

देश के शीर्ष कृषि अनुसंधान संस्थान आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) और कृषि मंत्रालय पर जीनोम-संपादित (जीनोम-एडीटेड) धान के परीक्षणों में वैज्ञानिक हेरफेर और बेईमानी के आरोप लगे हैं।
गैर-सरकारी संगठन कोएलिशन फॉर ए जीएम-फ्री इंडिया ने दावा किया है कि आईसीएआर ने अपनी ही रिपोर्टों में दिए गए आंकड़ों को तोड़-मरोड़ कर दो नई धान किस्मों पूसा डीएसटी-1 और डीआरआर धान 100 कमला का सफल प्रयोग और विश्व में पहली उपलब्धि के रूप में पेश किया, जबकि उसके पीछे ठोस डेटा का अभाव है।
संगठन ने 30 अक्तूबर, 2025 को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आईसीएआर के ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन राइस (एआईसीआरपीआर) की 2023 और 2024 की वार्षिक रिपोर्टों से आंकड़े जारी किए। उनके अनुसार, रिपोर्टों के निष्कर्ष और डेटा मेल नहीं खाते, जिससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि परिणामों में हेराफेरी कर “सफलता” का झूठा दावा किया गया।
गठबंधन ने कहा, “जैसे पहले भी बायोटेक कंपनियां और उनके प्रचारक बीटी बैंगन और जीएम सरसों के मामलों में करती रही हैं, उसी तरह अब जीनोम-संपादित धान की किस्मों को ‘भारत के लिए चमत्कारी बीज’ बताकर विज्ञान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। बिना ठोस जांच और आंकड़ों के वैज्ञानिक फर्जीवाड़े को बढ़ावा देकर भारत के वैज्ञानिक संस्थानों की साख पर धब्बा लगाया जा रहा है।”
जीएम फ्री इंडिया कोएलिशन ने इसे वैज्ञानिक बेईमानी का संगठित पैटर्न बताया। साथ ही कहा यह किसानों की सुरक्षा और वैज्ञानिक संस्थानों की साख दोनों पर यह सीधा प्रहार है।
चार मई 2025 को कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दो जीनोम-संपादित धान की किस्मों, पूसा डीएसटी-1 (आईईटी 32043) और सीआरआर धन 100 ‘कमला’ (आईईटी 32072) को घोषित किया और कहा कि यह दुनिया में पहली बार है।
उन्होंने पूसा डीएसटी-1 को खारी और क्षारीय मिट्टी के लिए श्रेष्ठ बताया, जबकि कमला को बीपीटी 5204 (सांबा महासूरी) की तुलना में 17% अधिक उत्पादन, 20 दिन जल्दी पकने और बेहतर नाइट्रोजन उपयोग वाली किस्म बताया गया। हालांकि, गठबंधन की जांच बताती है कि इन दावों को प्रमाणित करने वाले कोई ठोस आंकड़े मौजूद नहीं हैं। उल्टा, आईसीएआर की अपनी रिपोर्टें ही इन दावों की पोल खोलती हैं।
दोनों जीनोम-संपादित किस्मों पर यह हैं आरोप
पूसा डीएसटी-1 के बारे में दावा था कि यह खारी और क्षारीय मिट्टी में बेहतर प्रदर्शन करती है लेकिन 2023 के ट्रायल में सूखा या खारापन सहनशीलता के आंकड़े उपलब्ध ही नहीं थे क्योंकि बीज पर्याप्त मात्रा में नहीं थे। जहां परीक्षण हुए, वहां इसकी उपज एमटीयू-1010 किस्म के बराबर या 4.8 फीसदी कम रही। 20 में से 12 परीक्षण स्थलों पर यह मूल किस्म से कम उत्पादक पाई गई। 2024 में भी तटीय और खारी मिट्टी में कोई ठोस सुधार नहीं मिला, क्षारीय मिट्टी में केवल 1.6% मामूली वृद्धि दर्ज की गई। फिर भी, रिपोर्ट की समरी तालिका (पेज 9.27) में “30% अधिक उत्पादन” का दावा किया गया। संगठन ने इसे “भ्रामक और गढ़ा हुआ” बताया है।
रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि खारी मिट्टी में “कोई उत्पादकता बढ़त नहीं दिखी” (पेज 6.58), फिर भी इसे “उत्साहजनक” बताया गया। गठबंधन का कहना है कि यह एक पूर्व-निर्धारित नैरेटिव को मजबूत करने के लिए डेटा में हेरफेर का उदाहरण है।
डीआरआर धन 100 ‘कमला’
लॉन्चिंग के समय दावा किया गया था कि यह किस्म 17% अधिक उपज, 20 दिन जल्दी पकने और बेहतर नाइट्रोजन उपयोग की क्षमता रखती है। हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में 19 में से 8 परीक्षण स्थलों पर प्रदर्शन कमजोर रहा। दो जोनों (पूर्वी और केंद्रीय) में यह अपनी मूल किस्म से भी कम उत्पादक निकली। 2024 के आंकड़ों में कई स्थलों के नतीजे बिना कारण हटाए गए, और केवल 6 स्थलों के सीमित डेटा पर “+17% बढ़त” का दावा किया गया, जबकि औसत उपज वास्तव में 4 फीसदी कम थी।
रिपोर्ट में 50 फीसदी फूल आने के औसत आंकड़े कमला (101 दिन) और उसकी मूल किस्म (104 दिन) के बीच केवल 3 दिन का अंतर दिखाते हैं, यानी “20 दिन जल्दी पकने” का दावा तथ्यहीन साबित होता है।
जीएम फ्री इंडिया का कहना है कि यह सिर्फ एक आइसोलेटेड घटना नहीं है, बल्कि बार-बार दोहराए जा रहे “खराब विज्ञान के खतरनाक पैटर्न” का हिस्सा है। उनके मुताबिक, परीक्षण मानकों में भी कई विरोधाभास हैं, जैसे प्रति वर्ग मीटर पुष्पगुच्छ की गिनती, अनाज की गुणवत्ता और परिपक्वता अवधि में असंगतियां हैं।
प्रेस कांफ्रेंस में बायोटेक्नोलॉजिस्ट सौमक बनर्जी ने कहा “अगर यह तकनीक इतनी ही सटीक और सुरक्षित है तो बाकी सभी जीएमओ अध्ययनों की तरह इसका पारदर्शी डेटा सार्वजनिक करने में क्या डर है?”
वहीं, कोलिएशन की सदस्य कविता कुरुगंथी ने कहा कि सरकारी अनुसंधान संस्थानों द्वारा इस तरह के “फर्जी वैज्ञानिक प्रयोग” किसानों की आजीविका के साथ खिलवाड़ हैं। उन्होंने कहा, “यह केवल एक तकनीकी या नीतिगत मसला नहीं, बल्कि मानवाधिकार और वैज्ञानिक नैतिकता का प्रश्न है। करोड़ों किसानों का जीवन इससे जुड़ा है।”
उन्होंने कहा कि यह देश के ईमानदार वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी है कि वे ऐसी अनैतिक गतिविधियों पर सवाल उठाएं और सुनिश्चित करें कि भारत के वैज्ञानिक संस्थानों की साख सुरक्षित रहे।
जीएम फ्री इंडिया ने कहा कि जीनोम संपादित धान पर किए गए सभी भ्रम फैलाने वाले दावे तत्काल वापस लिए जाएं। आईसीएआर के एआईसीआरपीआर डेटा और प्रक्रियाओं की स्वतंत्र, पारदर्शी वैज्ञानिक जांच कराई जाए। साथ ही आईसीएआर और कृषि मंत्रालय को देश को गुमराह करने के लिए जवाबदेह ठहराया जाए। वहीं, जब तक जीनोम एडिटिंग पर जैव-सुरक्षा विनियमन और स्वतंत्र निगरानी की व्यवस्था नहीं बनती, तब तक जीनोम-संपादित फसलों की रिलीज पर रोक लगाई जाए।
भारत में जीनोम-संपादित (एसडीएन-1 और एसडीएन 2) फसलों को जीएम (जेनेटिकली मोडिफॉई ) से अलग श्रेणी में रखा गया है। ऐसी फसलों को जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमिटी (जीईएसी) की विस्तृत मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि, वैज्ञानिक समुदाय का एक हिस्सा इसे “नियामक ढील” मानता है और चेतावनी देता है कि इस व्यवस्था में पारदर्शिता और सार्वजनिक समीक्षा की कमी है।
गठबंधन ने यह भी कहा कि नवाचार के नाम पर घटिया विज्ञान परोसना न केवल किसानों की आजीविका और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, बल्कि यह भारत में विज्ञान पर आम नागरिकों के भरोसे को भी कमजोर कर सकता है।