भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सेंसर विकसित किया है जिसका उपयोग जीवित कोशिकाओं के सूक्ष्मनलिकाएं में हो रहे बदलाव की जांच करने के लिए किया जा सकता है। यह कैंसर जैसी बीमारी के उपचार के लिए बेहतर दवाओं का सुझाव भी दे सकता है। यह कारनामा डीबीटी-इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम) के वैज्ञानिकों ने किया है।
कोशिका में सूक्ष्म नलीदार संरचना जिसे माइक्रोट्यूब्यूल्स कहते हैं। एक प्रोटीन जो जीवित कोशिकाओं के सूक्ष्मनलिकाएं का मुख्य घटक (ट्यूबुलिन) है। ट्यूबुलिन की इकाई से बने साइटोस्केलेटन पॉलिमर हैं। जो विभिन्न तरह के कोशिका के कामों को अंजाम देते हैं। जैसे गुणसूत्र (क्रोमोसोम) को अलग करना, किसी कोशिका के अंदर चीजों को इधर-उधर ले जाना आदि शामिल हैं।
इन कोशिकीय प्रक्रियाओं में सूक्ष्मनलिकाएं और इससे जुड़े प्रोटीन के बीच के संबंध स्थापित किए जाते हैं। साइटोस्केलेटन - कई जीवित कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में प्रोटीन तंतुओं और नलिकाओं का एक सूक्ष्म नेटवर्क है, जो उन्हें आकार प्रदान करता है।
कोशिकाओं के साइटोप्लाज्म में भारी संख्याओं में मौजूद एक सूक्ष्म नलीदार संरचना, जो कभी-कभी अधिक जटिल संरचनाओं को बनाने के लिए एकत्रित होती है, जिसे माइक्रोटूब्यूल कहते है। इनमें से कई सूक्ष्मनलिका संबंधी कार्य कोशिकाओं के द्वारा बदलाव कर नियंत्रित किए जाते है जिसे पोस्ट-ट्रांसलेशनल मॉडिफिकेशन (पीटीएम) कहते हैं। ये बदलाव एक प्रोटीन और डीएनए में होते हैं। पोस्ट-ट्रांसलेशनल मॉडिफिकेशन (पीटीएम) के कारण विभिन्न कोशिकाओं में अलग-अलग तरह के जैव रासायनिक रूपों में माइक्रोट्यूब्यूल साइटोस्केलेटन मौजूद रहते है।
डॉ. मिनहाज सिराजुद्दीन की प्रयोगशाला जो कार्डियोवस्कुलर बायोलॉजी एंड डिजीज विषय पर डीबीटी-इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम) में साइटोस्केलेटन लैब में माइक्रोटूब्यूल और एक अनोखे माइक्रोटूब्यूल पीटीएम के बिगड़े हुए रूप (ट्राइरोसिनेशन) का पता लगाने के लिए एक जीवित कोशिकीय सेंसर विकसित किया है। यह शोध सेल बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
उन्होंने बताया कि ट्राइरोसिनेशन सेंसर पहला ट्यूबुलिन नैनो बॉडी या सेंसर है जिसका उपयोग जीवित कोशिकाओं के सूक्ष्मनलिकाएं में हो रहे बदलाव की जांच करने के लिए किया जा सकता है। इस सेंसर का उपयोग छोटे अणु (कैंसर रोधी दवा) यौगिकों के अध्ययन के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार यह सेंसर कई शोधकर्ताओं के लिए कोशिका की सूक्ष्मनलिका के कार्यों का अध्ययन करने की सुविधा प्रदान करेगा और भविष्य में चिकित्सा के लिए नई दवाओं की पहचान करने में मदद करेगा।