एक नई रिसर्च के मुताबिक प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़े जीन में हुए म्युटेशन यह बता सकते हैं कि क्यों कुछ लोगों के कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद भी उनमें इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय सैन फ्रांसिस्को के शोधकर्ताओं द्वारा किया यह अध्ययन जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है।
कोविड-19 से संक्रमित करीब 20 फीसदी मरीजों में बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। वैज्ञानिक अब भी इसको लेकर दुविधा में हैं कि आखिर क्यों कुछ लोगों में संक्रमण के बाद भी गंभीर जटिलताओं का सामना नहीं करना पड़ता, जबकि अन्य मरीजों में यही बीमारी गंभीर रूप ले लेती हैं। यहां तक कि उनमें पहले से ऐसी कोई स्थिति न हो जो उन्हें असुरक्षित बनाती हो।
वैज्ञानिकों के मुताबिक ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (एचएलए) नामक जीन के पास इसका उत्तर हो सकता है। एचएलए एक प्रोटीन के लिए कोड करता है, जो शरीर को अपनी और विदेशी कोशिकाओं के बीच अंतर करने में मदद करता है। इस जीन का म्युटेट हुआ संस्करण, एचएलए-B*15:01, टी- कोशिकाओं को सार्स-कॉव-2 वायरस की तेजी से पहचान करने और उससे लड़ने में मदद करता है। बता दें कि टी- कोशिकाएं एक तरह की प्रतिरक्षा कोशिकाएं होती हैं जो शरीर को बीमारियों से बचाती हैं।
क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने
इस बारे में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता जिल होलेनबैक का कहना है कि, "यदि आपके पास एक ऐसी सेना है जो दुश्मन को जल्द पहचान सकती है तो यह काफी फायदेमंद हो सकता है।"
उनके अनुसार यह उन सैनिकों की तरह है जो जंग के लिए तैयार हैं और पहले से ही जानते हैं कि किन्हें निशाना बनाना है। शोधकर्ताओं के अनुसार इन निष्कर्षों से नए टीकों के विकास को बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि वे इस बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं कि कैसे प्रतिरक्षा प्रणाली हानिकारक वायरस को बेहतर ढंग से पहचान सकती है और उनसे लड़ सकती है।
रिसर्च के मुताबिक पिछले अध्ययनों ने भी रोग की गंभीरता पर एचएलए जीन वेरिएंट के प्रभावों की जांच की है लेकिन इस मामले पर शोधकर्ताओं के बीच फिलहाल कोई निश्चित सहमति नहीं है।
इसका ज्यादा सटीक जवाब ढूंढने के लिए शोधकर्ताओं ने सिटीजन साइंस स्टडी नामक एक मोबाइल ऐप का उपयोग किया है, जिसकी मदद से उन्होंने संक्रमित व्यक्तियों को इस अध्ययन में शामिल किया है। वहीं एचएलए जीन वेरिएंट पर आंकड़े द नेशनल मैरो डोनर प्रोग्राम/ बी द मैच से जुटाए गए हैं। यह अमेरिका में एचएलए-टाइप वाले स्वयंसेवक डोनर्स की सबसे बड़ी रजिस्ट्री है।
विश्लेषण से पता चला है कि 20 फीसदी एसिम्प्टोमैटिक मरीजों में इस म्युटेट हुई जीन की कम से कम एक कॉपी मौजूद थी। वहीं नौ फीसदी मरीजों में जिनमें बीमारी के लक्षण सामने आए थे उनमें इस जीन के उत्परिवर्तित संस्करण की कॉपी पाई गई। इससे पता चलता है कि बिना लक्षण वाले मरीजों के बीमार न पड़ने की संभावना दोगुनी से भी ज्यादा थी।
साथ ही अध्ययन में यह भी सामने आया है कि, जिन लोगों में वेरिएंट की दो कॉपियां थी, उनमें लक्षणों के कभी भी सामने न आने की संभावना आठ गुना अधिक थी। अतिरिक्त प्रयोगों से पता चला है कि जो लोग पहली बार कोविड-19 से संक्रमित हुए थे, उनमें अभी भी वायरस के एक विशिष्ट हिस्से, जिसे एनक्यूके-क्यू8 पेप्टाइड कहा जाता है, उसके प्रति प्रतिक्रिया होती है।
कुछ संबंधित कोरोना वायरस में भी एनक्यूके-क्यू8 पेप्टाइड होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इन संबंधित वायरस के पिछले संपर्क से टी कोशिकाओं को तेजी से प्रतिक्रिया करने और हमलावर सार्स-कॉव-2 से लड़ने में मदद मिल सकती है।
इस बारे में ला ट्रोब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और प्रयोगशाला प्रमुख स्टेफनी ग्रास का कहना है कि, "इन लोगों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का अध्ययन करके, वे सार्स-कॉव-2 के खिलाफ प्रतिरक्षा सुरक्षा को बढ़ाने के नए तरीके खोज सकते हैं, जो भविष्य के टीके या दवाओं के विकास में मददगार हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में उल्लेख किया है कि, "वे निश्चित रूप से नहीं कह सकते हैं कि एचएलए-बी*15:01 वैरिएंट के एसिम्प्टोमैटिक रोग से संबंध के बारे में उनके परिणाम अन्य वैरिएंट पर भी लागू होते हैं या नहीं। हालांकि, शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि उनके निष्कर्षों ने म्युटेटड एचएलए जीन और सार्स-कॉव -2 के एसिम्प्टोमैटिक संक्रमण के बीच एक मजबूत संबंध को दर्शाया है।