आईआईटी, गुवाहाटी ने बनाया कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का तेजी से पता लगाने वाला उपकरण

दावा: इससे रोगियों में हृदय संबंधी बीमारियों का पहले से पता लगाना संभव हो सकेगा
मनुष्य के बाल की चौड़ाई से 10,000 गुना पतले दो धातुओं से बने नैनोस्ट्रक्चर का उपयोग किया गया है
मनुष्य के बाल की चौड़ाई से 10,000 गुना पतले दो धातुओं से बने नैनोस्ट्रक्चर का उपयोग किया गया हैफोटो साभार: आईआईटी गुवाहाटी
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने नैनोस्केल वस्तुओं पर सरफेस-एन्हांस्ड रमन स्कैटरिंग (एसईआरएस) को जोड़ कर कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स का पता लगाने में सुधार करने के लिए एक नया नजरिया विकसित किया है। इस काम में मनुष्य के रक्त में बायोमार्करों की अधिकता की पहचान के लिए मनुष्य के बाल की चौड़ाई से 10,000 गुना पतले दो धातुओं से बने नैनोस्ट्रक्चर का उपयोग किया गया है।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह शोध नैनो प्रौद्योगिकी केंद्र और रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर दीपांकर बंद्योपाध्याय के नेतृत्व में किया गया है।

कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स जैसे चयापचय जैव अणु मनुष्य शरीर के हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। उच्च (एचडीएल) और निम्न (एलडीएल) घनत्व वाले लिपोप्रोटीन विभिन्न चयापचय गतिविधियों के लिए कोलेस्ट्रॉल को सेलुलर हिस्सों तक पहुंचाते हैं। एलडीएल और एचडीएल के असंतुलन से धमनी पट्टिका का निर्माण होता है जिससे उच्च रक्तचाप, रक्त के थक्के बनना या इस्केमिया होता है।

दूसरी ओर, ट्राइग्लिसराइड्स (टीजीए) पाचन के दौरान फैटी एसिड और ग्लिसरॉल में बदल जाते हैं जो बदले में कोशिकाओं तक पहुंचने के लिए बहुत कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (वीएलडीएल) नामक लिपोप्रोटीन के अंदर पैक किए जाते हैं। ट्राइग्लिसराइड्स का ऊंचा स्तर एथेरोस्क्लेरोसिस और कोरोनरी धमनी रोग, अग्नाशयशोथ, टाइप-टू मधुमेह या फैटी लीवर के लिए जिम्मेवार होता है।

इसलिए, किसी भी असामान्यता का समय पर पता लगाना और रक्त में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड के स्तर की बारीकी से निगरानी करना अत्यधिक आवश्यक है। जबकि रक्त के पारंपरिक लिपिड प्रोफाइल परीक्षण विश्वसनीय हैं, उन्हें अक्सर प्रयोगशाला की जरूरत पड़ती है, वे पॉइंट-ऑफ-केयर समाधान के रूप में उपलब्ध नहीं हैं और परिणाम में समय लग सकता है।

इन समस्याओं से निपटने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक पर गौर किया है जो नैनो टेक्नोलॉजी और आणविक पहचान को जोड़ती है, जिसे आगे सटीकता के साथ एक पॉइंट-ऑफ-केयर डिवाइस के रूप में बदला जा सकता है।

विज्ञप्ति के मुताबिक, शोधकर्ता एसईआरएस सक्रिय दो धातु वाले नैनोस्ट्रक्चर - सिल्वर शेल्ड गोल्ड नैनोरोड्स का उपयोग करते हैं, जो प्रिस्टिन सिल्वर या गोल्ड नैनोरोड्स की तुलना में संवर्धित स्पेक्ट्रल रिज़ॉल्यूशन का उत्पादन करने के लिए सिल्वर और गोल्ड के प्लास्मोनिक रेजोनेंस हाइब्रिडाइजेशन को सक्षम बनाते हैं।

इसके बाद, इन दो धातुओं के नैनोरोड्स को दो अलग-अलग सक्रिय रिसेप्टर्स से जोड़ा जाता है और कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स की अलग-अलग मात्रा का पता लगाने के लिए एंजाइम कोलेस्ट्रॉल ऑक्सीडेज और लाइपेस के साथ स्थिर किया जाता है।

इस तरह के नवाचार उच्च स्तर की पहचान संवेदनशीलता के साथ अल्ट्राफास्ट पॉइंट-ऑफ-केयर डिटेक्शन किट के लिए एक प्लेटफ़ॉर्म के विकास में मदद करते हैं।

प्रेस विज्ञप्ति में प्रो. दीपांकर बंद्योपाध्याय के हवाले से कहा गया कि हाल ही में किफायती और पोर्टेबल रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी उपकरणों के आने से, रोगियों के स्थान पर एचडीएल, एलडीएल, वीएलडीएल और टीजीए की वास्तविक समय की निगरानी के लिए इन सेंसरों के उपयोग की संभावना बढ़ गई है।

ये हृदय संबंधी बीमारियों को उनके तीव्र चरण में होने से पहले ही कम करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा ऐसी तकनीकें आईपीआर से हमारे अपने ऑटो-एनालाइजर के विकास के लिए ऐसे सटीकता वाले जेन-नेक्स्ट सेंसरों का स्वदेशीकरण संभव होगा, जिन्हें वर्तमान में विदेशों से आयात किया जाता है।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने प्रयोगों और नए सिमुलेशन दोनों के माध्यम से अपने सिल्वर-गोल्ड नैनोरोड्स (एजी-एयू एनआरएस) के बेहतर प्रदर्शन को प्रमाणित किया। सिल्वर और गोल्ड के अनूठे जुड़ाव के कारण, इन नैनोरोड्स ने बेहतर प्रकाश संपर्क गुण दिखाए, जिन्हें स्थानीय सतह प्लाज़्मोन प्रतिध्वनि (एलएसपीआर) के रूप में जाना जाता है।

इस गठबंधन ने अकेले गोल्ड नैनोरोड्स का उपयोग करने की तुलना में 20 से 50 गुना अधिक प्रभावी ढंग से संकेतों को बढ़ाया, जिससे नैनो-सक्षम एसईआरएस जैसे अनुप्रयोगों के लिए उनका अहम फयादा साबित हुआ।

शोध कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड परीक्षण की सटीकता और संवेदनशीलता को बढ़ाकर, स्वास्थ्य सेवा में बदलाव करने की क्षमता रखता है, जिससे रोगियों के स्थान पर हृदय संबंधी बीमारियों का पहले से पता लगाना संभव हो सकेगा। शोध के निष्कर्ष हाल ही में बायोसेंसर्स एंड बायोइलेक्ट्रॉनिक नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं

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