कोरोना के बहाने आपकी निजता की निगरानी कर रही है सरकार?

अपने नागरिकों की निगरानी एक बुरी नजीर है और हो सकता है कि यह इस स्वास्थ्य संकट के खत्म होने के बाद भी जारी रहे
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कोविड-19 के मरीजों के नाम जारी करने से लेकर, मोबाइल ऐप के माध्यम से लोगों को उनकी निजी जानकारी साझा करने तक, केंद्र और राज्य सरकारें इस स्वास्थ्य संकट के समय खुलेआम लोगों की निजता और मानवीय मर्यादा का उल्लंघन कर रही हैं। दरअसल, सरकारें मोबाइल निगरानी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से चेहरे की पहचान का एक पुरातन कानून का दोहन कर रही है जो टेलीविजन के आविष्कार से पहले वजूद में आया था। यह कानून है महामारी अधिनियम (एपिडेमिक एक्ट) 1897, जो पिछले 123 वर्ष से बिना किसी बड़ा बदलाव के चल रहा है।

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स में स्वास्थ्य सलाहकार पीएस राकेश द्वारा वर्ष 2016 में प्रकाशित एक शोधपत्र में पाया गया कि यह कानून सरकारों को लोगों की स्वायतता, गोपनीयता और स्वतंत्रता पर परिस्थिति को बिना स्पष्ट तौर पर परिभाषित करते हुए लगाम लगाने की इजाजत देता है। यह कानून किसी नैतिक और मानव अधिकारों पर तो कुछ नहीं कहता, साथ ही, अधिकारियों को भी किसी मुकदमे या कानूनी कार्रवाई से सुरक्षा देता है। 1897 का यह कानून, 2005 के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून के साथ मिलकर कोविड-19 से लड़ने के कड़े कदमों को उठाने के लिए कानूनी नींव प्रदान करता है।

डिजिटल निगरानी के अलावा सामाजिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए राज्य सरकारें पुलिस के द्वारा इस्तेमाल में लाए दाने वाली तकनीकों का इस्तेमाल अपने नागरिकों के ऊपर नजर रखने के लिए कर रही हैं। प्रशासन हर वे तरीके इस्तेमाल करने के लिए उत्सुक है जिससे वायरस के प्रसार को रोका जा सके, लेकिन जनता के ऊपर बिना किसी मजबूत कानूनी ढांचे के निगरानी की वजह से सार्वजनिक सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता के बीच अनिश्चित संतुलन बनने के खतरे की तरफ इशारा करता है। उदाहरण के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रचारित आरोग्य सेतु मोबाइल एप्लीकेशन को देखें तो इसमें भी निजता की चिंताएं शामिल हैं, जैसे ऐप पर दी गई जानकारी को कैसे उपयोग या साझा किया जाएगा।

इसी तरह, राज्य सरकारें ऐप और वेबसाइट का बिना निजता सुरक्षा उपायों के जारी कर रही हैं और जिसका उपयोग बड़ी संख्या में लोगों के गंभीर स्वास्थ्य और निजी जानकारी इकट्ठा करने में हो रहा है। तमिलनाडु अपने क्वारंटाइन ऐप से पुलिस के माध्यम से लोगों की निगरानी कर रही है। बिना गोपनीयता नीति और उपयोग की शर्तों के साथ ऐप को जारी कर दिया। मानव अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक गैर लाभकारी संगठन एक्सेस नाउ की रिपोर्ट चेताती है कि स्थान की निगरानी बिना किसी सुरक्षा उपाय के रखने से वे जानकारियां भी साझा हो सकती हैं जिनका जिनका कोरोनावायरस के संग लड़ाई में कोई काम नहीं है और ऐसे पूरा देश निगरानी की जद में आ जाता है।

यह स्थिति वैश्विक स्तर पर भी समान रूप से गंभीर है क्योंकि कई देश अपने कानूनों में बदलाव कर निरंकुश होकर बिना जनता की सहमति के उन पर नजर रखने का अधिकार पा रहे हैं। प्राइवेसी इंटरनेशनल के एडवोकेसी डायरेक्टर एडिन ओमानोविक कहते हैं, “निगरानी का जो दौर हम लोग देख रहे हैं, वह वाकई अभूतपूर्व है। यह 9/11 के उस समय से भी आगे निकल गया है जब से विश्व में सरकारें जनता पर निगरानी रखने लगी हैं। कानून, ताकत और तकनीकों का उपयोग विश्वभर में मानव की आजादी पर एक गंभीर और लंबे समय तक चलने वाला खतरा पैदा कर रहा है।” यह संस्था 100 दूसरे नागरिक संगठनों के साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर सरकारों से कोविड-19 के समय उठाए गए आक्रामक कदमों से मानव अधिकारों को सुरक्षित रखने की सिफारिश कर रही है। वह आगे कहते हैं कि यह जाहिर है कि असाधारण संकट के लिए असाधारण कदमों की जरूरत होती है, लेकिन ऐसे वक्त में अद्वितीय बचाव की भी जरूरत होती है।

सरकारें न केवल लापरवाही से प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही हैं, बल्कि लोग सवाल पूछने से भी डरते हैं। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी की नीति अधिकारी मीरा स्वामीनाथन कहती हैं, “नागरिक अभी अपने परिवारों की चिकित्सीय जानकारी सार्वजनिक डेटाबेस और मोबाइल ऐप पर अंधाधुंध रूप से साझा कर रहे हैं, जो उन्होंने सामान्य परिस्थितियों में कभी नहीं किया होगा।”

साथिया वेंकटेशन 23 मार्च को न्यूयॉर्क से हैदराबाद लौंटी और सेल्फ क्वारंटाइन में लगातार उत्पीड़न और डर के माहौल में रही। वह कहती हैं, “पहले एयरपोर्ट के अधिकारियों ने मेरी कलाई पर सेल्फ-क्वारंटाइन का ठप्पा लगाया। तीन दिन के बाद नगर निगम के लोग आकर मेरे घर के आगे क्वारंटाइन का एक नोटिस चिपका गए। उन्होंने कहा कि वह उनका परीक्षण करने बीच-बीच में आएंगे। हालांकि, उसके बाद से कोई भी उनकी तरफ से नहीं आया। इस दौरान, वह नोटिस मेरे सोसाइटी के व्हाट्सऐप ग्रुप में हलचल मचाने लगा। इससे मुझे पता चला कि आपातकालीन जरूरत पड़ने पर मेरी मदद को कोई नहीं आने वाला।” वेंकटेशन ने एक और चिंताजनक बात कही, “सरकार के विभागों के बीच जानकारियां साझा नहीं हो रही हैं। मैंने एयरपोर्ट पर अपनी सारी जानकारी भरी थी। कुछ दिन बाद मुझे स्थानीय पुलिस का फोन आया कि उन्हें मेरा पता चाहिए। उनका कहना था कि एयरपोर्ट से उन्हें सिर्फ मेरा फोन नंबर मिला।”

कई देश निगरानी और लोगों की जानकारी इकट्ठा करने के तरीके अपनाया, लेकिन पुराने अनुभव कहते हैं कि ये जानकारियां किसी काम नहीं आतीं। वर्ष 2014 में अफ्रीका में इबोला के प्रसार पर हुए शोध में योगदान देने वाली सियन मार्टिन मेकडोनाल्ड लिखती हैं, “यह धारणा है कि लोगों की जानकारियां इकट्ठा कर उसका विश्लेषण कर स्वास्थ्य संबंधी कार्यों को गति और बल मिलेगी और मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से इकट्ठा जानकारी से स्वास्थ्य का ढांचा ठीक किया जा सकता है।” मार्च 2016 के शोधपत्र में वह कहती है कि जानकारों ने सुझाव दिया था कि लोकेशन की जानकारी हासिल कर लोगों के संपर्क की जानकारी इकट्ठा की जा सकती है। इस प्रक्रिया में संक्रमण के फैलाव पर नजर रखने के लिए लोगों की आवाजाही की निगरानी होती है जिससे इसका पूर्वानुमान आसानी से लगाया जा सकता है। हालांकि, असल में इस घटना के बाद से मानवता के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने पाया कि डिजिटल माध्यमों के जरिए संपर्कों की निगरानी लीबिया, जो इस संक्रमण का केंद्र था, में सामान्य बात हो गई।

सूचना प्रणाली के विभिन्न हिस्सों- सरकार, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और निजी कंपनियों के बीच समन्वय की अनुपस्थिति के कारण इबोला प्रतिक्रिया के डिजिटलीकरण ने मानवीय प्रतिक्रिया को और अधिक कठिन बना दिया। इसमें शामिल महत्वपूर्ण कानूनी, वित्तीय और व्यावहारिक जोखिमों को हल नहीं किया गया।” कुछ इसी तरह का अनुभव कोविड-19 के संक्रमण के समय भी सामने आ रहा है जिसमें निगरानी का स्तर इबोला से कहीं ज्यादा है। दक्षिण कोरिया में जब निगरानी अगले स्तर तक पहुंची तो लोग अपनी जांच कराने से बचने लगे। इस देश में लोगों की निगरानी जियो लोकेशन के साथ सीसीटीवी फुटेज और क्रेडिट कार्ड के रिकॉर्ड के माध्यम से की जा रही है। जनवरी तक यहां संक्रमित लोगों की जानकारी अपलोड होती रही जिसमें उन्होंने मास्क पहना था या नहीं, या वह कौन सी जगह घूमने गए, जैसी जानकारियां शामिल रहती थीं। लोग भीड़ के हमले के डर से अपनी जांच करवाने से बचने लगे और प्रशासन को सारी जानकारी ऑनलाइन साझा करने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ा। एक्सेस नाउ की रिपोर्ट कहती है, “एक महामारी व्यापक और अनावश्यक डेटा एकत्र करने का कोई बहाना नहीं है। स्वास्थ्य डेटा तक पहुंच उन लोगों तक सीमित होगी जिन्हें उपचार, अनुसंधान करने और अन्यथा संकट का समाधान करने के लिए जानकारी की आवश्यकता होती है।

जानकारी को एक अलग डेटाबेस में सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जाना चाहिए।” यह रिपोर्ट आगे कहती है कि जानकारियों को संकट का समय खत्म होने के बाद मिटा देना चाहिए। निगरानी के मुद्दे पर रिपोर्ट गोपनीयता की सुरक्षा और सटीकता में सुधार करने के लिए मोबाइल उपकरणों के उपयोग के बजाय विस्तृत इन-पर्सन संपर्क ट्रेसिंग की सिफारिश करती है। जियो लोकेशन ट्रैकिंग के मामले में, डेटा को बिना नाम के होना चाहिए। रिपोर्ट में निजी कंपनियों द्वारा डेटा के दुरुपयोग के खिलाफ सख्त सुरक्षा उपायों की भी मांग की गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, “सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए एप्लिकेशन बनाते समय, निजी कंपनियों को अपने उत्पादों के उपयोग से प्राप्त डेटा से पैसा कमाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, डेटा के बाद में होने वाले उपयोग या आगे की प्रक्रिया पर स्पष्ट सीमाएं होनी चाहिए।” भारत में अधिकांश राज्य सरकार के ऐप निजी कंपनियों द्वारा विकसित किए गए हैं और उनमें से कई बिना गोपनीयता नीति के हैं। कंपनियां संयुक्त राज्य में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।

निजता का हनन बड़ा खतरा है जिसे कोविड-19 अचानक से बढ़ा सकता है। कई देशों ने अपने कानून में मनमाने तरीके से बदलाव कर निजता हनन के अधिकार पा लिए हैं और यह स्वास्थ्य संकट के खत्म होने के बाद भी जारी रहेगा। लेखक युवाल नोआह हरारी ने फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित लेख के जरिए चेताया कि यह दौर न केवल निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों को सामान्य बना देगा बल्कि उन देशों में भी यह लागू हो जाएगा जो पहले इस निगरानी का खारिज कर चुके हैं। इससे सरकार द्वारा की जाने वाली हमारी निगरानी ओवर द स्किन से अंडर द स्किन हो जाएगी। यानी सरकार पता चल जाएगा कि हमारे जेहन में क्या चल रहा है। वह कहते हैं कि जब आप स्मार्टफोन के स्क्रीन को उंगली से टच करते थे तो सरकार ये जानना चाहती थी कि आप किस जगह क्लिक कर रहे हैं, लेकिन अब स्क्रीन छूते हैं तो सरकार ये भी जानना चाहती है कि आपकी उंगली का तापमान क्या है और आपकी त्वचा के भीतर का रक्तचाप कितना है।

नया खतरा

केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकाराें ने कोविड-19 की निगरानी वाले कई ऐप जारी किए हैं 

आरोग्यसेतु
डेवलपर: नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर
डाउनलोड्स: 12 करोड़ से अधिक
अनुमति चाहिए: ब्लूटूथ, जीपीएस, संपर्क और स्टोरेज
जानकारी चाहिए: निजी जानकारी जैसे नाम, उम्र, लिंग, स्थान, व्यवसाय और यात्रा का इतिहास के साथ स्वास्थ्य संबंधी जानकारी

गोपनीयता की समस्या

उपयोगकर्ता को उपयोग और गोपनीयता नीति की शर्तों तक पहुंचने के लिए सभी विवरणों को पंजीकृत और प्रस्तुत करना होगा। गोपनीयता नीति कई बार मैं शब्द का उपयोग करती है। इस बात पर अस्पष्टता रहती है कि बाद में डेटा का उपयोग कैसे किया जा सकता है। उपयोगकर्ता का डेटा लीक होने या अनधिकृत उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाने के मामले में सरकार उत्तरदायी नहीं है। उपयोगकर्ता के डेटा का दुरुपयोग नहीं होगा, इस पर गोपनीयता नीति कुछ नहीं कहती।

टेस्ट योरसेल्फ
डेवलपर: इनोवैक्सर आईएनसी
उपयोगकर्ता: 50,000
जानकारी चाहिए: अगर उपयोगकर्ता देना चाहे तो निजी जानकारी जिसमें इंटरनेट उपयोग का इतिहास शामिल है, आईपी एड्रेस की सहायता से सामान्य भू-भाग की जानकारी और सोशल मीडिया की जानकारी।

गोपनीयता की समस्या

यह वेबसाइट जो खुद के माध्यम से कोविड-19 के संक्रमण का मूल्यांकन करने का दावा करती है, बहुत सारी स्वास्थ्य संबंधी इकट्ठा करती है जिससे उपयोगकर्ता को कोई लाभ नहीं मिलता। जानकारों ने आगाह किया है कि ऐसी गैर जरूरी जानकारियां इकट्ठा करने के बजाए सरकार को उपयोगकर्ता को सीधे किसी चिकित्सक से दूर से ही संपर्क करने की सुविधा देनी चाहिए थी।

तमिलनाडु क्वारंटाइन मॉनिटर
डेवलपर: पिक्सोन एआई सॉल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड
डाउनलोड्स: 100,000
अनुमति चाहिए: लाइव निगरानी के लिए जीपीएस
जानकारी चाहिए: आवाजाही की जानकारी

गोपनीयता की समस्या

ऐप में गोपनीयता नीति या उपयोग की शर्तें नहीं हैं और इस बात की जानकारी नहीं देती है कि डेटा का उपयोग कैसे किया जाएगा, जो भारत में सामान्य डेटा सुरक्षा विनियमन के तहत अनिवार्य है।

महाराष्ट्र महाकवच
डेवलपर: कई सरकारी और निजी संस्थाएं
डाउनलोड्स: 10,000
अनुमति चाहिए: जीपीएस लोकेशन
जानकारी चाहिए: निजी जानकारी, स्थान की जानकारी, तस्वीरें

गोपनीयता की समस्या

ऐप में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करने के बावजूद सामान्य गोपनीयता नीति है

(स्रोत: दिविज जोशी, मोज़िला में प्रौद्योगिकी नीति विशेषज्ञ और मीडिया रिपोर्ट)
गहन निगरानी

यूरोपीय संघ और कम से कम 23 देश नागरिकों पर नजर रख रहे हैं, जो कोविड संकट के दौरान गैर-सहमति से सरकार के डिजिटल निगरानी में अचानक वृद्धि को उजागर करते हैं। यहां कुछ कदम हैं जो चिंताएं बढ़ाते हैं

ऑस्ट्रिया

सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी ए-1, स्वैच्छा से सभी मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं के प्रोफाइल के साथ आवाजाही की जानकारी सरकार को प्रदान कर रही है। कंपनी ने अपने ग्राहकों को बिना बताए या उनकी सहमति के बिना सूचना साझा करने की शुरुआत की।

ऑस्ट्रेलिया

एडिलेड राज्य में पुलिस कोविड रोगियों और उनके आवाजाही पर नजर रखने के लिए आपराधिक जांच के लिए उपयोग किए जाने वाले एक निगरानी वाले तंत्र पर भरोसा कर रही है। पुलिस को किसी व्यक्ति की निगरानी के लिए सिर्फ उसका फोन नंबर चाहिए और इसके बाद सारी जानकारी स्वास्थ्य विभाग के साथ साझा की जा रही है।

बुल्गारिया

दूरसंचार से ग्राहक डेटा की मांग करने का अधिकार आंतरिक मंत्रालय को देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक संचार अधिनियम में संशोधन किया गया है। संशोधन का मतलब है कि मंत्रालय को निगरानी करने के लिए अदालत के आदेश की आवश्यकता नहीं है और संकट खत्म होने के बाद भी यह विशेषाधिकार जारी रहेगा।

चीन

अली पे और वीचैट जैसे ऐप ऐसे व्यक्तियों को चिन्हित कर रहे हैं जिनमें संक्रमण का जोखिम अधिक है और उन्हें इसके बाद क्वारंटाइन में भेज दिया जाता है या भीड़भाड़ से अलग रख दिया जाता है। लोगों को कहीं आने-जाने के लिए इन ऐप के माध्यम से ग्रीन क्लियरेंस प्राप्त करना जरूरी होता है। कंपनियां ऐसे सॉफ्टवेयर भी विकसित कर रही हैं जो कैमरे के माध्यम से बिना संपर्क में आए तापमान का पता लगा सके। कुछ शहर संक्रमित पड़ोसियों की सूचना देने पर इनाम भी दे रहे हैं।

कोलंबिया

एक पुराने ऐप का नाम बदलकर इसे कोरोनऐप के नाम से वायरस की जानकारी हासिल करने के लिए जारी किया गया है। इस ऐप को भारी मात्रा में निजी जानकारी चाहिए जिसमें जातीयता की जानकारी भी शामिल है। इस बात की पारदर्शिता भी नहीं है कि इन जानकारियां का कौन कितना इस्तेमाल कर सकेगा।

यूरोपीय संघ

दूरसंचार कंपनियां और प्रशासन एक ऐसी व्यवस्था बनाने जा रही है जिसमें लोग अपने स्थान की जानकारी साझा करेंगे। अब तक इस व्यवस्था में कुछ पारदर्शिता थी जिससे पता रहता था कि कितनी जानकारी साझा की जा रही है और कितने समय तक यह कानूनन चलेगा। सरकारों के अलावा यूरोपीय कमिशन ने दूरसंचार कंपनियों से वायरस के फैलाव का पता लगाने के लिए और हॉटस्पॉट का पता लगाने के लिए जानकारियां मांगी हैं।

इजराइल

घरेलू सुरक्षा एजेंसी शिन बेट ने कोविड-19 प्रकोप पर नजर रखने के लिए आतंकवादियों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अपनी सेलुलर जियोट्रैकिंग तकनीक को फिर से तैयार किया है।

केन्या

एमसफारी ऐप की मदद से संपर्क का पता लगाने के लिए इस ऐप को एक निजी कंपनी ने बनाया है। इसका इस्तेमाल सार्वजनिक परिवहन में लगी बस, टैक्सी और दूसरे परिवहन व्यवस्था में यात्रियों की निगरानी के लिए किया जा रहा है। चालकों से यह उम्मीद की जाता है कि वे इस ऐप को डाउनलोड करके सभी यात्रियों को इस पर पंजीकृत करेंगे। सरकार उन सभी यात्रियों पर निगरानी रखकर उन्हें 14 दिन के क्वारंटाइन में रखेगी।

दक्षिण कोरिया

यहां की सरकार उन लोगों की जानकारी इकट्ठी कर ऑनलाइन डाल रही है जो या तो संक्रमित हैं या इसकी आशंका है। यहां मौजूदा डाटाबेस को नए डेटाबेस से मिलाकर सीसीटीवी फुटेज, क्रेडिट कार्ड और लोकेशन के इतिहास की निगरानी की जा रही है। यह जानकारियां ऑनलाइन जारी की जा रही है जिसमें लोग कब काम से वापस निकले, सबवे में उन्होंने मास्क पहना या नहीं, वे किस स्थान पर बार-बार गए और किस स्थान पर उनकी जांच की गई आदि शामिल हैं। अब सरकार ने निजी जानकारी जारी करना बंद किया है क्योंकि भीड़ ने ऐसे लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया था।

ताइवान

प्रशासन यहां एक्टिव मोबाइल नेटवर्क की निगरानी कर क्वारंटाइन को सुनिश्चित कर इसके संपर्क में आने वाले लोगों की पहचान कर रहा है। अगर किसी का मोबाइल नेटवर्क घर के बाहर एक्टिव होता है तो प्रशासन सतर्क हो जाता है।

ट्यूनीशिया

इनोवा रोबोटिक्स ने पीगार्ड रोबोट का संचालन शुरू करने के लिए आंतरिक मंत्रालय के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। ये रोबोट इंफ्रारेड कैमरों के एक सेट से लैस होंगे और लोगों को घर छोड़ने से रोकेंगे। इन रोबोटों को कहां तैनात किया जाएगा, वे कौन सी जानकारी जुटाएंगे, इसकी कोई जानकारी नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र

यहां शोधकर्ता फेसबुक के डेटा का इस्तेमाल सामाजिक दूरी का आकलन करने के लिए कर रहे हैं। जिन उपयोगकर्ताओं ने फेसबुक पर अपना लोकेशन साझा की है, उनके डेटा के इस्तेमाल से एक तरह का नक्सा खींचा जा रहा है। इस काम में गोपनीयता और जानकारियों की रक्षा प्रभावित होती है क्योंकि उपयोगकर्ता ने सिर्फ फेसबुक को यह जानकारी साझा करने की अनुमति दी होती है। गूगल की जैव प्रौद्योगिकी कंपनी वेरिली ने कोविड-19 की स्क्रीनिंग वेबसाइट लॉन्च की है। स्क्रीनिंग के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए, उपयोगकर्ताओं के पास गूगल खाता होना चाहिए और गूगल के साथ जानकारी साझा करने के लिए सहमत होना चाहिए। वेबसाइट कैलिफोर्निया के गवर्नर कार्यालय और अन्य संघीय अधिकारी के सहयोग से काम कर रही है।

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