आइआइटी, दिल्ली के छात्रों ने बनाया एंटीवायरल फैब्रिक, 30 मिनट में वायरस को कर देता है नष्ट

शोधकर्ताओं ने बताया कि रोगाणुरोधी कपड़ा फैबियम ने 30 मिनट के भीतर 99.9 फीसदी रोगाणुओं को नष्ट किया
फोटो: टीम फैबियोसिस इनोवेशन
फोटो: टीम फैबियोसिस इनोवेशन
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली ने तीन साल के कठोर शोध और विकास के बाद अत्यधिक प्रभावी एंटीवायरल कपड़ा बनाने की तकनीक विकसित की है। इस तकनीक को फैबियोसिस इनोवेशन, एक डीप-टेक हेल्थकेयर कहा गया है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि यह बेहद किफायती और सबसे अच्छा मेडिकल टेक्सटाइल फैबियम है, जो 30 मिनट के भीतर लगभग 99.9 फीसदी बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट कर देता है।

बाजार में उपलब्ध साधारण रोगाणुरोधी कपड़े के उत्पाद 24 घंटे की अवधि में रोगाणुओं को रोकते हैं और वह भी अत्यधिक प्रभावी नहीं होते हैं। 24 घंटों का यह समय उन रोगाणुरोधी कपड़े उत्पादों को रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग करने के लिए सही नहीं है, क्योंकि एक विशिष्ट जीवाणु लगभग 20 से 30 मिनट की अवधि में खुद को दोगुना कर देता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि फैबियम को हाय-पैट नामक तकनीक का उपयोग करके विकसित किया गया है। जो इसे बैक्टीरिया, वायरस और कवक के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी बनाता है। रोगजनकों के संपर्क के कुछ सेकंड के भीतर फैबियम काम करना शुरू कर देता है और उनमें से लगभग 99.9 फीसदी को 30 मिनट के भीतर नष्ट कर देता है।

फैबियम का बड़े पैमाने पर निर्माण

फैबियम के बड़े पैमाने पर निर्माण के लिए मानक कपड़ा प्रसंस्करण मशीनरी का उपयोग करते हुए रासायनिक योगों के एक सेट के माध्यम से कच्चे सूती कपड़े को पारित करने की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर भारतीय कपड़ा उद्योग के पास उपलब्ध हैं।

उन्होंने कहा कि टीम ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में कपड़ा उद्योग करने वालों के सहयोग से बड़े पैमाने पर निर्माण परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा किया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसकी उच्च दक्षता और सामर्थ्य को बनाए रखते हुए बड़े पैमाने पर कपड़े का निर्माण किया जा सके।

फैबियम किसी भी प्रकार के कपड़े से बनाया जा सकता है, प्राकृतिक या सिंथेटिक या बुना हुआ, बिना बुना हुआ। फैबियम की प्रमुख विशेषता में से एक इसका रंग प्राकृतिक है, जो 100 फीसदी सफेद है जो इसे आगे की रंगाई, छपाई, कढ़ाई और अन्य प्रकार की डिजाइनिंग के लिए उपयुक्त बनाता है।

फैबियोसिस इनोवेशन के संस्थापक यती गुप्ता ने कहा कि फैबियम को अपनाने के पीछे सस्ती श्रम लागत के बजाय एक तकनीक है। टीम फैबियोसिस द्वारा किए गए एक बाजार शोध से पता चलता है कि हमारी लागत प्रभावी नए रासायनिक सूत्रीकरण और अनोखी कपड़ा प्रसंस्करण तकनीक फैबियम को तुलनात्मक रूप से बेहद किफायती एंटीवायरल कपड़े के रूप में सामने लाती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि फैबियम उत्पादों के निर्माण और वितरण के लिए हमें उद्योग से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिल रही है।

फैबियम की विशेषताएं

यह कपड़ा फॉर्मलाडेहाइड और धातु नैनोकणों से मुक्त है, जो मानव शरीर में विषाक्तता और जलन पैदा करता है। हवा के आर पार जाने के लिए एएसटीएम डी737 मानक के अनुसार कपड़े का कड़ाई से परीक्षण किया जाता है, जो दर्शाता है कि फैबियम लगभग नियमित कपड़ों की तरह सांस लेने योग्य है। इसे मास्क और कवरॉल (पीपीई) जैसे अनुप्रयोगों में बहुत उपयोगी बनाता है, जहां सांस लेने में कठिनाई लगभग हमेशा एक समस्या होती है।

फैबियोसिस उत्पाद

इसकी स्थापना 2019 में श्री यती गुप्ता द्वारा की गई थी, जो आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र भी हैं और वस्त्र और फाइबर इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी दिल्ली से प्रो सम्राट मुखोपाध्याय की सलाह के मुताबिक काम कर रहे हैं। दोनों ने 2018 में भारत में एक उभरते उद्योग के रूप में मेडिकल टेक्सटाइल्स की खोज शुरू की और अस्पतालों में क्रॉस-संदूषण को रोकने के लिए संक्रमण रहित कपड़े विकसित करना शुरू कर दिया।

फैबियोसिस के संरक्षक प्रो सम्राट मुखोपाध्याय ने कहा हम अपने संक्रमण-रोधी उत्पादों को साबुन की पट्टी की तरह आसानी से उपलब्ध और किफायती बनाना चाहते हैं। हमारा मिशन भारत में ही बड़े पैमाने पर फैबियम का निर्माण करना है। उन्होंने कहा कि  इसके लिए हम हम जैव प्रौद्योगिकी विभाग के बहुत आभारी हैं।

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