चंद्रयान-3 का जिक्र करते हुए यूएस यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न क्वींसलैंड में खगोल भौतिकी के प्रोफेसर जोंटी हॉर्नर कहते हैं, “भले ही ऐसे मिशन का प्राथमिक उद्देश्य जीवन की उत्पत्ति की खोज न हो, लेकिन यह कुछ ऐसा खोज सकता है जो बहुत महत्वपूर्ण है।” 14 जुलाई को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रमा पर भारत की तीसरी यात्रा सफलतापूर्वक शुरू की (देखें, चंद्र मिशन)। अंतरिक्ष यान अगस्त में चांद पर रोवर उतारना चाहता था और चंद्रमा की सतह की भूकंपीयता और थर्मल गुणों का अध्ययन करना चाहता है। 1960 के दशक से पृथ्वी का अपने निकटतम खगोलीय पड़ोसी के प्रति आकर्षण चरम पर रहा है। तब से अब तक विभिन्न देशों ने चंद्रमा का अध्ययन करने के लिए 110 से अधिक मिशन शुरू किए हैं। इन प्रयासों से न केवल चंद्रमा बल्कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति और विकास को समझने में हमारी बहुत मदद की है। प्रमाणों से पता चलता है कि जीवन के बीजारोपण और उसे आकार देने में चंद्रमा की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। यह भूमिका अब भी जारी है। लंदन विश्वविद्यालय के रॉयल होलोवे में भूभौतिकी के प्रोफेसर डेविड वाल्थम डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “इसका निश्चित रूप से पृथ्वी पर प्रभाव पड़ा है। इसके बिना हमारा ग्रह बहुत अलग दिखता। हमारे पास अलग-अलग व्यवहार वाले अलग-अलग जीव रहे होंगे और शायद मनुष्य का अस्तित्व न हो।”
जीवन में ज्वार-भाटा
करीब 4.5 बिलियन वर्ष पहले सौर मंडल के जन्म के लगभग 60-175 मिलियन वर्ष बाद एक प्रलयंकारी घटना में थिया नामक मंगल के आकार का ग्रह पृथ्वी से टकराया था। इस घटना से निकले मलबे ने चंद्रमा को आकार दिया। इस घटना ने संभवतः पृथ्वी को बदल दिया। इसका सबसे तात्कालिक प्रभाव ग्रह की संरचना पर पड़ा। पृथ्वी पर भारी तत्व कोर में जमा हो जाते हैं और हल्के तत्व क्रस्ट में केंद्रित रहते हैं। हॉर्नर कहते हैं, “थिया के टकराव से संभव है कि पानी जैसे कुछ हल्के तत्व चंद्रमा तक पहुंच गए हों। यदि पृथ्वी पर अधिक पानी होता तो सब कुछ महासागर होता और हमारे पास महाद्वीप नहीं होते।”
इसके बाद ज्वार आया। करीब 3.2 बिलियन साल पहले चंद्रमा पृथ्वी से लगभग 70 प्रतिशत करीब था। निकटता का अर्थ था मजबूत और अधिक बार आने वाला ज्वार। ऐसा माना जाता है कि उल्का पिंडों और धूमकेतुओं द्वारा वितरित कार्बनिक अणु जटिल अणुओं को बनाने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। ये अंततः डीएनए या आरएनए जैसे न्यूक्लिक एसिड बनाते हैं, जिससे जीवन का प्रादुर्भाव होता है। इस प्रतिक्रिया को सुविधाजनक बनाने में ज्वार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उच्च ज्वार के दौरान तटीय क्षेत्र पानी में समा जाते हैं और कम ज्वार के दौरान सूखे रहते हैं। हॉर्नर समझाते हैं कि यह बदलता वातावरण जटिल प्रतिक्रियाओं को बल देता है, जिससे सरल अणुओं को जटिल अणुओं में बदलने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा कि तटीय क्षेत्रों में जीवन की उत्पत्ति के बाद ज्वार ने प्राचीन समुद्री जीवों को जमीन पर आने में भी मदद की है।
ज्वार-भाटा के कारण पृथ्वी पर एक दिन की अवधि भी बढ़ गई। लगभग 1.4 बिलियन वर्ष पहले एक दिन 18 घंटे और 41 मिनट का होता था। इसका कारण पृथ्वी और चंद्रमा के बीच रस्साकशी है। पृथ्वी और चंद्रमा दोनों ही महासागरों पर खिंचाव डालते हैं। समुद्र तल और गतिमान महासागर के बीच घर्षण से ऊर्जा की हानि होती है, जो अंततः ग्रह को धीमा कर देती है।
आकाशीय बहाव
चंद्रमा पृथ्वी से प्रति वर्ष 3.8 सेमी दूर जा रहा है। यह दूरी लगभग नाखूनों की वृद्धि के बराबर है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि यह दर जारी रही तो लगभग 15 बिलियन वर्षों में ग्रह के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से मुक्त होने के बाद पृथ्वी अपना प्राकृतिक उपग्रह खो सकती है। लेकिन लगभग 6 बिलियन वर्षों में सूर्य का ईंधन खत्म हो जाएगा, जिससे वह फूल जाएगा और पृथ्वी तथा चंद्रमा को नष्ट कर देगा। इसलिए चंद्रमा के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से मुक्त होना असंभव प्रतीत होता है। वाल्थम का कहना है कि फिर भी पृथ्वी 2-3 बिलियन वर्षों में चंद्रमा के घटते प्रभावों को देखना शुरू कर सकती है। जैसे-जैसे पृथ्वी का घूर्णन धीमा होगा, इसकी धुरी अस्थिर हो जाएगी और यह डगमगाने लगेगी। इसके चलते मजबूत मौसम बनेंगे और उसके बाद कोई मौसम नहीं होगा। वह कहते हैं, “यह स्थिति तबाही लाएगी। जीवों को उसके अनुकूल ढलने के लिए विकसित होना होगा।” जीव अपने प्रवास, यात्रा व प्रजनन जैसी गतिविधियों को चंद्रमा से जोड़ते हैं। शोधकर्ताओं ने दर्ज किया है कि चंद्रमा के चरणों के आधार पर मूंगे अपने प्रजनन का समय कैसे तय करते हैं। पौधे भी चांदनी और चंद्रमा की विभिन्न अवस्थाओं का पता लगा सकते हैं। इफेड्रा फोमिनिया अरब चिकित्सा में उपयोग किया जाने वाला एक पौधा है जो एक शर्करायुक्त पदार्थ पैदा करता है और चांदनी में चमकने के साथ परागण में सहायता करने वाले कीड़ों को आकर्षित करता है।
जलवायु परिवर्तन
चंद्रमा का प्रभाव जलवायु पर भी पड़ता है। 18.5 वर्षों में पृथ्वी के भूमध्यरेखीय तल के सापेक्ष चंद्रमा का कक्षीय झुकाव 5.1 डिग्री तक बढ़ या घट जाती है। इसे चंद्र नोडल चक्र कहा जाता है। जब चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी के भूमध्य रेखा के साथ मिलती होती है, तो उच्च गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ज्वार अधिक मजबूत होते हैं और जब यह भूमध्य रेखा से दूर झुका होता है, तो ज्वार कमजोर होते हैं। यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल साइंसेज के मनोज जोशी डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “समुद्र के मिश्रण और सर्कुलेशन में ज्वार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।” जैसे-जैसे हम गहराई में जाते हैं, समुद्र का तापमान लगातार कम होता जाता है। औसत वैश्विक समुद्री सतह का तापमान 16 डिग्री सेल्सियस है और गहरे महासागर का तापमान केवल 4 डिग्री सेल्सियस है। जोशी बताते हैं, “जब ज्वार तेज होते हैं, तो पानी की ऊपरी और निचली परतों के बीच मिश्रण होता है, जिससे अंततः सतह के पानी का तापमान ठंडा हो जाता है। इसके बाद वातावरण समुद्र के ठंडा होने पर प्रतिक्रिया करता है।” जोशी और उनके सहयोगियों ने वैश्विक तापमान में चंद्र नोडल चक्र के योगदान का अध्ययन करने के लिए कंप्यूटर मॉडलिंग का उपयोग किया। उन्होंने पाया कि 2020 के मध्य में चंद्र नोडल चक्र और 2030 के प्रारंभ में गर्मी के कारण दुनिया में वैश्विक ठंडक देखी जाएगी। इसके अलावा, ज्वार के साथ समुद्र के स्तर में भी उतार-चढ़ाव होता है।
नासा का कहना है कि चंद्र नोडल चक्र के आधे हिस्से में दैनिक ज्वार तीव्र होते हैं। इस अवधि के दौरान उच्च ज्वार ऊंचे हो जाते हैं और निम्न ज्वार कम हो जाते हैं। 2021 नासा के अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि 2030 के दशक के मध्य में प्रत्येक अमेरिकी तट पर तेजी से बढ़ती उच्च-ज्वार बाढ़ का अनुभव होगा। यह तब होगा जब एक चंद्र चक्र जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के बढ़ते स्तर को बढ़ा देगा। संभव है कि चंद्र मिशनों में से एक जलवायु परिवर्तन से निपटने की रास्ता भी सुझाए।