ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने वाली ऊष्मा को बिजली में बदलेगी आईआईटी-मंडी

दुनिया में 70 फीसदी ऊर्जा ऊष्माके रूप में बर्बाद हो जाती है और यह ऊष्मा वातावरण में चली जाती है, ऊष्मा ग्लोबल वार्मिग का प्रमुख कारण बनती है।
Photo: Mario
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हिमाचल प्रदेश के मंडी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के शोधकर्ता एक थर्मोइलेक्ट्रिक सामग्री विकसित कर रहे हैं, जो ऊष्मा को प्रभावी रूप से बिजली में बदल सकता है। हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि सौर ऊर्जा पर बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है, जबकि अन्य वैकल्पिक स्त्रोत भी महत्वपूर्ण हैं, भले ही उनके बारे में अभीतक जानकारी न हो।

उदाहरण के लिए, ऊष्मा से बिजली पैदा करना आकर्षक है। क्योंकि उद्योगों,  बिजली संयंत्रों, घरेलू उपकरणों और वाहन जैसे उद्योगों में मानवीय गतिविधियों के जरिए बहुत सारी ऊष्मा पैदा होती है, जहां यह ऊष्मा व्यर्थ चली जाती है। हाल के वर्षों में प्रौद्योगिकी के विकास में काफी तेजी आई है जहां प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल से वातावरण से ऊर्जा लेकर इसे बिजली में बदल सकते हैं। ऐसी भविष्य की तकनीकें जो सूर्य, गर्मी और यांत्रिक ऊर्जा को ऊर्जा के स्थायी स्रोत के रूप में जानी जाती हैं।

आईआईटी-मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर (भौतिकी) अजय सोनी के नेतृत्व में एक शोध दल उन सामग्रियों का अध्ययन कर रहा है, जो ऊष्मा को बिजली में बदल सकती हैं। शोध दल थर्मोइलेक्ट्रिक विषयों पर शोध कर रहा है और इसके कई शोध पत्र प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। जिसमें एप्लाइड फिजिक्स लेटर्स, फिजिकल रिव्यू बी और जर्नल ऑफ एलॉयज एंड कंपाउंड्स शामिल हैं। अजय सोनी ने कहा थर्मोइलेक्ट्रिक मटीरियल्स सीबैक प्रभाव के सिद्धांत पर काम करती है, जिसमें दो धातुओं के मिलने के स्थान पर तापमान के अंतर के कारण बिजली उत्पन्न होती है।अजय सोनी बताते हैं कि पश्चिमी दुनिया में फॉक्सवैगन, वोल्वो, फोर्ड और बीएमडब्ल्यू जैसी कई वाहन कंपनियां थर्मोइलेक्ट्रिक हीट रिकवरी सिस्टम्स को विकसित कर रही हैं, जिससे ईंधन दक्षता में तीन से पांच फीसदी सुधार हो सकता है।

सोनी ने बताया कि उन्हेंने बिस्मथ टेल्यूराइड, टिन टेलुराइड और सिल्वर युक्त क्रिस्टलीय सुपरियोनिक, अरगिरोडाइट्स जैसे अर्धचालकों का अध्ययन किया है और थर्मोइलेक्ट्रिक फिगर-ऑफ-मेरिट में सुधार करने के लिए उन्होंने थोड़ी मात्रा में विभिन्न तत्वों के साथ इसका इस्तेमाल किया है, जिससे थर्मोइलेक्ट्रिक क्षमता बढ़ जाती है।

आदर्श रूप से, 3-4 का फिगर-ऑफ-मेरिट को 40% से अधिक व्यर्थ उष्मा को उपयोगी बिजली में बदल सकता है। अजय सोनी ने कहा कि उनका शोध दल उन सभी सामग्रियों का अध्ययन कर रहा है, जो ऊष्मा को बिजली में बदल सकती हैं। उसमें से उनके शोध समूह ने सॉफ्ट फोनन मोड्स का अवलोकन किया जो विभिन्न सामग्रियों के लिए 1-1.6 की रेंज में उच्च आंकड़े के साथ बेहतर थर्मोइलेक्ट्रिक की क्षमता का प्रदर्शन करते है।

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