आनुवंशिक विकार से कृषि तथा दूध देने वाले जानवरों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। यह इन जानवरों के उत्पादन और इनको पालने के तरीकों पर असर डालते हैं। इन खतरों को कम करने का एक ऐसा तरीका है जो विभिन्न रोगों के लिए जिम्मेदार जीन के बारे में पता लगाता है।
एक बार आनुवंशिक विकार का संदेह होने पर किसान पशु चिकित्सक या प्रजनन कंपनियों को इसके बारे में जानकारी देते हैं। फिर शोधकर्ताओं जांच करने, उनकी पहचान करने के लिए चुनिंदा जानवरों के फेनोटाइप और जीनोटाइप पर जानकारी एकत्र करके इनके विकार के बारे में पता लगाते हैं।
फेनोटाइप किसी भी जीव में देखने योग्य लक्षण हैं, जैसे कि ऊंचाई, आंखों का रंग और रक्त का प्रकार। फेनोटाइप में आनुवंशिक योगदान को जीनोटाइप कहा जाता है।
मैसी विश्वविद्यालय और पशुधन सुधार निगम (एलआईसी) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन ने अब इस प्रक्रिया को बदल दिया है। इसमें जीनोम अनुक्रम वेरिएंट के परिणामस्वरूप जानवरों के लक्षणों में होने वाले अंतर की लगातार जांच करने के लिए बढ़ते जीनोमिक अनुक्रम आंकड़ों की मदद ली जा सकती है।
इन जानवरों की पहचान करने के बाद, आगे की जांच में उन प्रभावों पर प्रकाश डाला गया जिस पर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया था।
प्रमुख अध्ययनकर्ता और मैसी के एएल रे सेंटर ऑफ जेनेटिक्स एंड ब्रीडिंग में पीएच.डी. छात्र एडवर्डो रेनॉल्ड्स कहते हैं ये बहुत ही रोमांचक खोज है। यह इस बात का प्रमाण है कि हम नए आनुवंशिक विकारों को सक्रिय रूप से पहचान सकते हैं और दुनिया भर में खासकर न्यूजीलैंड के डेयरी पशुओं के स्वास्थ्य और उत्पादकता को और बढ़ा सकते हैं।
एलआईसी में प्रमुख शोधकर्ता और मैसी के पशु आनुवंशिकी प्रोफेसर मैट लिटिलजॉन ने शोध की अगुवाई की है, वे कहते हैं हम अलग-अलग जीन और इनकी संख्या और बड़े पैमाने पर पड़ने वाले प्रभावों से आश्चर्यचकित थे।
रेनॉल्ड्स के सह-शोधकर्ता और एएल रे सेंटर के मुख्य वैज्ञानिक प्रोफेसर डोरियन गैरिक कहते हैं, शोधकर्ता और उद्योग जगत के एक साथ काम करके जानवरों के स्वास्थ्य, उत्पादकता और उनकी अहमियत को बढ़ाया जा सकता है ताकि किसानों को इससे लाभ मिल सके।
टीम ने जानवरों में हल्के, सीमित प्रभावों के साथ शरीर में होने वाले मामूली नुकसान से लेकर शरीर के वजन में लगभग 25 प्रतिशत की कमी और शुरुआती जीवन में मृत्यु दर में वृद्धि के प्रभावों के साथ छह बार-बार बदलने वाले वेरिएंट पाए।
खोजों में पाया गया कि जानवरों के शरीर के वजन के प्रभावों से अलग, कम दूध उत्पादन, सबसे बड़े प्रभाव वाले वेरिएंट के लिए लगभग 1000 लीटर दूध प्रति स्तन ग्रंथि से दूध निकलने, उस दूध को बच्चे को पिलाने की प्रक्रिया में लगने वाले समय, कम गाढ़ा दूध सबसे बड़े प्रभाव वाले वेरिएंट के लिए प्रति स्तनपान 75 किग्रा कम था, जानवरों में छोटे कद सहित कई अन्य प्रभाव जैसे छाती की छोटी परिधि और अन्य शारीरिक परिवर्तनों की भी पहचान की गई।
प्रोफेसर लिटिलजॉन का कहना है कि इन अलग-अलग प्रकार की जानकारी का उपयोग अब आनुवंशिक परीक्षण के माध्यम से वेरिएंट की आवृत्तियों को रोकने में मदद के लिए किया जा सकता है। यह अध्ययन नेचर जेनेटिक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।