भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो सर्जरी की जटिलता को कम करके नसों का तेजी से उपचार में मदद कर सकती है। यह त्रि-आयामी (थ्री डी) प्रिंटिंग तकनीक के उपयोग से बनाई गई नई स्मार्ट जेल-आधारित शीट है। इसका उपयोग सर्जरी के दौरान नसों या तंत्रिका नलिका बनाने के लिए किया जा सकता है जो ट्यूब में स्वयं-घूम सकती है।
सबसे बाहरी या परिधीय नसों के उपचार के लिए अभी भी ऑटोग्राफ्ट तकनीक सबसे अच्छी मानी जाती है। नैदानिक उपयोग के लिए विकल्प के रूप में दोबारा अवशोषित करने योग्य (बायोरसोर्बेबल) पॉलिमर आधारित नलिका का पता लगाया जा रहा है।
लेकिन यह उपचार नीतियां भी कई तरह की बाधाओं से ग्रस्त है जैसे कि ऑटोग्राफट के मामले में डोनरसाइट बीमारियां और टांके की आवश्यकता जिसमें अत्यधिक कुशल माइक्रोसर्जरी की जरूरत पड़ती है और इसमें टांके से उत्पन्न होने वाली अन्य जटिलताएं भी शामिल है।
उपचार के इन कमियों को दूर करने के लिए बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के शोधकर्ताओं ने त्रिआयामी (थ्री डी प्रिंटिंग) तकनीक का उपयोग करके एक स्मार्ट जेल आधारित शीट डिजाइन की। यह तंत्रिका नलिका बनाने के लिए सर्जरी के दौरान एक ट्यूब के रूप में स्वयं उसमें घूम सकती है।
थ्री डी प्रिंटिंग में उस भाग का एक आभासी मॉडल के मदद से सामग्री के परत दर परत जमाव द्वारा, डिजाइन-सॉफ्टवेयर का उपयोग करके बनाया जाता है। निर्माण के बाद थ्री डी मुद्रित भाग स्वयं आकार में बदलाव ला सकता है। ऐसी तकनीक को अब व्यापक रूप से चार आयामी (फोर डी प्रिंटिंग) के रूप में जाना जाता है।
हाल ही के एक अध्ययन में प्रोफेसर कौशिक चटर्जी के नेतृत्व में आईआईएससी की टीम ने जेल से पूर्व निर्धारित पैटर्न में थ्री डी प्रिंटिंग द्वारा एक दो सतहों वाली जैल शीट तैयार की। जेल के फॉर्मूले को पानी से अलग तरह से प्रतिक्रिया करने के लिए चुना गया था।
जब सूखे जेल शीट को पानी में डुबाया गया तो यह तेजी से फूल गया और एक नलिका के रूप में बदल गया। जेल के इस व्यवहार और मन चाहे आकार के ट्यूब उत्पन्न करने के लिए कंप्यूटर से प्रोग्राम किया जा सकता है। इसका अनुमान कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग द्वारा लगाया जा सकता है। इसके बाद जेल शीट को बहुत पतली नैनोमीटर स्केल के तंत्रिका तंतुओं से लपेटा जाता है ताकि शरीर की कोशिकाओं को जेल शीट पर चिपकने में सक्षम बनाया जा सके।
आईआईएससी की टीम ने रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और महर्षि मार्कण्डेश्वर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर चूहों की साइटिका की नस में दो मिलीमीटर के गहरे भाग का उपचार और फिर से उत्पन्न करने के लिए फोरडी नली का परीक्षण किया।
इसके लिए तंत्रिका में जहां समस्या थी उसके नीचे शेप मोरफिंगशीट को रखा गया और समस्या-ग्रस्त तंत्रिका के चारों ओर एक नली बनाने के लिए शीट को प्रेरित किया गया। प्रत्यारोपित नलिका की सहायता से तंत्रिका के सिरे को बढ़ाया जा सकता है।
जब फोर डी मुद्रित तंत्रिका नली का उपयोग किया गया तो चूहों में 45 दिन तक मापे गए तंत्रिका फिर से उत्पन्न होने में भारी सुधार देखा गया। यह शोध एडवांस्ड हेल्थकेयर मटेरियल्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं के इस काम को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक वैधानिक निकाय विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा थ्री डी बायोप्रिंटिंग पर उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में गहन अनुसंधान (आईआरएचपीए) में भी समर्थन दिया गया।
इस तरह के फोर डी मुद्रित भागों का उपयोग अभी तक उपचार में नहीं किया गया है। लेकिन इस तरह की उभरती तकनीकें चिकित्सा उपकरणों की एक नई पीढ़ी के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी, जिन्हें आने वाले दिनों में सर्जन नसों और कई अन्य उत्तकों का उपचार करने के लिए सर्जरी के दौरान उपयोग कर सकेंगे। ये सर्जरी की जटिलता को कम करने के साथ, कम से कम चीर-फाड़ द्वारा और तेजी से ठीक होने की प्रक्रिया जैसे फायदे प्रदान कर सकते हैं।