आईआईटी गुवाहटी ने बनाया फ्लोरेसेंट सेंसर : तुरंत लगाएगा पानी और मानव कोशिकाओं में सायनाइड का पता

फ्लोरेसेंट सेंसर बनाने वाली आईआईटी गुवाहटी की टीम, बाएं से दूसरी तरफ प्रो जी कृष्णमूर्ति, फोटो : आईआईटी गुवाहटी
फ्लोरेसेंट सेंसर बनाने वाली आईआईटी गुवाहटी की टीम, बाएं से दूसरी तरफ प्रो जी कृष्णमूर्ति, फोटो : आईआईटी गुवाहटी
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के रसायन विज्ञान विभाग की एक शोध टीम ने ऐसा फ्लोरेसेंट सेंसर विकसित किया है, जो न केवल पानी में बल्कि जीवित मानव कोशिकाओं में भी सायनाइड की पहचान कर सकता है। अल्ट्रावायलट (यूवी) लाइट की मदद से काम करने वाला यह सेंसर बेहद संवेदनशील है और बेहद कम मात्रा में भी सायनाइड की उपस्थिति को पहचान सकता है।

यह शोध आणविक और जैव-अणु स्तर पर प्रकाश के साथ रसायनों की जांच और अध्ययन पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय जर्नल "स्पेक्ट्रोचिमिका एक्टा भाग ए: मॉलिक्यूलर एंड बायोमॉलिक्यूलर स्पेक्ट्रोस्कोपी" में छपा है।

इस शोध का नेतृत्व प्रोफेसर जी कृष्णमूर्ति ने किया। साथ ही इसमें जैव विज्ञान और जैव अभियांत्रिकी विभाग के प्रो. बिथियाह ग्रे स जगनाथन और शोध छात्रा मोंगली ब्रह्मा समेत अरूप दास कनुंगो, मिनाती दास और सैम पी. मैथ्यू भी शामिल रहे।

सायनाइड एक अत्यधिक विषैला रसायन है जिसका उपयोग कई औद्योगिक प्रक्रियाओं में किया जाता है, जैसे सिंथेटिक फाइबर, प्लास्टिक, धातु की सफाई, इलेक्ट्रोप्लेटिंग और सोने की खनन। इसके अनुचित निपटान से यह मिट्टी और जल स्रोतों में मिल जाता है, जिससे मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। केवल थोड़ी-सी मात्रा भी शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति को बाधित कर सकती है और मृत्यु तक का कारण बन सकती है। ऐसे में सस्ते, सटीक और तेज़ सेंसर की जरूरत है, जो सायनाइड की उपस्थिति को तुरंत पहचान सकें।

आईआईटी गुवाहाटी द्वारा विकसित यह फ्लोरेसेंट सेंसर एक 'टर्न-ऑन' रेस्पॉन्स देता है, यानी यह सायनाइड की मौजूदगी में और अधिक चमकने लगता है। आमतौर पर अधिकांश सेंसर ‘टर्न-ऑफ’ तरीके से काम करते हैं, यानी रसायन के संपर्क में आने पर उनका प्रकाश मंद पड़ जाता है, जिससे झूठे निगेटिव नतीजे मिलने की आशंका रहती है। लेकिन यह नया सेंसर सायनाइड की उपस्थिति में हल्के नीले प्रकाश से बदलकर चटख सायन (सीवाईएएन) रंग की फ्लोरेसेंस उत्पन्न करता है, जिससे जांच और भी स्पष्ट हो जाती है।

इस सेंसर का रासायनिक आधार 2-(4′-डाइएथाइलअमीनो-2′-हाइड्रॉक्सीफिनाइल)-1एच-इमिडाजो-[4,5-बी]पाइरीडीन नामक कार्बनिक यौगिक है। यह विशेष परिस्थितियों में सायनाइड के साथ प्रतिक्रिया करता है और अपनी चमक बढ़ा देता है। यह प्रतिक्रिया बहुत विशिष्ट रूप से केवल सायनाइड के लिए होती है और यह पानी जैसे सॉल्वेंट में भी काम करती है। जल में यह सेंसर 0.2 माइक्रोमोलर तक की न्यूनतम मात्रा का भी पता लगा सकता है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित 1.9 माइक्रोमोलर की सीमा से काफी नीचे है।

प्रो. कृष्णमूर्ति के अनुसार, यह सेंसर न केवल लैब की स्थितियों में बल्कि नदी और नल के पानी जैसे वास्तविक नमूनों में भी 75–93% तक सटीकता के साथ काम करता है। इसकी मदद से जलीय प्रदूषण की मौके पर ही पहचान आसान हो जाती है। इसके अलावा, यह सेंसर कागज की स्ट्रिप्स में भी लगाया जा सकता है, जिससे इसे पोर्टेबल और फील्ड फ्रेंडली बनाया जा सकेगा। शोधकर्ताओं ने इसे ब्रेस्ट कैंसर कोशिकाओं में सायनाइड की पहचान के लिए भी सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया, जिससे इसके बायोलॉजिकल और फोरेंसिक उपयोग की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

दिलचस्प बात यह है कि यह सेंसर केवल एक डिटेक्शन डिवाइस नहीं है, बल्कि डिजिटल लॉजिक गेट्स की तरह भी काम कर सकता है, जो किसी स्मार्ट सेंसर आधारित डिवाइस के निर्माण की दिशा में एक अहम कदम है। इसका मतलब है कि भविष्य में इस तकनीक की मदद से ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण विकसित किए जा सकते हैं जो सायनाइड जैसी हानिकारक रसायनों की रीयल टाइम पहचान कर सकें।

इस मामले में शोध करने वाले अब एक सरल परीक्षण किट विकसित करने पर कार्य कर रहे हैं, जिससे विभिन्न रासायनों की मौके पर ही पहचान और भी सुगम हो सकेगी।

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