकाशगंगाओं और तारों के अध्ययन के लिए किया जाता है। इसकी मदद से ब्रह्मांण्ड के अनेक रहस्यों को दुनिया के सामने लाया जा सकता है। भविष्य में एआरआईईएस की योजना 3.6-एम देवस्थल टेलिस्कोप पर स्पेक्ट्रो-पोलरीमीटर और हाई स्पेक्ट्रल रिजॉल्युशन स्पेक्ट्रोग्राफ जैसे ज्यादा जटिल उपकरण स्थापित करने की है।

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