अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिकों द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि कैल्शियम, आलू के पौधों को बैक्टीरियल विल्ट नामक रोग से लड़ने में मदद करता है। उनके मुताबिक कैल्शियम, इस बीमारी के प्रति आलू के पौधों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है। यह जानकारी उन किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जो दुनिया भर में आलू की खेती से जुड़े हैं।
वैश्विक स्तर पर देखें तो बैक्टीरियल विल्ट एक ऐसा रोग है जिसकी वजह से आलू किसानों को सालाना 158,641 करोड़ रुपए (1,900 करोड़ डॉलर) का नुकसान हो रहा है।
अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने उन उपायों पर प्रकाश डाला है जिनकी मदद से इस रोग से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है। वैज्ञानिकों का विचार है कि मिट्टी में कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा मिलाए जाने से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। इस अध्ययन के नतीजे अमेरिकन सोसाइटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी के जर्नल एप्लाइड एंड एनवायर्नमेंटल माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।
इस रोग के बारे में जानकारी साझा करते हुए वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में लिखा है कि यह रोग ‘राल्स्टोनिया सोलानेसीरम स्पीशीज कॉम्प्लेक्स’ नामक, फाइटोपैथोजेनिक बैक्टीरिया के एक समूह के कारण होता है। जो आलू सहित बैंगन, टमाटर जैसी अन्य फसलों में भी बैक्टीरियल विल्ट नामक रोग का कारण बनता है। बता दें कि यह ऐसा रोग है जो बेहद कम समय में पौधे को संक्रमित कर सूखने की कगार पर पहुंचा देता है।
वहीं इस बैक्टीरिया के बारे में अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता मारिया इनेस सिरी ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि पैथोसिस्टम, प्रकृति के भीतर जीवित चीजों के विशेष समूहों की तरह हैं। यह कुछ ऐसा ही है जिसमें एक जीव जिसे परजीवी कहा जाता है वो अपने भोजन और आश्रय के लिए अपने मेजबान पर निर्भर करता है।
इस मामले में परजीवी, राल्स्टोनिया सोलानेसीरम है जो अपने भोजन और आश्रय के लिए आलू के पौधे पर निर्भर करता है। उनके मुताबिक अब तक किसी का इस बात पर ध्यान नहीं गया कि आलू के अंदर मौजूद खनिज और सूक्ष्म तत्व, पौधों को बीमार करने वाले इस बैक्टीरिया से लड़ने में कितने बेहतर हैं।
कैसे पौधों में बैक्टीरियल विल्ट का सामना करने में मदद करता है कैल्शियम
अपने इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने आलू के पौधों के अलग-अलग जीनोटाइप का अध्ययन करके यह देखना शुरू किया कि उसमें मौजूद खनिज और सूक्ष्म तत्व बैक्टीरियल विल्ट का कितना बेहतर तरीके से प्रतिरोध करते हैं।
उन्होंने देखा कि इन पौधों के विभिन्न भागों, जैसे जाइलम, जड़ों, तना और पत्तियों में कितने खनिज मौजूद होते हैं। उन्होंने इस बात की भी जांच की है कि पौधों के भीतर मौजूद प्राकृतिक प्रतिरोध के विभिन्न स्तरों को उनकी खनिज संरचना से कैसे जोड़ा जा सकता है।
इस दौरान उन्होंने विशेष रूप से कैल्शियम पर ध्यान केंद्रित किया और इस बात की जांच की कि कैल्शियम पौधों में बैक्टीरियल विल्ट का सामना करने में कैसे मदद करता है। वैज्ञानिकों ने खनिजों का अध्ययन करने के बाद, इस बात की भी जांच की है कि कैल्शियम रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया से जुड़े विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करता है।
साथ ही उन्होंने यह भी परीक्षण किया कि बैक्टीरिया कितनी तेजी से बढ़ते हैं, वे एक साथ कैसे चिपकते हैं और कैसे यात्रा करते हैं। नियंत्रित प्रयोगों की मदद से उन्होंने इस बात की भी जांच की है कि क्या आलू के पौधों को अधिक कैल्शियम देने से उनके द्वारा इस रोग से बेहतर ढंग से निपटने में मदद मिलती है। मतलब कि क्या कैल्शियम बैक्टीरियल विल्ट के खिलाफ पौधों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है।
इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि जब आलू के जीनोटाइप में ज्यादा मात्रा में कैल्शियम मौजूद था तो वे बैक्टीरियल विल्ट का कहीं बेहतर प्रतिरोध करने में सक्षम था। रिसर्च से यह भी पता चला है कि कैल्शियम की खुराक से बैक्टीरिया के तेजी से बढ़ने की गति धीमी पड़ गई थी।
इतना ही नहीं इसकी वजह से जीवाणुओं के लिए एक साथ जुड़ना और आगे बढ़ना कठिन हो गया था। यह बैक्टीरिया की उग्रता और रोग पैदा करने की क्षमता के लिए भी मायने रखता है, क्योंकि इसकी वजह से बैक्टीरिया के लिए आलू के पौधे को बीमार बनाना मुश्किल हो गया था।
शोधकर्ता मारिया इनेस सिरी ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि शोधकर्ता इस बारे में और अधिक जानना चाहते हैं कि कैल्शियम, पौधों और बैक्टीरिया के बीच संबंधों को कैसे प्रभावित करता है, जिससे पौधे खुद की रक्षा कर पाते हैं। यह बैक्टीरिया पौधों को कैसे बीमार बनाते हैं, वो इस बारे में भी और अधिक जानना चाहते हैं। उन्हें भरोसा है कि भविष्य में उनकी खोज किसानों के लिए मददगार साबित होगी और वो अपनी फसलों को बचाने के लिए कैल्शियम का सही उपयोग कर सकेंगे।