हाल ही में जारी ग्लोबल कमीशन ऑन द फ्यूचर ऑफ वर्क रिपोर्ट में पहली बार डिजिटल कार्यस्थल के युग में नियमों और कामगारों के संरक्षण की मांग की गई है। साल 2017 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा और स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लोफवेन की अध्यक्षता में कमीशन का गठन किया था।
रिपोर्ट में कामगारों के लिए काम की संप्रभुता की मांग की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, तकनीकी बदलाव और कार्यस्थल की बदलती संस्कृति के कारण काम के अधिकतम घंटों पर संकट के बादल मंडराएंगे। ऐसे श्रम कानूनों से संबंधित वैश्विक नियमों के पालन की निगरानी मुश्किल है।
रिपोर्ट के अनुसार, “सूचना एवं संचार तकनीकियां किसी भी स्थान से किसी भी समय काम करने की इजाजत देती हैं। इससे काम के घंटे और निजी समय में भेद करना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में काम के घंटे बढ़ सकते हैं। डिजिटल युग में सरकारों, काम देने वालों और कामगारों को मिलकर काम करने के अधिकतम घंटे निर्धारित करने होंगे। उदाहरण के लिए तकनीक से अलग होने के अधिकार को कानूनी मान्यता देना।”
दिन प्रतिदिन के काम में संतुलन स्थापित करने पर जोर देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुत से कामगार बहुत देर तक काम कर रहे हैं। उन्हें देर तक काम करने के लिए शायद ही भुगतान किया जाए। वैश्विक स्तर पर करीब 36 प्रतिशत लोग कार्यस्थल पर मानक समय 48 घंटे प्रति सप्ताह से अधिक काम करते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, “बहुत से लोगों के लिए काम के घंटे परिवर्तनशील होते हैं और उनका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसकी कोई गारंटी नहीं होती कि अतिरिक्त घंटे का भुगतान किया जाएगा।
रिपोर्ट कहती है कि कामगारों के समय की संप्रभुता बनाए रखने की सख्त जरूरत है। काम के घंटे नियंत्रित करने से कामगारों की सेहत में सुधार होगा। साथ ही साथ व्यक्तिगत और फर्म का प्रदर्शन भी सुधरेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है, “हम उचित नियमों को अपनाने की सलाह देते हैं जिससे कामगारों के लिए काम के न्यूनतम घंटे सुनिश्चित हो सकें। काम करने के अतिरिक्त घंटों के लिए अन्य उपाय किए जाएं ताकि इसके लिए उन्हें भुगतान किया जा सके जिसकी अब तक कोई गारंटी नहीं है।”