2022 में यह दूसरा मौका है जब खगोलविदों और अंतरिक्ष में रूचि रखने वालों को पूर्ण चंद्रग्रहण देखने का मौका मिलेगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आज यानी 08 नवंबर 2022 को यह घटना पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत और उत्तरी अमेरिका में दिखाई देगी। वहीं यदि भारत की बात करें तो चंद्रोदय के समय ग्रहण देश के सभी स्थानों से दिखाई देगा।
हालांकि ग्रहण की आंशिक एवं पूर्णावस्था का आरम्भ भारत के किसी भी स्थान से दिखाई नहीं देगा, क्योंकि यह घटना भारत में चंद्रोदय के पहले ही प्रारम्भ हो चुकी होगी। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने बताया कि ग्रहण की पूर्णावस्था एवं आंशिक अवस्था दोनों का ही अंत देश के पूर्वी हिस्सों से दिखाई देगा, जबकि देश के बाकी हिस्सों से इसकी आंशिक अवस्था का केवल अंत ही दिखाई देगा। गौरतलब है कि इससे पहले 15 से 16 मई 2022 को पूर्ण चंद्रग्रहण की घटना देखी गई थी।
चंद्र ग्रहण की यह घटना भारतीय समयानुसार 14.39 मिनट पर प्रारम्भ होगी, वहीं पूर्णावस्था 15.46 मिनट पर शुरू होगी। ग्रहण की पूर्णावस्था का अंत 17.12 मिनट पर होगा तथा आंशिक अवस्था का अंत 18.19 मिनट पर होगा। इसके बाद भारत में अगला चंद्र ग्रहण 28 अक्टूबर 2023 को होगा, हालांकि वो आंशिक चंद्र ग्रहण ही होगा।
इस बारे में नासा के मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर के खगोल भौतिकीविद अल्फोंस स्टर्लिंग का कहना है कि पूर्ण चंद्र ग्रहण औसतन हर 1.5 साल में करीब एक बार होता है, जबकि चंद्रमा इस साल कुछ ज्यादा ही मेहरबान है जो इस बार साल में दूसरी बार इस ग्रहण को देखने का मौका मिल रहा है। उनके अनुसार लोगों को इसे देखने का मौका नहीं खोना चाहिए, क्योंकि इसके बाद अगला पूर्ण चंद्र ग्रहण 2025 तक नहीं होगा।
क्या है पूर्ण चंद्रग्रहण के पीछे का विज्ञान
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पूर्ण चंद्रग्रहण (सुपर फ्लावर ब्लड मून) की घटना तब घटती है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच एक सीधी रेखा में आ जाती है। वहीं पूर्ण चंद्रग्रहण तब होता है जब पृथ्वी की पूरी छाया चंद्रमा के ऊपर पड़ती है, जिसे 'अम्ब्रा' कहते हैं। देखा जाए तो पृथ्वी की छाया को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है: पहला अम्ब्रा जोकि छाया का सबसे भीतरी भाग होता है, जहां सूर्य का प्रत्यक्ष प्रकाश पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाता है वहीं दूसरा भाग पेनम्ब्रा होता है जहां प्रकाश आंशिक रूप से अवरुद्ध होता है।
बहुत से लोग इस बारे में आश्चर्य करते हैं कि आखिर चंद्र ग्रहण हर महीने क्यों नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्रमा हर 27 दिनों में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है। इसका कारण यह है कि पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा के सापेक्ष झुकी हुई है, इसलिए चंद्रमा अक्सर पृथ्वी की छाया के ऊपर या नीचे से गुजरता है। वहीं चंद्र ग्रहण तभी संभव है जब कक्षाएं एक रेखा में हों, जिससे चंद्रमा सूर्य के सापेक्ष सीधे पृथ्वी के पीछे हो।
पूर्ण चंद्र ग्रहण की एक अन्य विशेषता यह है कि जब पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है तो उस दौरान चंद्रमा की आभा लाल दिखाई देती है। ऐसा पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा प्रकाश के अपवर्तन, फिल्टर होने और प्रकीर्णन (स्कैटरिंग) के कारण होता है।
देखा जाए तो उस समय सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद गैसों में टकराता है और नीला रंग जिसकी वेवलेंथ छोटी होती है उसकी रौशनी फिल्टर हो जाती है, जबकि लंबी तरंग दैर्ध्य यानी वेवलेंथ के कारण लाल रंग का आसानी से बिखराव बिखरा नहीं होता है।
उस लाल प्रकाश में से कुछ हिस्सा जब पृथ्वी के वायुमंडल से गुजरता है तो वो अपवर्तित या मुड़ा जाता है। ऐसे में चंद्रमा लाल रोशनी के साथ चमकता है। हालांकि पूर्ण चंद्र ग्रहण में चंद्रमा की लाली ज्वालामुखी विस्फोट, आग और धूल भरी आंधी के कारण पैदा हुई वायुमंडलीय परिस्थितियों से प्रभावित हो सकती है।
क्या इसे देखने के लिए विशेष सावधानी की जरूरत है?
नासा ने स्पष्ट कर दिया है कि सूर्य ग्रहण (जो दिन के समय होता है) के विपरीत, चंद्र ग्रहण को देखने के लिए आंखों पर किसी विशेष सुरक्षा की आवश्यकता नहीं होती है। चंद्र ग्रहण को बिना किसी सहायता के नग्न आंखों से देखा जा सकता है। हालांकि दूरबीन या दूरबीन या टेलिस्कोप इसकी दृश्यता को बढ़ा सकती है।