उपलब्धि: निपाह वायरस के इलाज की दवा बनाने के करीब पहुंचे भारतीय वैज्ञानिक

अभी निपाह वायरस से होने वाली बीमारी के लिए टीके या दवा नहीं है, लेकिन अब भारतीय वैज्ञानिक इसके करीब पहुंच गए हैं
Photo credit: wikipedia
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निपाह वायरस चमगादड़ और सूअरों से मनुष्यों में फैलता है। इस वायरस की वजह से कई लोगों की मृत्यु हो जाती है। अभी तक इसके उपचार के लिए कोई लाइसेंस प्राप्त दवाएं नहीं हैं। शोधकर्ताओं ने वायरस के 150 संभावित अवरोधकों (इन्हिबटर) की पहचान करने के लिए निपाह वायरस की संरचना का उपयोग किया है। यह शोध प्लोस नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिसीसेस नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

इस नए शोध में, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च पुणे के एम.एस. मधुसूदन और उनके सहयोगियों ने सबसे पहले निपाह वायरस प्रोटीन के तीन मॉडल बनाए। फिर, उन्होंने प्रोटीन की गतिविधि को अवरुद्ध करने के लिए इन मॉडलों से अणुओं का उपयोग किया, ताकि वायरस के प्रभाव को रोका जा सके। अंत में, टीम ने इस प्रयोग को वायरस के 15 अलग-अलग नस्लों (स्ट्रेनस) के खिलाफ इसके प्रभाव को जानने के लिए किया। इन 15 नस्लों (स्ट्रेनस) में से 3 बांग्लादेशी, 7 मलेशियाई और 5 भारतीय है।

शोधकर्ताओं ने गणना करके निपाह वायरस के प्रोटीन के खिलाफ, 4 रुकावट डालने वाले पेप्टाइड और 146 छोटे अणु इन्हिबटर की पहचान की है।  अवरोधकों (इन्हिबटर) में निपाह वायरस के अलग-अलग नस्लों के द्वारा पहुंचाए जाने वाले नुकसान को रोकने की ताकत, और प्रभावशीलता के आधार पर इन्हें सूचीबद्ध किया गया।

शोधकर्ताओं का कहना है कि अवरोधक (इन्हिबटर) वायरस निपाह और अन्य संबंधित जूनोटिक वायरस के सभी नस्लों के खिलाफ असरदार होंगे। इस तरह के वायरस गंभीर महामारी का खतरा पैदा करने वाले होते हैं। शोधकर्ताओं के गणना के आधार पर इन अवरोधकों (इन्हिबटर) की पहचान की है। पहचान करने के बाद अब शोधकर्ता इनका तेजी से परीक्षण कर, दवा बनाने के एक कदम पास पहुंच गए हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सन 1998 में मलेशिया के सुंगई निपाह गांव में सबसे पहले निपाह वायरस का पता चला था। इस गांव के नाम पर इस वायरस का नाम निपाह पड़ा। यहां के सुअर पालने वाले किसान निपाह वायरस से संक्रमित मिले थे।

इसकी शुरुआत तेज सिरदर्द और बुखार से होती है, जिसमें सांस लेने में परेशानि होना, बुखार का दिमागी बुखार में बदल जाना, उल्टी, सूजन, विचलित होना आदि है। इससे संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु दर 74.5 फीसदी तक होती है।

निपाह वायरस के संक्रमणों के कारण बांग्लादेश और भारत में 72-86 फीसदी लोगों की जान चली जाती है। भारत में इसका असर सबसे अधिक केरल में देखा गया। निपाह वायरस के उपचार के लिए किसी तरह की दवाएं या टीके नहीं हैं। यह बीमारी एक घातक खतरा बन गई है और भविष्य में महामारी का रुप ले सकती है।

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