फोटो: आईस्टॉक
फोटो: आईस्टॉक

“भारतीय जीनोम हमारी जरूरत”

जीनोम सीक्वेंसिंग आनुवंशिक बीमारियों की गुत्थियों को सुलझाने में मददगार साबित होगी
Published on

रघु पदिनजत

हालांकि मनुष्यों में 99.9 प्रतिशत जीनोम एक जैसे होते हैं, लेकिन लोगों के 0.1 प्रतिशत जीनोम में बहुत ज्यादा अंतर होते हैं। अंतर की वजह बनने वाला यह तत्व बीमारियां होने की वजह, उनके इलाज और बायोमेडिकल से जुड़े दूसरे मुद्दों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब हम मानव आनुवंशिकी का अध्ययन करते हैं तो आमतौर पर अमेरिका और यूरोप के व्यक्तियों के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जीनोम डेटासेट का उपयोग करते हैं। लेकिन, कोकेशियान आबादी आनुवंशिक रूप से भारतीयों से काफी अलग है। भारत के भीतर भी विभिन्न समूह आनुवंशिक रूप से एक-दूसरे से काफी अलग हैं। इसलिए, हमें भारतीय जीनोम के संदर्भों की बहुत जरूरत थी।

2016 से मैं जिस शोध कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहा हूं, उसमें इन 10,000 जीनोम से बहुत मदद मिलेगी। मेरे शोध का उद्देश्य मस्तिष्क से जुड़े विकारों, खासकर सिजोफ्रेनिया, बायपोलर डिसऑर्डर और ऑब्सेसिव-कम्पल्सिव डिसऑर्डर जैसी गंभीर मानसिक बीमारियों की आनुवंशिक उत्पत्ति का अध्ययन करना है। हम दक्षिण भारत में उन परिवारों का अध्ययन करते हैं, जिनका मानसिक बीमारी का गहरा इतिहास है। हम दुर्लभ आनुवंशिक विकारों का भी अध्ययन करते हैं, विशेष रूप से मस्तिष्क के जो आमतौर पर एक ही जीन में अंतर होने के कारण होते हैं। हम मरीज के डीएनए को सीक्वेंस करते हैं और किसी बीमारी से जुड़ी आनुवंशिक जड़ तक पहुंचने के लिए जीनोमइंडिया के जीनोम के साथ इसकी तुलना करते हैं। कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों के लिए भी समय रहते आनुवंशिक कारकों को तलाशा जा सकता है। 10,000 सीक्वेंस केवल शुरुआत हैं।

डीएनए चिप्स (डीएनए सैंपल के जीन में कोई म्यूटेशन है या नहीं, यह पता लगाने के लिए इस्तेमाल होने वाला उपकरण) के जरिए बीमारियों को और बेहतर ढंग से पहचानने के लिए हमें अभी और व्यक्तियों के जीनोम सीक्वेंसिंग की जरूरत है। कई मायनों में जीनोमइंडिया इस बात का सबूत भी है कि भारत में जीनोम सीक्वेंसिंग संभव है और उपयोगी भी।

हम सबसे ज्यादा जिस बात से उत्साहित हैं, वह है इसके इस्तेमाल से हो सकने वाला सटीक इलाज। इसके जरिए लोगों की आनुवंशिक संरचना को समझकर उसी के मुताबिक इलाज का सटीक तरीका डिजाइन किया जा सकेगा।

उदाहरण के लिए, “सेलेक्टिव सेरोटोनिन रीअपटेक इनहिबिटर्स” का उपयोग आमतौर पर डिप्रेशन के इलाज के लिए किया जाता है। लेकिन इन दवाओं का हर किसी पर असर नहीं होता। अध्ययनों से पता चलता है कि इस तरह की संवेदनशीलता या प्रतिरोध की उत्पत्ति आनुवंशिक है, लेकिन हमें इसकी वजह नहीं पता। जीनोमिक्स से हमें इलाज के दौरान मरीजों पर दवाओं के अलग-अलग असर को समझने और उसकी आनुवंशिक वजह जानने में मदद मिलती है।

(लेखक रघु पदिनजत नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, बेंगलुरु में प्रोफेसर और रोहिणी नीलेकणी सेंटर फॉर ब्रेन एंड माइंड के समन्वयक व जीनोमइंडिया परियोजना के प्रमुख अन्वेषक हैं)

Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in