नवजात आकाशगंगा का किस तरह हुआ निर्माण, खगोलशास्त्रियों ने नई खोज से लगाया पता

यह असाधारण ज्वारीय पूंछ जैसी आकृति 12.7 लाख प्रकाश वर्ष तक फैली हुई है। इस प्रकार यह अब तक खोजी गई सबसे लंबी ज्वारीय पूंछ जैसी आकृति बन गई है।
यह पूंछनुमा आकृति न केवल अपने आकार में बड़ी है, बल्कि यह अल्ट्रा-डिफ्यूज आकाशगंगाओं (यूडीजी) के निर्माण के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
यह पूंछनुमा आकृति न केवल अपने आकार में बड़ी है, बल्कि यह अल्ट्रा-डिफ्यूज आकाशगंगाओं (यूडीजी) के निर्माण के बारे में जानकारी प्रदान करती है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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पृथ्वी से लगभग 43 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर, सिंह तारामंडल में, एक नई बहुत ज्यादा फैली हुई आकाशगंगा का निर्माण हो रहा है। यह आकाशगंगा एनजीसी 3785 की ज्वारीय पूंछ जैसी आकृति, तारों और इंटरस्टेलर गैस की एक लंबी, पतली धारा के अंत में बन रही है।

आकाशगंगा के निर्माण की यह खोज, एनजीसी 3785 और एक पड़ोसी आकाशगंगा के बीच गुरुत्वाकर्षण के संपर्क के कारण हुई है। यह खोज आकाशगंगा के निर्माण को समझने में एक अहम खोज है।

एनजीसी 3785 आकाशगंगा में अब तक खोजी गई सबसे लंबी ज्वारीय पूंछ जैसी आकृति पाई जाती है। यह पूंछ जैसी आकृति आकाशगंगा से फैली हुई है और गुरुत्वाकर्षण बलों के कारण बनती है। जब दो आकाशगंगाएं आपस में निकटता से संपर्क करती हैं, तो ऐसे में निकट संपर्क या विलय प्रक्रिया के दौरान सामग्री को एक-दूसरे से दूर खींचती हैं।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के खगोलविदों और सहयोगियों ने जब एनजीसी 3785 आकाशगंगा का बड़ी सावधानी पूर्वक अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि न केवल इसकी अब तक खोजी गई सबसे लम्बी ज्वारीय पूंछनुमा आकृति है, बल्कि इस ज्वारीय पूंछनुमा आकृति की छोर में एक अत्यधिक फैली हुई आकाशगंगा का निर्माण भी हो रहा है।

शोध में कहा गया है कि कुछ साल पहले ओमकार बैत को तारों और गैस की धारा से बनी एक औसत से अधिक लंबी ज्वारीय पूंछ जैसी आकृति मिली थी। उन्होंने पाया कि यह एक अनोखी वस्तु थी। इस खोज को योगेश वाडेकर (एनसीआरए) और आईआईए के सुधांशु बारवे के साथ साझा किया गया।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने इस असाधारण आकाशगंगा और इसकी विशाल ज्वारीय पूंछनुमा आकृति को बहुत विस्तार से देखने का फैसला किया। उन्होंने पूंछ जैसी आकृति का सावधानीपूर्वक फोटोमेट्रिक विश्लेषण किया और नई छवि प्रक्रिया से जुड़ी तकनीकों का इस्तेमाल करके इसकी सीमा और लंबाई को सटीकता से मापा। यह असाधारण ज्वारीय पूंछ जैसी आकृति 12.7 लाख प्रकाश वर्ष तक फैली हुई है। इस प्रकार यह अब तक खोजी गई सबसे लंबी ज्वारीय पूंछनुमा आकृति बन गई है।

यह पूंछनुमा आकृति न केवल अपने आकार में बड़ी है, बल्कि यह अल्ट्रा-डिफ्यूज आकाशगंगाओं (यूडीजी) के निर्माण के बारे में जानकारी प्रदान करती है। इस पूंछनुमा आकृति का अनोखा पहलू यह है कि इसके सिरे पर एक नवजात अल्ट्रा-डिफ्यूज आकाशगंगा का निर्माण हुआ है। हो सकता है यह एनजीसी 3785 और एक पड़ोसी आकाशगंगा के बीच गुरुत्वाकर्षण संपर्क द्वारा संचालित हो रहा हो। इस कारण यह एक दुर्लभ और रोमांचक खोज के रूप में स्थापित होता है।

एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स लेटर्स में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि इस विशेष पूंछ की बहुत अधिक लंबाई और इसके फैलाव के साथ तारा-निर्माण समूहों की उपस्थिति इसे यह समझने के लिए एक अनोखा मामला बनाती है कि कैसे मंद और फैली हुई आकाशगंगाएं अस्तित्व में आती हैं।

यह खोज आकाशगंगाओं के बीच परस्पर क्रिया की आकर्षक प्रक्रिया और यह कैसे नई, मंद और फैली हुई संरचनाएं बना सकती है, इस पर प्रकाश डालती है। ज्वारीय पूंछ जैसी आकृति इस बात की एक झलक प्रदान करती है कि सतह पर बहुत कम चमक वाली अल्ट्रा-डिफ्यूज जैसी आकाशगंगाएं कैसे अस्तित्व में आती हैं।

शोध के मुताबिक, यह नई खोज सतह पर कम चमक से जुड़ी विशेषताओं के बारे में समझ को बढ़ाने के लिए अहम है, जो अक्सर उनकी मंदता के कारण पारंपरिक सर्वेक्षणों द्वारा छूट जाती हैं। हाल ही में लॉन्च किए गए मिशन जैसे यूक्लिड स्पेस टेलीस्कोप और रुबिन वेधशाला के लिगेसी सर्वे ऑफ स्पेस एंड टाइम (एलएसएसटी) जैसे आगामी ग्राउंड-आधारित सर्वेक्षण अपनी बढ़ी हुई संवेदनशीलता के कारण ऐसी और अधिक मंद ज्वारीय विशेषताओं को सामने लाने में सहायक होंगे।

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