ऑक्सीजन संकट को कम करने के लिए भारतीय नौसेना ने डिजाईन किया ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम

इस ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम की मदद से शरीर द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के साथ बाहर छोड़ी गई ऑक्सीजन को फ़िल्टर करके दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है
ऑक्सीजन संकट को कम करने के लिए भारतीय नौसेना ने डिजाईन किया ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम
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आज देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है जिसके कारण देश में ऑक्सीजन का गंभीर संकट बना हुआ है| इसी संकट को देखते हुए नौसेना की दक्षिणी कमान के डाइविंग स्कूल ने ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए एक नया 'ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम' (ओआरएस) डिजाइन किया है।

गौरतलब है कि डाइविंग स्कूल के पास इस क्षेत्र में काफी विशेषज्ञता है क्योंकि स्कूल द्वारा उपयोग किए जाने वाले कुछ डाइविंग सेट्स में इस आधारभूत सिद्धांत का उपयोग किया जाता है। इससे पहले 6 मार्च 2021 को केवड़िया में संयुक्त कमांडरों के हुए एक सम्मेलन में सेना न माननीय प्रधानमंत्री के समक्ष इसी आईडिया पर आधारित एक छोटे मॉडल का प्रदर्शन किया था।

यह ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम (ओआरएस) मौजूदा ऑक्सीजन सिलेंडरों के जीवनकाल को दो से चार बार तक बढ़ाने को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया है| आमतौर पर एक मरीज जितनी ऑक्सीजन लेता है उसका केवल एक छोटा सा हिस्सा ही फेफड़ों द्वारा अवशोषित किया जाता है, जबकि बाकी हिस्सा शरीर द्वारा उत्पन्न की जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड के साथ वातावरण में बाहर छोड़ दिया जाता है।

इस छोड़ी गई ऑक्सीजन का दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है, बशर्ते इसमें से कार्बन डाई ऑक्साइड को हटा दिया जाए। ऐसा करने के लिए इस सिस्टम में रोगी के मौजूदा ऑक्सीजन मास्क के साथ एक दूसरा पाइप जोड़ा जाता है जो कम दबाव वाली मोटर का उपयोग करके रोगी द्वारा निकाली गए ऑक्सीजन को अलग करता है। इस ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम (ओआरएस) को डाइविंग स्कूल के लेफ्टिनेंट कमांडर मयंक शर्मा ने डिजाइन किया है।

कैसे काम करता है यह पूरा सिस्टम

मास्क का इनलेट पाइप (ऑक्सीजन के लिए) एवं मास्क का आउटलेट पाइप (बाहर निकाली हवा के लिए) प्रयोग होता है| हर समय गैसों का उचित दबाव एवं एकदिशा में प्रवाह बना रहे इसलिए इन दोनों ही पाइप्स को एक नॉन रिटर्न वाल्व के साथ फिट किया जाता है| इसकी मदद से रोगी में डाईल्यूशन हाईपोक्सिया की स्थिति नहीं पैदा होती है। निकाली गई गैसों, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन, को इसके बाद एक बैक्टीरियल वायरल फिल्टर एंड हीट एंड मॉइस्चर एक्सचेंज फ़िल्टर में डाला जाता है, जिससे किसी भी प्रकार की वायरसजनित अशुद्धियां दूर की जा सकें।

इस वायरल फिल्ट्रेशन के बाद यह गैसें एकहाइ ग्रेड कार्बन डाई ऑक्साइड स्क्रबर से एक हाइ एफिशिएंसी पर्टीक्युलेट (एचईपीए) फ़िल्टर में से होकर गुजरती हैं| ये फिलटर कार्बन डाई ऑक्साइड एवं अन्य कणों को अवशोषित करके शुद्ध ऑक्सीजन को प्रवाहित होने देता है। इसके बाद स्क्रबर की मदद से यह ऑक्सीजन वापस रोगी के फेस मास्क से जुड़े श्वसन पाइप में डाली जाती है, जो ऑक्सीजन की प्रवाह गति में बढ़ोतरी कर देती है| साथ ही इससे सिलिंडर से आने वाली ऑक्सीजन के इस्तेमाल में भी कमी आ जाती  है।

इस ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम में हवा के प्रवाह को कार्बन डाई ऑक्साइड स्क्रबर के आगे फिट किए गए मेडिकल ग्रेड पंप की मदद से बनाए रखा जाता है, जो सकारात्मक प्रवाह सुनिश्चित करता है, इससे रोगी को आरामदायक ढंग से सांस लेने में सुविधा होती है। वहीं डिजिटल फ्लो मीटर ऑक्सीजन की प्रवाह दर की निगरानी करते रहते हैं| साथ ही इसमें में स्वचालित कट-ऑफ के साथ इनलाइन ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड सेंसर भी लगे होते हैं, जो ऑक्सीजन का स्तर सामान्य से घटने या कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर बढ़ने पर ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम (ओआरएस) को अपने आप बंद कर देते हैं। हालांकि इस कट-ऑफ से सिलेंडर से आ रही ऑक्सीजन का सामान्य प्रवाह प्रभावित नहीं होता है, ऐसे में यदि कट-ऑफ या अन्य कारणों ओआरएस बंद भी हो जाए तब भी रोगी आसानी से सांस लेता रह सकता है।

इस ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम का पहला पूरी तरह से कार्यशील प्रोटोटाइप 22 अप्रैल 2021 को बनाया गया था| जिसके बाद विशेषज्ञों ने इसका परिक्षण किया था जिसमें कुछ संशोधनों के सुझाव के साथ इस डिजाइन को पूरी तरह संगत पाया गया था| गौरतलब है कि नीति आयोग के निर्देशों पर तिरुवनंतपुरम स्थित श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (एससीटीआईएमएसटी) के विशेषज्ञों की टीम ने इस प्रणाली का विस्तृत विश्लेषण एवं आकलन किया था। 18 मई 2021 को एससीटीआईएमएसटी के निदेशक द्वारा इस ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम (ओआरएस) को एक प्रारंभिक मूल्यांकन प्रमाण पत्र प्रदान दे दिया गया था।

अब मौजूदा दिशा-निर्देशों के अनुसार क्लीनिकल परीक्षणों के लिए इस प्रणाली को आगे बढ़ाया गया है, जिसके शीघ्र पूरा होने की उम्मीद है, इसके बाद यह डिजाइन देश में बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध होगा। खास बात यह है कि इस ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम में उपयोग की जाने वाले सभी सामग्री देश में स्वदेशी और स्वतंत्र तौर पर उपलब्ध हैं, ऐसे में हमें इसके लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा|

ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम (ओआरएस) प्रोटोटाइप की कुल लागत काफी कम है| ऑक्सीजन के पुनर्चक्रण से हर दिन होने वाली करीब 3,000 रुपये की अनुमानित बचत के कारण यह घटकर 10,000 रुपये रह गई है। देश में मौजूदा ऑक्सीजन क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ इस ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम (ओआरएस) प्रणाली का उपयोग पर्वतारोहियों या फिर सैनिकों द्वारा किया जा सकता है| जहां यह बहुत अधिक ऊंचाई पर, एचएडीआर संचालन में मदद करेगा| साथ ही इसका इस्तेमाल जहाजों और पनडुब्बियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ऑक्सीजन सिलेंडरों के जीवनकाल को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है।

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