आईआईटी दिल्ली की नई तकनीक, डीजल की बजाय डाइमिथाइल ईथर से भी चलेंगी गाड़ियां

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक की मदद से वाहनों से निकलने वाले धुंए, कालिख और पीएम उत्सर्जन को काफी कम किया जा सकता है
इंडियन आयल कॉर्पोरेशन में पोर्टेबल डिस्पेंसिंग सिस्टम की मदद से 'दोस्त' वाहन में भरा जा रहा डाइमिथाइल ईथर (डीएमई) ईंधन; फोटो आईआईटी, दिल्ली
इंडियन आयल कॉर्पोरेशन में पोर्टेबल डिस्पेंसिंग सिस्टम की मदद से 'दोस्त' वाहन में भरा जा रहा डाइमिथाइल ईथर (डीएमई) ईंधन; फोटो आईआईटी, दिल्ली
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आईआईटी दिल्ली के नेतृत्व में इंडियन आयल और अशोक लेलैंड के शोधकर्ताओं ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से मोटर गाड़ियों को डीजल के साथ-साथ डाइमिथाइल ईथर से भी चलाया जा सकेगा। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसकी मदद से पर्यावरण को भी फायदा पहुंचेगा।

शोधकर्ताओं के अनुसार इस फ्लेक्स फ्यूल तकनीक की मदद से वाहनों को डीजल और डाइमिथाइल ईथर दोनों से चलाया जा सकता है। इतना ही नहीं इस तकनीक की खासियत यह है कि इसकी मदद से वाहनों से निकलने वाले धुंए, कालिख और पीएम उत्सर्जन को काफी कम किया जा सकता है।

साथ ही इसकी मदद से इंजन काफी स्मूथ हो जाता है जिससे वो शोर कम करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक की मदद से इंजन के प्रदर्शन में सुधार किया जा सकता है, साथ ही इससे फ्यूल की भी बचत होती है। सबसे महत्वपूर्ण यह तकनीक प्रदूषण और उत्सर्जन को कम कर देती है ऐसे में यह पर्यावरण के लिहाज से भी फायदेमंद है।

आईआईटी दिल्ली ने जो जानकारी साझा की है उसके मुताबिक डाइमिथाइल ईथर (डीएमई), कंप्रेशन इग्निशन इंजन वाले वाहनों के लिए एक वैकल्पिक है, क्योंकि पारंपरिक डीजल (51) की तुलना में इसकी सीटेन संख्या (~58) अधिक होती है।

इस ईंधन को गैसीकरण और फिशर-ट्रॉप्स सिंथेसिस प्रक्रिया के माध्यम से बायोमास, कोयला, औद्योगिक अपशिष्ट, म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट आदि से बनाया जा सकता है। इसके साथ ही मेथनॉल से भी इसका उत्पादन किया जा सकता है। आमतौर पर इस ईंधन डाइमिथाइल ईथर (डीएमई) को तरल रूप में स्टोर किया जाता है, जिसे निर्धारित तापमान और दबाव में आसानी से वाष्प या गैस में बदला जा सकता है।      

इस फ्लेक्स-फ्यूल ऑटोमोटिव व्हीकल टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी देते हुए आईआईटी दिल्ली के डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी साइंस एंड इंजीनियरिंग के प्रमुख प्रोफेसर के. सुब्रमण्यम ने बताया कि इस डीएमई फ्यूल को इंजन के इनटेक मैनिफोल्ड में इंजेक्ट किया जाता है, वहीं डीजल को सीधे इंजन सिलेंडर में इंजेक्ट किया जाता है। यहां सीआरडीआई प्रणाली लोड के मामले में डीजल और डीएमई फ्यूल इंजेक्शन दोनों को नियंत्रित करती है। ऐसे में इंजन बिना किसी रूकावट के डीएमई फ्यूल का अधिकतम उपयोग कर पाता है। 

इस तकनीक का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में डीजल से चलने वाली मोटर गाड़ी को फ्लेक्स ईंधन आधारित वाहन में बदल दिया। इस फ्लेक्स ईंधन प्रौद्योगिकी आधारित वाहन 'दोस्त' का 8 अप्रैल 2022 को आईआईटी दिल्ली में सफल परिक्षण किया गया था। गौरतलब है कि आईआईटी दिल्ली के डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी साइंस एंड इंजीनियरिंग (डीईएसई) द्वारा तैयार इस प्रोजेक्ट को भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी का भी सहयोग प्राप्त है।

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