भूकंप की पूर्व चेतावनी देने में मदद कर सकता है तरल गतिकी ढांचा

इस विधि से भूकंप जैसी घटनाओं के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए शुरुआती चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद मिल सकती है।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स, राजन पत्रकार
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भारतीय वैज्ञानिकों ने तरल गतिकी में एक नया ढांचा विकसित किया है, जो ठोस कणों को एक साधारण तरल में मिलाकर बनाया गया है। यह अव्यवस्थित नरम ठोस पदार्थों में आने वाले बदलावों का वर्णन करता है। जिससे भूकंप जैसी विनाशकारी घटनाओं के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए शुरुआती चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद मिल सकती है।

सामग्री प्रसंस्करण उद्योगों में दानेदार या ग्रैन्यलर प्रणाली हमारे चारों ओर मौजूद हैं। यह बड़ी दूरी से पाइपलाइनों के माध्यम से बहने वाले कंकड़ों और गारे की मदद से भूकंप व भूस्खलन जैसी विनाशकारी प्राकृतिक घटनाओं से निपट सकते हैं।

इन प्रणालियों में कंकड़ शामिल होते हैं जो चावल के दानों के समान होते हैं। प्रयोग में चावल के इन दानों को कंटेनर को हिलाकर बेहतर तरीके से कंटेनर में पैक किया जाता है। झटकों से आने वाली ताकतें अनाज को धीरे-धीरे उस स्तर तक अधिक घना बनाती हैं, जब तक कि ये सबसे ज्यादा घनी न हो जाए।

दिलचस्प बात यह है कि इस तरह के ठोस कणों के घर्षण में कणों के आकार, चिपचिपापन आदि से आने वाले अनाज के बीच पारस्परिक क्रिया के बारे में जानकारी को सम्मिलित करते हैं।

यद्यपि यह पिछले अध्ययनों से सर्वविदित है कि ठोस कणों के बीच में जटिल प्रवाह संबंधी व्यवहार कणों की बीच होने वाली क्रियाओं द्वारा निर्धारित किया जाता है। जबकि इस तरह के प्रवाह और कणों के क्रियाओं के बीच एक मात्रात्मक सहसंबंध गायब हो जाता है।

रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं की टीम ने एक नया प्रायोगिक ढांचा प्रस्तावित किया है। यह तरल गतिकी की अवधारणा को जोड़ता है और साधारण तरल पदार्थों में दानेदार कणों को फैलाने से बनने वाले अव्यवस्थित नरम ठोस पदार्थों के बारे में जानकारी देता है।

कण कैसे अधिक ठोस में बदल जाते हैं, जिसे जैमिंग संक्रमण भी कहा जाता है, यह धीरे-धीरे स्थिर हो जाता है। उन्होंने कणों के हलचल संबंधी व्यवहार तथा कणों के बीच एक मात्रात्मक सहसंबंध स्थापित किया है और इसे एक विस्तृत सीमा पर सत्यापित किया गया है।

शोधकर्ताओं ने ठोस कणों के अलग होने या डीप सस्पेंशन को समझने के लिए चावल के दानों के लिए ठोस अवधारणा का उपयोग किया और सर्फेक्टेंट अर्थात जो साबुन के अणु हैं उनका उपयोग करके कणों के बीच होने वाली क्रियाओं को सही पैमाने पर लाकर इस अवधारणा की पुष्टि की है।

शीयर-रियोलॉजी जैसी प्रायोगिक तकनीकों का उपयोग करना जो सामग्री के प्रभाव की प्रतिक्रिया को मापता है। ठोस की मात्रा को निर्धारित करने के लिए कण का निपटान और बाउंड्री इमेजिंग प्रणाली में होने वाली हलचल की प्रकृति का निरीक्षण करने के लिए सहसंबंध को स्थापित किया गया है।

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