रिसर्च से पता चला है कि दांतों की बेहतर देखभाल, न केवल मुंह की साफ-सफाई और स्वास्थ्य के लिए जरूरी है साथ ही यह दिमाग के बेहतर स्वास्थ्य से भी जुड़ी है। इस बारे में जापान के तोहोकू विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए अध्ययन से पता चला है कि मसूड़ों की बीमारी और दांतों को होने वाला नुकसान मस्तिष्क के एक अहम हिस्से हिप्पोकैंपस में सिकुड़न से जुड़ा है।
इस अध्ययन के नतीजे पांच जुलाई 2023 को अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के मेडिकल जर्नल न्यूरोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि हिप्पोकैंपस दिमाग के टेंपोरल लोब में पाया जाता है। दिमाग का यह हिस्सा नई चीजों को सीखने और पुरानी को याद रखने में मदद करता है।
साथ ही यह क्षेत्र अल्जाइमर नामक बीमारी से भी जुड़ा है। हालांकि अध्ययन इस बात की पुष्टि नहीं करता है कि मसूड़ों की बीमारी या दांत खराब होने से अल्जाइमर हो सकता है। यह अध्ययन केवल उनके बीच के संबंध को उजागर करता है।
इस बारे में अध्ययन और जापान की तोहोकू विश्वविद्यालय से जुड़े लेखक सातोशी यामागुची ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "दांतों का गिरना और मसूड़ों की बीमारी व्यापक समस्याएं हैं, जिनमें दांतों के आसपास के ऊतकों में होने वाली सूजन शामिल है। इनके कारण मसूड़े सिकुड़ सकते हैं और दांत ढीले हो सकते हैं। ऐसे में यह जांचना महत्वपूर्ण है कि क्या इन मौखिक स्वास्थ्य समस्याओं और मनोभ्रंश के बीच कोई संबंध है।"
उनका कहना है कि, "अध्ययन से पता चला है कि मौखिक स्वास्थ्य से जुड़ी यह स्थितियां, सोच और स्मृति के लिए जिम्मेवार मस्तिष्क क्षेत्र को प्रभावित कर सकती हैं। ऐसे में यह खोज दांतों की बेहतर देखभाल के महत्व पर जोर देती है, क्योंकि यह उनके मस्तिष्क के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।“
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 67 वर्ष की औसत आयु वाले 172 लोगों को शामिल किया था, जिन्हें अध्ययन की शुरूआत में याददाश्त से जुड़ी कोई समस्या नहीं थी। अध्ययन की शुरूआत में इन लोगों के दांतों और याददाश्त का परीक्षण किया गया था।
क्या है दिमाग और मसूड़ों की बीमारी के बीच सम्बन्ध
इसकी पुष्टि के लिए अध्ययन की शुरूआत और फिर चार साल बाद हिप्पोकैम्पस को मापने के लिए उनके दिमाग का स्कैन भी किया गया। शोधकर्ताओं ने अध्य्यन के दौरान इन सभी लोगों के दांतों की गिनती की थी और उनके मसूड़ों की भी जांच की थी, जिससे उससे जुड़ी बीमारियों का पता लगाया जा सके। इसके लिए उन्होंने पीरियोडोंटल प्रोबिंग डेप्थ नामक माप का उपयोग किया था जो मसूड़ों के स्वास्थ्य को निर्धारित करता है।
आदर्श रूप से, एक से तीन मिलीमीटर के बीच की रीडिंग स्वस्थ मसूड़ों का संकेत देती है। कई क्षेत्रों में तीन या चार मिलीमीटर की गहराई तक जांच करने पर हल्के मसूड़ों की बीमारी की पहचान की गई थी। वहीं दूसरी ओर, मसूड़ों की गंभीर बीमारी के मामले में पांच या छह मिलीमीटर की गहराई तक जांच की गई। इस तरह के मामलों में हड्डियों को अधिक नुकसान हो सकता है। साथ ही इसकी वजह से दांत ढीले होकर आखिर में गिर सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि दांतों की संख्या और मसूड़ों की बीमारी की गंभीरता मस्तिष्क के बाएं हिप्पोकैम्पस में बदलावों से जुड़ी थी। जिन लोगों में मसूड़ों की बीमारी गंभीर नहीं थी, लेकिन उनमें दांतों की संख्या कम थी, उसका सम्बन्ध बाएं हिप्पोकैम्पस में सिकुड़न की तेज दर से जुड़ा था। इसी तरह जिन लोगों में ज्यादा दांत सलामत थे लेकिन उन्हें मसूड़ों की गंभीर बीमारी थी, उनमें भी मस्तिष्क के उसी क्षेत्र में सिकुड़न की दर तेज थी।
उम्र को ध्यान में रखते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि मसूड़ों की कम गंभीर बीमारी वाले व्यक्तियों में, एक दांत खोने के कारण मस्तिष्क के सिकुड़न में आई तेजी, मस्तिष्क की उम्र बढ़ने के करीब एक वर्ष के बराबर थी। इसके विपरीत, जिन लोगों में मसूड़ों की गंभीर बीमारी थी, उनमें एक अतिरिक्त दांत होने के बावजूद मस्तिष्क के सिकुड़न में आई तेजी मस्तिष्क की उम्र बढ़ने के करीब 1.3 वर्ष के बराबर थी।
ऐसे में सातोशी यामागुची का कहना है कि, "न केवल दांतों को बनाए रखना जरूरी है बल्कि ये परिणाम उनके समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि मसूड़ों की गंभीर बीमारी से प्रभावित दांतों को पकड़कर रखने का संबंध मस्तिष्क में सिकुड़न से जुड़ा है। नियमित रूप से दांतों के डॉक्टर के पास जाकर मसूड़ों की बीमारी को बढ़ने से रोकना जरूरी है।“
वहीं उनके मुताबिक जिन लोगों में मसूड़ों की गंभीर बीमारी है, उनमें मुंह और मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए दांतों को निकालने और उपयुक्त कृत्रिम उपकरणों से बदलने की आवश्यकता हो सकती है।