स्टीफन हॉकिंग ऐसे वैज्ञानिक जिन्होंने आधुनिक दुनिया में ईश्वर की सत्ता को नकार दिया था। अल्बर्ट आइंस्टीन के बाद स्टीफन हॉकिंग्स ही एक वैज्ञानिक के तौर पर दुनियाभर में लोगों के दिलों में अपनी जगह बना पाए। 21 वर्ष की अवस्था में उ्न्हें मोटर न्यूरॉन नाम की बीमारी हुई। ऐसा लग रहा था कि वे अपनी पीएचडी नहीं पूरी कर पाएंगे, लेकिन सभी कयासों को गलत साबित कर वे 55 साल तक जिए।
14 मार्च, 2018 को स्टीफन हॉकिंग का निधन हो गया। वे यूके, ऑक्सफोर्ड में 8 जनवरी, 1942 को जन्मे थे। उनके पिता एक चिकित्सा विज्ञानी थे जबकि मां दर्शनशास्त्र की स्नातक।
स्टीफन हॉकिंग ने लंदन के पास स्थित संत अलबांस स्कूल में शुरुआती पढ़ाई की। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से भौतिकी में प्रथम श्रेणी की डिग्री हासिल की। उनके शोध की शुरुआत 1962 से हुई। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में एक स्नातक के तौर पर उनका नामांकन हुआ। वहां आधुनिक ब्रह्मांडशास्त्र (कॉस्मोलॉजी) के जनक डेनिस स्किआमा उनके गुरु बने।
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत पुनर्जागरण काल के दौरान प्रक्रिया में था। उसी वक्त लंदन के ब्रिकबेक कॉलेज में वैज्ञानिक रोजर पेनरोज ने नई गणितीय तकनीकी से लोगों को रुबरू कराया। जिसमें बताया गया कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति की समाप्ति अनन्त की ओर इशारा करती है। उन्होंने एक नई भौतिकी की ओर इशारा किया।
फिर अंतरिक्ष में ब्लैक होल्स की परिकल्पना हुई। 1973 में द लार्ज स्केल स्ट्रक्चर ऑफ स्पेस-टाइम (कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस) से शोध पत्रों की सीरीज बाहर आई। इसमें जॉर्ज इलिस भी हॉकिंग के साथ थे। ब्लैक होल्स के हॉरिजोन की भी बात हुई। अंत समय स्टीफन हॉकिंग्स ने अपनी पुस्तक ब्रीफ आंसर टू द बिग क्विश्चन यानी बड़े सवालों के सारगर्भित जवाब दिए। उन्होंने कहा कि यह ब्रह्मांड स्वत: स्फूर्त है और इसका कोई निर्माणकर्ता यानी ईश्वर नहीं है। उन्होंने एक ब्लैक होल्स की बात जरूर की जो किसी नए ब्रह्मांड का रास्ता हो सकता है।
तो जानिए क्या है ब्लैक होल्स
“निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन, बड़े बे-आबरू होकर तिरे कूचे से हम निकले”
यह मिर्जा गालिब का एक मशहूर शेर है। गालिब के इस शेर में इस्तेमाल खुल्द का मतलब उस रहस्य वाली जगह से है, जहां से इंसान धरती पर आया। धरती पर इंसान के आने वाले इस तसव्वुर यानी ख्याल को विज्ञान मान्यता नहीं देता लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1915 में ब्लैक होल के बारे में भी सोचा था। यह ब्लैक होल कुछ-कुछ गालिब के खुल्द जैसा ही है। एकदम रहस्यमयी। जिसके होने की पुष्टि करीब 104 बरस बाद 10 अप्रैल 2019 में हुई है। यह बात अलग है कि वैज्ञानिक बहुत दूर की खिचड़ी पका रहे हैं कि क्या हम इंसान इस रहस्य वाले गोले में सुरक्षित प्रवेश कर सकते हैं। यदि हम किसी तरह इसमें चले भी गए तो क्या इस खु्ल्द के रास्ते किसी नई दुनिया में हमारा अवतरण होगा। यदि किसी कालखंड मे यह हुआ तो विज्ञान भी गालिब के पूरे शेर को मुकम्मल करार दे देगा।
धरती पर पाप के जितने अंधे कुएं मौजूद हैं, उनसे यह ब्लैक होल साढ़े पांच करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है। वैज्ञानिकों ने इसे एक अंडाकार आकाशगंगा के केंद्र में पाया है। इसे मेसियर 87 सुपरमैसिव ब्लैक होल नाम मिला है। इसकी करीब दो वर्ष तक निगरानी की गई। एक हजार खरब बाइट्स में आंकड़े जुटाए गए। इन आंकड़ों पर दो वर्ष की मेहनत हुई और ब्लैक होल की एक तस्वीर दुनिया के सामने आई। यह तस्वीर धुंधली ही बनी है। फर्ज कीजिए, आपकी कार के शीशे पर ओस की बूंदे जमा हैं और आप भीतर से सूरज को निहारें तो वह कुछ धुंधला ही दिखाई देगा। ठीक ऐसी ही तस्वीर बनी है लेकिन इसे भी वैज्ञानिक अजूबा मानते हैं। ब्लैक होल आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत (जीआर; आइंस्टीन, 1915) की परिकल्पना थी, जो सही साबित हुई है। ब्लैक होल का आकार कुछ-कुछ गोलाकार है। ये भी भरम टूटा कि यह अदृश्य है।
इस धुंधली तस्वीर में सूर्य से 6.6 अरब गुना अधिक द्रव्यमान वाले विशालकाय ब्लैक होल में नारंगी रंग के गैसों का एक चक्र दिखाई देता है। यह गर्म गैसों का उत्सर्जन है जो कि एक काल्पनिक जालीदार पर्दे के इर्द-गिर्द मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण घूमता रहता है। अगले वर्ष शायद एक वीडियो भी हमें इसका मिल जाए। नेशनल साइंस फाउंडेशन अमेरिका की ओर से संचालित इवेंट होराइजन टेलिस्कोप परियोजना के तहत पहली बार यह ऐतिहासिक तस्वीर दुनिया को मिली है। इसके लिए पृथ्वी के आकार के आठ आभासी टेलिस्कोप नेटवर्क का सहारा लिया गया। जिनकी खोज चंद्रमा पर एक कैनवस की गेंद ढ़ूंढ़ने जैसी थी। इस खोज के परिणाम एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में छापे गए हैं।
पृ्थ्वी के आकार के आठ आभासी टेलीस्कोपों की नजर को वहां तक पहुंचाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी। एक प्रकाश वर्ष में 6 खरब मील की दूरी होती है। 6 खरब में 12 शून्य होते हैं तो 5.5 करोड़ प्रकाश वर्ष में कितने शून्य होंगे। इसका अंदाजा भर लगा लें, तब कहीं जाकर आप ब्रह्मांड के हिसाब से एक अति छोटे से ब्लैक होल की तस्वीर निकालने में सक्षम होंगे। ब्लैक होल के होने की पुष्टि ने वैज्ञानिकों के इस साल को काफी खास बना दिया है। इस ब्लैक होल की एक बाउंड्री भी है।
इसे ऐसे समझिए कि खुल्द (ब्लैक होल) है और उस पर रहस्य का एक काल्पनिक जालीदार पर्दा भी है। ब्लैक होल की बाउंड्री का काम करने वाला यह जालीदार पर्दा ‘इवेंट होराइजन’ कहलाता है। हम इस काल्पनिक जालीदार पर्दे को देख नहीं सकते हैं और न ही इसके पार होने वाली घटनाए ही देखी जा सकती हैं। इवेंट होराइजन यानी वह बिंदु जहां पहुंचकर कोई चीज वापस नहीं लौट पाएगी, हालांकि ब्लैक होल में ताकतवर गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण गिर जाएगी। कहां जाएगी यह नहीं मालूम क्योंकि अभी तक ब्लैक होल अनंत ही ज्ञात है। यहां तक कि ब्रह्माण्ड में ज्ञात सर्वाधिक गति से चलने वाला प्रकाश भी इवेंट होराइजन के भीतर जाकर उस ब्लैक होल न ही वापस लौट पाता है और न ही उसे पार कर पाता है। ब्लैक होल अपने आस-पास सब कुछ निगल लेता है। यह बात हमें 1916 में कार्ल स्च्वार्जस्चिल्ड नाम के जर्मन वैज्ञानिक ने बताई थी। प्रकाश भी जब ब्लैक होल से लौट नहीं पाता तो फिर गुप्प अंधकार ही बचता है। इतना तो पता है कि ब्लैक होल्स अलग-अलग द्रव्यमान के हो सकते हैं। वैज्ञानिक हमारे इसी अंधकार को छांटने में लगे हैं।
इस खुल्द यानी ब्लैक होल के जालीदार पर्दे पर कुछ घटित होने का ख्याल स्टीफन हॉकिंग को आया था। इसे हाकिंग विकिरण कहते हैं। उन्होंने 1976 में बताया कि इवेंट होराइजन के किनारे एक गर्म विकिरण भी मौजूद है। इनके किनारों से काफी गर्म कण टूट-टूट कर ब्रह्मांड में बिखरते रहते हैं। काफी समय अंतराल के बाद ब्लैक होल भी अपना पूरा द्रव्यमान हल्का कर देगा और खत्म हो जाएगा। वैसे दिलचस्प यह है कि ब्लैक होल भी खुद एक मृत होते तारे की कहानी है। जैसे इंसान का जीवन तय है। वैसे तारे का भी एक जीवन है। लेकिन वहां 100 वर्ष का संघर्ष नहीं होगा। हाइड्रोजन और हीलियम के जोड़ (संलयन) से तारे का जीवन आबाद होता है, वह चमकता रहता है। यह संलयन एक दिन तारे का साथ छोड़ता है और तारे की चमक बुझ जाती है।
एक बहुत विशाल तारा, सूरज से भी काफी बड़ा, जब खत्म होने को होता है तो अपने ही वजन का बोझ नहीं उठा पाता और भीतर की तरफ सिकुड़ने लगता है। मृत्यु की दहलीज पर खड़े किसी अतिवृद्ध के दोहरे हो चुके बदन को देखिए। शरीर अपने ही वजन से सीधा खड़ा नहीं रह पाता, वह भीतर को झुक जाता है। एक घुमाव बनाता है। उसी तरह दम तोड़ता विशाल तारा भी एक घुमाव तैयार करता है। जैसा अलबर्ट आइंस्टीन कहते हैं कि किसी भी द्रव्यमान के आस-पास मौजूद गुरुत्वाकर्षण शक्ति स्पेस-टाइम को उसके आस-पास लपेटकर घुमावदार यानी वक्र जैसा बना देता है। यह घुमाव उस मृत तारे में भी भीतर की तरफ बनता है। एक अनंत खाई तैयार हो जाती है। इस छिद्र के मुंह के बारे में अभी बहुत कम पता है, पूंछ कहां होगी यह तो बड़ी गुत्थी है ही। मृत तारे से ब्लैक होल बना और उसका घुमाव अनंत तक चला जाता है, जहां भौतिकी का कोई नियम काम नहीं करता।
एक छोटे मुंह वाले अंधेरे कुएं में गिर जाएं। यह सामान्य कुंआ नहीं है कि एक तल होगा और आप वहां पहुंच जाएंगे। यह वो कुंआ है जिसके जरिए आप किसी दूसरी दुनिया में भी पदार्पण कर सकते हैं। इस कुएं में प्रकाश के साथ-साथ समय की भी नहीं चलती। वही समय जो धरती पर बड़ा बलवान है। दरअसल, ब्लैक होल में बेहद ताकतवर गुरुत्वाकर्षण शक्ति काम करती है। वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि आप किसी बड़े झूले से नीचे आते हुए जैसा महसूस करते हैं या जैसे कभी-कभी स्वप्न में किसी ऊंची इमारत से गिरने का एहसास होता है। गुरुत्वाकर्षण का आभास ही खत्म हो जाए। इतना ज्यादा गुरुत्वाकर्षण। आइंस्टाइन के शब्दों में इसे “हैप्पीएस्ट थॉट” कहेंगे।
वैज्ञानिक मानते हैं कि इवेंट होराइजन यानी वह बिंदु जिससे वापस नहीं लौटा जा सकता। यदि ब्लैक होल का दरवाजा खोला और भीतर गए तो आप के साथ सिर्फ दो चीजें घटित हो सकती हैं। संभव है कि आप इवेंट होराइजन पर ही जलकर खाक हो जाएं या फिर आइंस्टीन के मुताबिक निर्बाध ब्लैक होल के जरिए निगल लिए जाएं और अनंत की यात्रा पर सुरक्षित सफर करें।
आप ब्लैक होल में सफर तो जरूर कर रहे होंगे लेकिन आपकी मर्जी वहां नहीं चलेगी। क्योंकि इस धरती पर समय कभी पीछे नहीं मुड़ता आप लाख चाहें तो भी नहीं। ठीक इसी तरह जब स्पेस-टाइम के अभाव में भौतिकी के सारे नियम वहां काम नहीं करेंगे तो आपकी मर्जी भी नहीं चल पाएगी। आप सोचकर भी उलट-पुलट नहीं पाएंगे। वहाँ आप होंगे जरूर लेकिन होना व्यर्थ होगा। यह थी ब्लैक होल की यात्रा। अब भी ब्लैक होल के भीतर क्या है? सचमुच अभी कोई कुछ नहीं बता सकता। इस तस्वीर पर एक लंबा अध्ययन होगा।