वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता, चांद की मिट्टी में भी फूटा अंकुर

इतिहास में पहली बार वैज्ञानिकों को चन्द्रमा से लाई मिट्टी में पौधे उगाने में सफलता हासिल हुई है, जोकि अपने आप में एक अनूठी खोज है
16 दिनों के भीतर चन्द्रमा से लाई मिट्टी में पौधों के विकास की स्थिति; फोटो: टाइलर जोन्स/यूएफ/ आईएफएएस
16 दिनों के भीतर चन्द्रमा से लाई मिट्टी में पौधों के विकास की स्थिति; फोटो: टाइलर जोन्स/यूएफ/ आईएफएएस
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क्या कभी चांद पर इंसानों के बसने का सपना सच हो सकता है। यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब लम्बे समय से हम इंसान ढूंढ रहे हैं। इसी कड़ी में वैज्ञानिकों एक और सफलता हाथ लगी है, जब उसका चन्द्रमा से लाई मिट्टी में पौधे उगाने का सपना सच हो गया है। गौरतलब है कि हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के वैज्ञानिकों ने मानव इतिहास में पहली बार अपोलो मिशन के दौरान चांद से लाई मिट्टी में पौधे उगाने में सफलता हासिल की है।   

यह खोज अपने आप में बहुत ज्यादा मायने रखती है क्योंकि इंसान का अंतरिक्ष में बसने का सपना तभी सच हो सकता है जब वो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर लेता है, कृषि और खाद्य उत्पादन एक ऐसी ही जरुरत है जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 

शोधकर्ताओं को जो सफलता हासिल हुई है वो इतनी आसान भी नहीं थी क्योंकि अपनी रिसर्च के के लिए चांद से लाई गई सिर्फ 12 ग्राम मिट्टी ही मिल पाई थी जोकि अपोलो 11, 12 और 17 मिशन के दौरान वहां से लाई गई थी। देखा जाए तो चांद में मिट्टी हमारी पृथ्वी से बिलकुल अलग है। न ही वहां का वातावरण धरती की तरफ फसलों और पौधों को पनपने के अनुकूल है।

धरती से काफी अलग है चांद का वातावरण 

वहां मिट्टी में न तो फसलों के लिए जरुरी खनिज हैं न ही जीवाश्मों और कार्बनिक पदार्थों की उपलब्धता है। वहां न तो पृथ्वी की तरफ बारिश होती है न अनुकूल धूप मिलती है और न ही पौधों के परागण के लिए मधुमक्खी और तितलियों जैसे जीव हैं। इसके बावजूद वैज्ञानिकों को आशा है कि एक दिन चांद पर खेती करने का सपना सच हो सकता है। इस नए शोध ने वैज्ञानिकों की उम्मीदों में एक बार फिर से जान फूंक दी है।  

जर्नल कम्युनिकेशंस बायोलॉजी में प्रकाशित इस नए अध्ययन से पता चला है कि शोधकर्ताओं ने चांद से लाइ इस मिट्टी (रेजोलिथ) में तेजी से उगने वाले पौधे अरेबिडोप्सिस थालियाना के बीज डाले थे, जो अगले दो दिनों में ही अंकुरित हो गए थे।

इस पौधे के बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के हॉर्टिकल्चरल साइंटिस्ट्स रॉब फेरल का कहना है कि अरेबिडोप्सिस थालियाना मूल रूप से यूरेशिया और अफ्रीका में पाया जाने वाला पौधा हो जो सरसों, ब्रोकोली और फूलगोभी के परिवार से सम्बन्ध रखता है। भले ही यह पौधा स्वादिष्ठ न हो लेकिन इसे खाया जा सकता है।

शोध के मुताबिक भले ही चांद से लाई मिट्टी के अलग-अलग नमूनों में यह पौधे पनप सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद उन पौधों का विकास चुनौतीपूर्ण था। इस मिट्टी में उनका विकास तुलनात्मक रूप से कहीं ज्यादा धीमी रफ्तार से हुआ था। साथ ही इन पौधों पर तनाव साफ देखा जा सकता था। कुल मिलकर उनका विकास उतना बेहतर नहीं था जितना पृथ्वी की मिट्टी में इनका विकास होता है।

इस बारे में शोध से जुड़ी मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट, आनुवंशिकीविद् और अंतरिक्ष जीवविज्ञानी अन्ना-लिसा पॉल का कहना है कि, "मैं आपको नहीं बता सकती कि हम कितने चकित थे, हर पौधा चाहे वो चांद से लाए नमूनों में उगाया गया था या फिर नियंत्रित वातावरण में पनपा था वो लगभग छह दिनों तक एक जैसा लगता था। लेकिन इसके बाद उनमें अंतर दिखने लगे। चन्द्रमा की मिट्टी में पनपे पौधे कहीं ज्यादा तनाव में थे, जो धीरे-धीरे बढ़ता गया और अंत में यह पौधे मर गए।“

लेकिन इसके बावजूद शोध से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि यह अपने आप में एक बड़ी सफलता है। इस बारे में नासा प्रमुख बिल नेल्सन का कहना है कि, यह शोध आने वाले भविष्य में नासा के मानव अन्वेषण लक्ष्यों के दृष्टिकोण से बहुत मायने रखता है क्योंकि भविष्य में हमें अंतरिक्ष यात्रियों के रहने और उनकी भोजन सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए चन्द्रमा और मंगल पर पाए जाने वाले संसाधनों की मदद से खाद्य पदार्थों को पैदा करने की जरुरत पड़ेगी।

कुछ समय पहले ही चीन के वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि चन्द्रमा की मिट्टी में कुछ ऐसे यौगिक मौजूद हैं जिनमें लोहे और टाइटेनियम युक्त पदार्थ मौजूद हैं। जिन्हें सूर्य के प्रकाश और कार्बन डाइऑक्साइड की मदद से ऑक्सीजन और मीथेन जैसे ईंधन में बदला जा सकता है। 

देखा जाए तो भले ही चांद और अंतरिक्ष में जीवन को लेकर किए जा रहे यह सभी अध्ययन अभी बहुत शुरुआती चरणों में हैं, लेकिन इनसे इतना तो स्पष्ट है कि हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं और यदि ऐसे ही सफलताएं मिलती रही तो वो दिन दूर नहीं जब कोई इंसानी बस्ती दूर अंतरिक्ष में अपना आशियाना बना वहां भी फल-फूल रही होगी।

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