गांजे में पाए गए एंटीबायोटिक गुण, अमेरिका में हुआ अध्ययन

गांजे में मौजूद रासायनिक यौगिक 'कैनबिनोइड' जिसे कैनबाइगरोल (सीबीजी) भी कहा जाता है, जो स्टैफिलोकोकस ऑरियस (एमआरएसए)' के खिलाफ एक कारगर इलाज है
Photo: Agnimirh Basu
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दुनिया भर में गांजे को एक नशीले पदार्थ के रूप में जाना जाता है। जिसका प्रयोग ड्रग्स के रूप में किया जाता है। हालांकि दुनिया के 18 से ज्यादा देश चिकित्सीय प्रयोग के लिए इसको कानूनी वैद्यता प्रदान कर चुके हैं। हाल ही में मैकमास्टर यूनिवर्सिटी द्वारा किये एक नए अध्ययन में इसके औषधीय गुणों का पता चला है। 

अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के इन्फेक्शस डिजीज नामक जर्नल में छपे इस शोध में गांजे में एंटीबायोटिक गुण होने की बात को माना गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार गांजे में अद्भुत रूप से एंटीबायोटिक गुण होते हैं। जिससे एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स से निपटने के लिए प्रभावी दवा बनायी जा सकती है। इसमें मौजूद रासायनिक यौगिक 'कैनाबिनॉइड' जिसे कैनबाइगरोल (सीबीजी) भी कहा जाता है, न केवल जीवाणुरोधी होता है, बल्कि यह मेथिसिलिन प्रतिरोधी बैक्टीरिया 'स्टैफिलोकोकस ऑरियस (एमआरएसए)' के खिलाफ भी एक कारगर इलाज है।

गौरतलब है कि एमआरएसए नामक यह बैक्टीरिया एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स होता है। शोध के प्रमुख शोधकर्ता और मैकमास्टर में जैव चिकित्सा विज्ञान के प्रोफेसर एरिक ब्राउन ने बताया कि हमने व्यावसायिक रूप से उपलब्ध 18 कैनबिनोइड्स की जांच की है और उन सभी में एंटीबायोटिक गुण पाए गए हैं।

इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए हमने केवल केवल एक गैर-साइकोएक्टिव कैनबिनोइड 'सीबीजी' पर ध्यान केंद्रित किया है। क्योंकि इसमें इसकी एंटीबायोटिक क्षमता अन्य की तुलना में कही अधिक थी। उनके द्वारा चूहे पर किये शोध में सीबीजी, एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स बैक्टीरिया एमआरएसए के खिलाफ भी कारगर पाया गया था। उसने इन जीवाणुओं में बायोफिल्म निर्माण की क्षमता खत्म कर दिया था। जोकि सूक्ष्मजीवों का एक समुदाय होता है| यह सूक्ष्मजीव सतह के माध्यम से आपस में जुड़े रहते हैं। पर गांजे के इस रूप 'सीबीजी' ने बैक्टीरिया की कोशिका झिल्ली पर असर करके इसकी कोशिकाओं को नष्ट कर दिया था। 

प्रो ब्राउन ने आगे बताया कि "सीबीजी इस एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स बैक्टीरिया से निपटने में अद्भुत रूप से कामयाब हुआ है। इस शोध से प्राप्त निष्कर्ष वास्तविक रूप से कैनबिनोइड्स के एंटीबायोटिक दवाओं के रूप में इस्तेमाल का सुझाव देते हैं।" हालांकि इस काम में सिर्फ एक बाधा है, और वो है कोशिकाओं पर इसके पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव। यदि इसके हानिकारक प्रभावों को कम कर दिया जाता है तो इसे दवा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।" उम्मीद है आने वाले वक्त में इसकी इन कमियों को दूर कर लिया जायेगा और यह दवा प्रकृति के किसी वरदान से कम नहीं होगी।

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