भारत 2022 में लगातार पांचवें साल इंटरनेट बंद करने की वैश्विक सूची में शीर्ष पर रहा

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल भारत में कम से कम 84 बार इंटरनेट में व्यवधान रहा
फोटो साभार : एक्सेस नाउ
फोटो साभार : एक्सेस नाउ
Published on

अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल अधिकार संगठन, एक्सेस नाउ ने #कीपइटऑन गठबंधन के सहयोग से मंगलवार को देशों द्वारा इंटरनेट बंद करने संबंधी एक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट में कहा कि भारत 2022 में कम से कम 84 बार इंटरनेट में व्यवधान के साथ लगातार पांचवें वर्ष इंटरनेट बंद करने की दुनिया भर की सूची में पहले पायदान पर रहा।

जबकि युद्ध ग्रस्त देश यूक्रेन 22 बार इंटरनेट बाधित करने वाले देशों की सूची में दूसरी पायदान पर, तीसरी पायदान पर ईरान 18 बार, चौथा म्यांमार सात बार तथा बांग्लादेश छह बार इंटरनेट बाधित करने वालों में पांचवें स्थान पर रहा। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 के बाद से दुनिया भर में इंटरनेट बंद करने की सभी दर्ज घटनाओं का लगभग 58 फीसदी हिस्सा भारत का है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल जम्मू और कश्मीर में कम से कम 49 बार इंटरनेट के उपयोग को बाधित किया गया, जिसमें जनवरी और फरवरी में तीन-दिवसीय कर्फ्यू के कारण इंटरनेट बंद रहा।

राजस्थान में इंटरनेट 12 बार, पश्चिम बंगाल में सात और हरियाणा और झारखंड में चार-चार बार बंद रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारियों ने विरोध, संघर्ष, स्कूल परीक्षा और चुनाव जैसे बड़े कार्यक्रमों के दौरान इंटरनेट तक पहुंच पर हस्तक्षेप किया।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इंटरनेट बाधित करने की घटनाएं 2021 की तुलना में कम पाई गई, केंद्र सरकार ने उनके लिए आदेशों को दर्ज और प्रकाशित करने से इंकार कर दिया और संभावित तकनीकी चुनौतियों का मतलब है कि सभी व्यवधान दर्ज नहीं किए गए।

फ़ेलिशिया एंथोनियो, #कीपइटऑन गठबंधन के अभियान प्रबंधक, ने कहा दुनिया भर के संगठनों के इंटरनेट को बंद करने के खिलाफ लड़ने के लिए कहा। उन्होंने आगे जोड़ा कि सरकारें इंटरनेट को बंद करने के नियंत्रण के हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं।

इंटरनेट को बाधित करने को लेकर संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति ने इस महीने दूरसंचार विभाग (डीओटी) और केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दूरसंचार या दूरसंचार लागू करते समय नियमों का सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन करना चाहिए।  

2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में दूरसंचार सुविधाएं बंद करने या ब्लैकआउट के लिए सरकार की खिंचाई करते हुए इंटरनेट तक पहुंच को एक मौलिक अधिकार करार दिया। इसमें कहा कि ब्लैकआउट अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता है।

अदालत ने कहा कि दूरसंचार सुविधाएं बंद करने के आदेश अब विशेष कारणों को लेकर प्रकाशित किए जाने चाहिए और इस तरह की रोक लगाने की आवश्यक मामलों के अनुपात में होने चाहिए।

रिपोर्ट में, संसदीय पैनल के सिफारिश के अनुसार सभी इंटरनेट बंद करने के आदेशों का एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाए रखने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है।

पैनल ने कहा कि सिफारिश को लागू करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। डीओटी या एमएचए द्वारा कोई केंद्रीकृत आंकड़े नहीं रखे जाते हैं और उन्हें राज्यों द्वारा लगाए गए इंटरनेट बंद करने की संख्या के बारे में पता नहीं है।

पैनल ने इंटरनेट को बाधित करने के प्रभाव का आकलन करने के लिए एक अध्ययन करने की जरूरत पर जोर दिया। कानून और व्यवस्था, नागरिक अशांति, आदि को नियंत्रित करने में इंटरनेट बाधित करने की प्रभावशीलता को साबित करने के लिए किसी भी अनुभव आधारित अध्ययन के बिना इंटरनेट का बार-बार बंद होना समिति के लिए बड़ी चिंता का विषय है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि टेक कंपनियां आपकी सेवाओं को प्रभावित करने वाले इंटरनेट को बाधित करने की घटनाएं कैसे और कब होती हैं, इसके बारे में जानकारी साझा करने के लिए सिविल सोसाइटी के साथ सहयोग करें और जहां भी संभव हो, अपने प्लेटफॉर्म और सेवाओं को बंद न करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए, विशेष रूप से संकट के क्षणों में इंटरनेट बाधित करने के लिए प्रोत्साहन और बहाने को कम करने, उच्च-गुणवत्ता, मानव-नेतृत्व वाली सामग्री में उचित निवेश करें।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in