वैज्ञानिकों ने खोजी ऐसी सामग्री, जो इंफ्रारेड प्रकाश को अक्षय ऊर्जा में बदलती है

वैज्ञानिकों ने खोजी ऐसी सामग्री, जो इंफ्रारेड प्रकाश को अक्षय ऊर्जा में बदलती है

विद्युत चुम्बकीय तरंगें अक्षय ऊर्जा के स्रोत हैं, जिनका उपयोग बिजली उत्पादन, दूरसंचार, रक्षा और सुरक्षा तकनीकों, सेंसरों और स्वास्थ्य सेवाओं में किया जाता है।
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भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई सामग्री की खोज की है जो दक्षता के साथ इंफ्रारेड प्रकाश के उत्सर्जन को खोजकर तथा इसमें बदलाव कर इसे ऊर्जा में बदल देती है। यह सौर और थर्मल ऊर्जा संरक्षण तथा ऑप्टिकल संचार उपकरणों के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है।

विद्युत चुम्बकीय तरंगें अक्षय ऊर्जा के स्रोत हैं, जिनका उपयोग बिजली उत्पादन, दूरसंचार, रक्षा और सुरक्षा तकनीकों, सेंसरों और स्वास्थ्य सेवाओं में किया जाता है। वैज्ञानिक ऐसी विशेष सामग्रियों का इस्तेमाल तरंगों में सटीकता से बदलाव करने के लिए उच्च-तकनीक का उपयोग करते हैं।

इनका आकार मनुष्य के बाल की तुलना में हजारों गुना छोटा होता है। विशेष रूप से इंफ्रारेड प्रकाश की सभी विद्युत चुम्बकीय तरंगों का उपयोग करना आसान नहीं है क्योंकि इसका पता लगाना और इसमें बदलाव करना बहुत मुश्किल है।

इंफ्रारेड प्रकाश के उपयोग के लिए बौद्धिक क्षमता और अत्याधुनिक सामग्रियों की जरूरत होती है। जो उच्च क्षमता के साथ सही जगह पर स्पेक्ट्रल रेंज में बहुत तेज, मॉड्यूलेशन और खोज को सक्षम बना सकती हैं।

कुछ मौजूदा सामग्रियां इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रल रेंज में लाइट मैटर क्रियाओं के लिए घर के रूप में काम कर सकती हैं, हालांकि ऐसा बहुत कम क्षमता के साथ होता है। ऐसी सामग्रियों की काम करने संबंधी स्पेक्ट्रल रेंज भी औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण विद्युत चुम्बकीय तरंगों के इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रल रेंज को कवर नहीं करती है।

बेंगलुरु के जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर), जो विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक स्वायत्त संस्थान है। एक अहम घटनाक्रम में इस संस्थान के शोधकर्ताओं ने सिंगल-क्रिस्टेलाइन स्कैंडियम नाइट्राइड (एससीएन) नामक नई सामग्री की खोज की है जो उच्च दक्षता के साथ इंफ्रारेड प्रकाश का उत्सर्जन, खोज और उसमें बदलाव कर सकती है।

जेएनसीएएसआर के.सी.मौर्य और उनकी टीम ने पोलरिटोन उत्तेजन नामक एक वैज्ञानिक विधि का उपयोग किया है। जो इसके अनुरूप सामग्री में होती है, इसमें प्रकाश या तो सामूहिक मुक्त इलेक्ट्रॉन की गतिविधियों से या ध्रुवीय कंपन के साथ हल्के रूप में जुड़ जाते हैं।

उन्होंने यह सफलता हासिल करने के लिए पोलरिटोन, एक तरह के आधे कण को उत्तेजित करने के लिए भौतिक गुणों को सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया है।  इन्फ्रा रेड प्रकाश का उपयोग करके सिंगल-क्रिस्टेलाइन स्कैंडियम नाइट्राइड में मजबूत प्रकाश और पदार्थ के बीच प्रभाव हासिल किया है।

 सिंगल-क्रिस्टेलाइन स्कैंडियम नाइट्राइड (एससीएन) में ये असाधारण पोलरिटोन का उपयोग सौर और थर्मल ऊर्जा संरक्षण में किया जा सकता है। स्कैंडियम नाइट्राइड की तरह यह सामग्री एक ही परिवार से संबंध के कारण गैलियम नाइट्राइड (जीएएन) के रूप में आधुनिक कॉम्पलिमेंट्री-मैटल-ऑक्साइड-सेमीकंडक्टर (सीएमओएस) या सी-चिप तकनीक के साथ अनुरूप है। इसलिए ऑन-चिप ऑप्टिकल संचार उपकरणों के लिए इसे आसानी से जोड़ा जा सकता है।

जेएनसीएएसआर में सहायक प्रोफेसर डॉ. बिवास साहा ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर स्वास्थ्य सेवा, रक्षा और सुरक्षा से ऊर्जा प्रौद्योगिकियों तक इन्फ्रारेड स्रोतों, उत्सर्जक और सेंसरों की बहुत मांग है।

स्कैंडियम नाइट्राइड में इंफ्रारेड पोलरिटोन पर हमारा काम ऐसे कई उपकरणों में इसके प्रयोगों को सक्षम बनाएगा। जेएनसीएएसआर के अलावा भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के नैनो साइंस एंड इंजीनियरिंग केंद्र के शोधकर्ताओं और सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भी वैज्ञानिक पत्रिका नैनो लेटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन में भाग लिया था।

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