चिप में रेटिना लगाकर पहले किया जाएगा दवा का टेस्ट

चिप में रेटिना एक नया तरीका है जो दो तकनीकों को जोड़ कर चिकित्सा और दवा के विकास में क्रांति लाकर नए युग में प्रवेश करने की पहल करता है
Photo: Gettyimages
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एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में सन 2020 तक 38.5 मिलियन लोगों के अंधेपन का शिकार होने की आशंका है, जो 2015 की तुलना में 6.94 फीसदी अधिक है।  आज भी भारत में हजारों लोगों के आंखों का इलाज सही से नहीं हो पाता है। अकसर सुनने को मिलता है कि गलत दवा डलने से आंखों की रोशनी चली गई। लोग दवाइयों के गलत असर से अंधेपन तक के शिकार हो जाते हैं। पर इस नए शोध में आंखों के लिए आशा की नई किरण दिखती है। इसमें नई दवा के बुरे प्रभाव को सीधे रेटिना को नहीं झेलना पडे़गा, अपितु दवा का प्रयोग पहले 'चिप रेटिना' पर किया जाएगा।

चिप में रेटिना का विकास, जो कृत्रिम ऊतक जैसी प्रणाली के साथ जीवित मानव कोशिकाओं को जोड़ता है। यह शोध ओपन-एक्सेस जर्नल ईलाइफ में प्रकाशित हुआ है। यह अत्याधुनिक उपकरण नेत्र रोग के अध्ययन के लिए मौजूदा मॉडल का एक उपयोगी विकल्प बन सकता है और वैज्ञानिकों को रेटिना पर दवाओं के प्रभाव का अधिक कुशलता से परीक्षण करने में सहायता प्रदान कर सकता है।

अंधेपन का कारण बनने वाली कई बीमारियां रेटिना को नुकसान पहुंचाती हैं, आंख के पीछे ऊतक की एक पतली परत होती है जो मस्तिष्क को प्रकाश और रिले दृश्य की जानकारी एकत्र करने में मदद करती है। कैंसर जैसी अन्य बीमारियों के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवाओं के हानिकारक दुष्प्रभावों से भी रेटिना कमजोर होता है।

नेत्र रोगों और दवा के दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक अक्सर जानवरों या रेटिना ऑर्गेनोइड, छोटे रेटिना जैसी संरचनाओं पर भरोसा करते हैं, जो मानव स्टेम कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं। लेकिन इन दोनों मॉडल में अध्ययन के परिणाम अकसर लोगों में बीमारी और दवा के प्रभावों का सही-सही पता लगाने में विफल होते हैं। इस कारण वैज्ञानिकों की एक टीम ने इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करके, परीक्षण करने के लिए रेटिना को फिर से बनाने की कोशिश की है।

अध्ययनकर्ता क्रिस्टोफर प्रोबस्ट बताते हैं  कि "यह बेहद चुनौतीपूर्ण है, लेकिन असंभव नहीं है, इसमें इंजीनियरिंग तरीकों का उपयोग करके पूरी तरह से मानव रेटिना के जटिल ऊतक संरचना को फिर से तैयार करना था।" 

इन चुनौतियों से उबरने के लिए, वैज्ञानिकों ने कृत्रिम ऊतकों पर कई अलग-अलग प्रकार की रेटिना कोशिकाओं को विकसित करने के लिए मानव प्लूरिपोटेंट स्टेम कोशिकाओं को जमा किया। यह ऊतक ऐसे वातावरण को फिर से बनाता है, जिसमें शरीर की तरह अनुभव होता है और कोशिकाओं को पोषक तत्वों और दवाओं को उसी तरह से ले जाता है, जैसे मानव रक्त वाहिनियां ले जाती है।

सह-अध्ययनकर्ता केविन अचबर्गर जो कि न्यूरोनेटोमी एंड डेवलपमेंटल बायोलॉजी, जर्मनी के ट्यूबिंगन के एबरहार्ड कार्ल्स विश्वविद्यालय में पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता हैं, कहते है कि "इस संयोजन से हम एक जटिल बहु परतीय (मल्टी-लेयर) संरचना को सफलतापूर्वक बना पाए है। इसमें रेटिनल ऑर्गेनोइड्स में मौजूद सभी प्रकार के सेल और परतें शामिल हैं, जो रेटिना पिगमेंट एपिथेलियम परत से जुड़ी है।"

टीम ने मलेरिया रोधी दवा क्लोरोक्वीन और एंटीबायोटिक जेंटामाइसिन के साथ 'चिप-रेटिना' का इलाज किया, जो आमतोर पर रेटिना के लिए खतरनाक अथवा विष का काम करता हैं। उन्होंने पाया कि मॉडल में रेटिना की कोशिकाओं पर दवाओं का खतरनाक प्रभाव हुआ, उन्होंने माना कि यह हानिकारक रासायनिक प्रभावों के परीक्षण के लिए एक उपयोगी उपकरण हो सकता है।

अचबर्गर ने बताया कि "इस छोटे मॉडल का फायदा यह है कि इसे रेटिना पर हानिकारक प्रभावों के लिए सैकड़ों दवाओं के परीक्षण करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, इसके अलावा, यह वैज्ञानिकों को एक रोगी से स्टेम सेल लेने और उस व्यक्ति की अपनी कोशिकाओं में रोग और संभावित उपचार दोनों का अध्ययन करने में सहायता प्रदान कर सकता है।"

इस शोध के प्रमुख अध्ययनकर्ता प्रोफेसर लॉसकिल ने निष्कर्ष  कहा कि "यह नया दृष्टिकोण दो तकनीकों को जोड़ता है - ऑर्गनोइड्स और ऑर्गन-ऑन-ए-चिप और दवा के विकास में क्रांति लाने और व्यक्तिगत चिकित्सा के एक नए युग में प्रवेश करने की क्षमता है।"  प्रोफेसर लॉसकिल, ट्यूबिंगन के एबरहार्ड कार्ल्स विश्वविद्यालय में प्रायोगिक पुनर्योजी चिकित्सा के लिए सहायक प्रोफेसर हैं, और इंटरफैसिअल इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी के फ्रैन्होफ़र इंस्टीट्यूट में फ्रैन्होफ़र ग्रुप के ऑर्गन-ऑन-ए-चिप के प्रमुख हैं। उनकी प्रयोगशाला में पहले से ही हृदय, वसा, अग्न्याशय और अन्य अंगों के लिए 'अंग-पर-चिप' (ऑर्गन-ऑन-ए-चिप ) तकनीक को विकसित किया जा रहा है।

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