खगोल विज्ञान में दिनों-दिन हो रही प्रगति ब्रह्माण्ड के नये आयाम को समझने में मददगार साबित हो रही है। पिछली शताब्दी में हुए ज्ञान के प्रसार के चलते वैज्ञानिकों ने यह समझने में सफलता हासिल कर ली है कि ब्रह्मांड कैसे काम करता है। हम जितना इसके विषय में जानते जा रहे हैं, उतने ही नये सवाल हमारे सामने आते जा रहे हैं और उनको सुलझाने की हमारी ललक बढ़ती जा रही है । इन्ही अनसुलझे सवालों में से एक है कि हमारे ब्रह्मांड का विस्तार कितनी तेजी से हो रहा है?
1920 के दशक में ही हमने यह जान लिया था कि हमारा ब्रह्मांड लगातार विस्तारित होता जा रहा है । जिसका सबसे बड़ा सबूत कि जो आकाशगंगा हमसे जितनी अधिक दूर है, वह उतनी ही तेजी से हमसे और दूर जा रही है। जो स्पष्ट तौर पर इस बात का सबूत है कि ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है । 1990 के दशक में वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड के विस्तार की दर में तेजी देखी थी। उनके अनुसार हमारा ब्रह्माण्ड अनुमान से कहीं अधिक तेजी से फैल रहा है । वर्तमान में विस्तार की इस दर को "हबल कांस्टेंट" के जरिये मापा जाता है । इस फैलाव को नासा के वैज्ञानिकों ने हबल टेलिस्कोप के जरिये मापने में सफलता हासिल की थी, उनके अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार अनुमान से करीब 9 फीसदी ज्यादा तेज गति से हो रहा है। गौरतलब है कि "हबल कांस्टेंट" के लिए माप की इकाई प्रति सेकंड प्रति मेगापार्सेक किलोमीटर है- जो कि तीस लाख प्रकाश वर्षों के बराबर होती है। 1998 में शोधकर्ताओं की दो टीमों ने पाया था कि ब्रह्माण्ड के विस्तार की दर, दूरी के साथ और तेज हो गई है । जिसके कारण ब्रह्मांड एक रहस्यमय "डार्क एनर्जी" से भर गया है । इसके लिए उन्हें 2011 में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था ।
वैज्ञानिकों का यह भी मत है कि अभी हमारे ब्रह्मांड संबंधी ज्ञान में कुछ कमियां है, जिसके कारण हम यह ठीक से पता कर पाने में असमर्थ हैं कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सिद्धांत बिग-बैंग के बाद असल में क्या घटित हुआ। कुछ समय पहले तक ऐसा लगता था कि हबल कॉन्स्टेंट के जरिये विस्तार की जो दर मापी गयी थी, उसमें लगातार परिवर्तन हो रहा है। विभिन्न तकनीकों का उपयोग करने से वैज्ञानिकों को अलग-अलग माप पता चला है और इनमें रहस्यमय तौर पर विसंगतियां सामने आई है। परन्तु जर्नल साइंस में प्रकाशित एक नये अध्ययन में ब्रह्माण्ड के विस्तार को मापने की एक नयी विधि प्रस्तुत की गयी है, जो शायद इस रहस्य से पर्दा हटाने में मददगार हो सकती है।
आखिर क्या है ब्रह्माण्ड के विस्तार की दर
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के प्लैंक सेटेलाइट के जरिए किया गया ब्रह्मांड का आंकलन और पर्यवेक्षण, ब्रह्मांड के विस्तारित होने की दर का अनुमान देता हैं लेकिन वह हबल कास्टेंट के जरिए प्राप्त ब्रह्मांड के फैलने की दर के आंकड़ों से मेल नहीं खाते हैं। फैलाव की गति की दर के सही आंकलन में अभी भी समस्या है। दो अलग-अलग विधियों के अनुसार, विस्तार की यह दर 67.4 और 73 हबल कांस्टेंट हो सकती है। सदी के अंत तक, वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हो गए थे की यह दर लगभग 70 किलोमीटर प्रति सेकंड प्रति मेगापार्सेक थी । एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित एक शोधपत्र में जांस हाप्किंस यूनिवर्सिटी में भौतिकी और खगोलशास्त्र के प्रोफेसर रीस और उनके सहयोगियों ने ब्रह्मांड के फैलाव की दर संबंधी आंकड़े में आने वाले अंतर को लेकर कहा था कि यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है। इस अंतर को शायद नहीं खत्म किया जा सकता। यह मामला सिर्फ दो प्रयोगों के बीच असहमतियों का नहीं है। हम कुछ ऐसा मापने की कोशिश रहे हैं जो बुनियादी तौर पर बिल्कुल अलग है। परन्तु अब जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के शोधकर्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन में ब्रह्मांड में तेजी से हो रहे विस्तार को मापने के एक नए तरीके का वर्णन किया गया है।
उनके अनुसार विस्तार की यह दर 82.4 किलोमीटर प्रति सेकंड प्रति मेगापार्सेक के करीब है, जो कि पिछली गणनाओं की तुलना में कुछ अधिक है- हालांकि वह इसमें 10 फीसदी की त्रुटि होने की बात से इंकार नहीं कर रहे। जिसका अर्थ यह हुआ, यह दर कम से कम 74 या अधिक से अधिक 90 के बीच हो सकती है। नई गणना इस बात पर आधारित है कि बड़ी आकाशगंगाओं के चारों ओर प्रकाश कैसे झुकता है।
कुछ अनसुलझे रहस्य
चिंता की बात है कि दोनों ही मापों को सटीक बताया गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि विभिन्न तरीकों के बीच अंतर का यह अर्थ नहीं है कि उनकी गणना में कोई त्रुटि है बल्कि ब्रह्मांड के विस्तरित होने की दर संबंधी यह विसंगति बिंग-बैंग के बाद अनुमानित प्रक्षेप-पथ से जुड़ी हो सकती है। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट में कॉस्मोलॉजिस्ट और इस शोध की एक शोधकर्ता इन्ह जी ने बताया कि यह तनाव अथवा विसंगति हमारे ब्रह्माण्ड के कुछ ऐसे रहस्यों से जुडी हो सकती है जो पहले घटित हुए थे और जिनके विषय में हम ज्यादा कुछ नहीं जानते। उन्होंने माना कि हालांकि अध्ययन में 10 फीसदी की त्रुटि है जोकि एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण हबल कांस्टेंट का सही माप नहीं मिल सकता, लेकिन इसकी विधि इस ओर भी इशारा करती है कि ब्रह्माण्ड संबंधी सिद्धांत में कुछ मूलभूत समस्याएं हैं।
विसंगति की इस वजह को समझने के लिए हमें बहुत ही पास और बहुत दूर के ब्रह्मांड के बीच की दूरी के पैमाने को बेहतर ढंग से जोड़ने ओर समझने की आवश्यकता है ।
यह नया शोधपत्र इस चुनौती के लिए एक साफ-सुथरा दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। विस्तार की दर सम्बन्धी लगाए गए कई अनुमान इनके बीच की दूरी के सटीक माप पर निर्भर करते हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा कर पाना कठिन है, क्योंकि हम पूरे ब्रह्मांड को केवल एक फीते का प्रयोग करके नहीं माप सकते । आंकलन में यह फर्क इस ओर भी इशारा करता है कि इसमें कुछ बहुत ही ऐसा अहम है जिसे हम नहीं पकड़ पा रहे हैं जो ब्रह्मांड के विस्तार की इस गुत्थी को सुलझा सके ।
सच यही है कि अब तक हम सिर्फ इतना समझ पाएं है कि हमारा ब्रह्माण्ड फैल रहा है, पर वो किस दर से फैल रहा है, यह अभी भी एक अनसुलझा सवाल है । लेकिन हम यह आशा करते हैं कि आने वाले वक्त में जल्द ही इस रहस्य से भी पर्दा उठ जायेगा और हम अपने इस ब्रह्माण्ड को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।