तिब्बत के ग्लेशियर में मिले 15000 साल पुराने 33 वायरस, 28 से है दुनिया पूरी तरह अनजान

तिब्बत के ग्लेशियर से लिए गए बर्फ के दो नमूनों में वैज्ञानिकों को 15000 साल पुराने 33 वायरस मिले हैं, इनमें से 28 हमारे लिए बिलकुल नए हैं
फोटो: लोनी थॉम्पसन
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तिब्बत के ग्लेशियर से लिए गए बर्फ के दो नमूनों में वैज्ञानिकों को 15000 साल पुराने 33 वायरस मिले हैं, इनमें से 28 हमारे लिए बिलकुल नए हैं, जिनके बारे में हमारे पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इनमें से अधिकांश वायरस बर्फ में जमे रहने के कारण जीवित रह सके थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि वायरसों के अध्ययन के लिहाज से यह खोज काफी उपयोगी हो सकती है। इन वायरस से जुड़ी पूरी जानकारी जर्नल माइक्रोबायोम में प्रकाशित हुई है।

गौरतलब है कि यह वायरस जिस बर्फ में मिले हैं वो पश्चिम कुनलुन शान के गुलिया आइस कैप से ली गई थी, जो चीन के तिब्बती पठार में हैं, जिन्हें दुनिया के ‘तीसरे ध्रुव’ के रूप में भी जाना जाता है। आईपीसीसी के अनुसार यह पठार जलवायु संकट के कारण 1970 के बाद से अपनी लगभग एक चौथाई बर्फ खो चुके हैं।

इन पुरातन वायरसों की खोज से वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि पर्यावरण की बदलती परिस्थितियों के दौरान यह वायरस कई सदियों में कैसे विकसित हुए हैं। यही नहीं इस शोध में वैज्ञानिकों ने आइस कोर और उनमें मिलने वाले सूक्ष्म जीवों, वायरस और बैक्टीरिया को दूषित किए बिना अध्ययन की एक नई अल्ट्रा क्लीन विधि भी विकसित की है।

इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता और ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी से जुड़े झी-पिंग झॉन्ग ने बताया कि ये ग्लेशियर धीरे-धीरे बने थे, जिसके कारण धूल और गैसों के साथ, कई तरह के वायरस भी उस बर्फ में साल दर साल जमा हो गए थे। उनके अनुसार पश्चिमी चीन में ग्लेशियरों का अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है।  उनका लक्ष्य प्राचीन समय में मौजूद पर्यावरण और  जलवायु को सबके सामने लाना है। यह सूक्ष्म जीवों और वायरस भी उसी वातावरण का हिस्सा हैं। 

विज्ञान के लिए पूरी तरह नए हैं 28 वायरस

वैज्ञानिकों ने जब 22 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद बर्फ के उन नमूनों का अध्ययन किया, तो उन्हें 33 वायरसों के आनुवंशिक कोड मिले हैं, जिनमें से 4 के विषय में पहले से जानकारी उपलब्ध है जबकि 28 ऐसे हैं जो हमारे लिए पूरी तरह नए हैं, जिनके बारे में  कोई जानकारी नहीं है। 

वैज्ञानिकों को यह भी पता चला है कि इनमें से करीब आधे वायरस बर्फ की उपस्थिति के कारण बच गए थे। इस अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता और ओहियो स्टेट सेंटर ऑफ माइक्रोबायोम साइंस के निदेशक और माइक्रोबायोलॉजिस्ट मैथ्यू सल्लिवन ने जानकारी दी है कि यह ऐसे वायरस हैं जो इससे कठोर और बुरे वातावरण में भी पनप सकते हैं। 

उनके अनुसार इन वायरसों में उन जीन्स के भी हस्ताक्षर होते हैं जो उन्हें इतने ठंडे वातावरण में भी कोशिकाओं को संक्रमित करने में मदद करती हैं। साथ ही इनसे वो जेनेटिक जानकारी भी मिल सकती है कि इतनी कठोर परिस्थितियों में भी यह वायरस कैसे जीवित रह सकते हैं।  

उनके अनुसार इस तरह के जेनेटिक सिग्नेचर को प्राप्त करना आसान नहीं है। उन्होंने बताया कि आइस कोर दूषित होने से रोकने और बर्फ में मौजूद रोगाणुओं और वायरस का अध्ययन करने के लिए जो विधि झॉन्ग ने विकसित की है, वो हमें अन्य चरम वातावरण जैसे बर्फीले वातावरण, चद्रमा या अटाकामा रेगिस्तान में भी इन सूक्ष्मजीवों के जेनेटिक सीक्वेंस को खोजने में मददगार हो सकती है।

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