चेहरे देखकर हैसियत बताने वाले कृत्रिम आंखों पर सवाल उठाती एक किताब
इलस्ट्रेशन: योगेन्द्र आनंद / सीएसई

चेहरे देखकर हैसियत बताने वाले कृत्रिम आंखों पर सवाल उठाती एक किताब

कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा एक परिष्कृत और भयावह फेसियल रिकग्निशन एल्गोरिदम गोपनीयता का अंत कर सकता है
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न्यूयॉर्क टाइम्स की तकनीकी पत्रकार कश्मीर हिल ने 2021 में ऑगमेंटेड रियलिटी (संवर्धित वास्तविकता) वाला चश्मा जब पहली बार पहना, तब उन्हें इस बात की झलक मिली कि इस तरह की परिष्कृत तकनीक एक ऐसी दुनिया पर क्या असर डाल सकती है जो इसे संभालने के लिए तैयार नहीं है।

यह चश्मा कोई साधारण गैजेट नहीं था। इसे पहनने वाले को फ्रेम में दिखने वाले किसी भी व्यक्ति की पहचान पता चल सकती थी। इसके अलावा, ये चश्मे किसी भी व्यक्ति की इंटरनेट पर अपलोड की गई तस्वीरें ढूंढ़ निकालने के साथ-साथ ही यह आंकड़े भी दिखाते थे कि उन तस्वीरों को कहां क्लिक किया गया था।

संवर्धित वास्तविकता वाले इन चश्मों का संचालन एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम के माध्यम से होता है, जिसे 2017 में न्यूयॉर्क शहर में स्थापित फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी स्टार्टअप क्लियरव्यू एआई द्वारा डिजाइन किया गया है।

यही नहीं, इस कंपनी ने सैन्य ठिकानों की सुरक्षा में मदद करने के लिए संवर्धित वास्तविकता वाले चश्मे पर शोध करने के लिए अमेरिकी वायु सेना के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर भी किए। कंपनी के सीईओ और सह-संस्थापक होन टोन थाट, (जो एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक हैं) हिल को बताते हैं कि इस गैजेट का मुख्य उद्देश्य सैनिकों को यह तय करने में मदद करना था कि 15 मीटर की दूरी पर खड़ा कोई व्यक्ति खतरनाक है या नहीं।

लेकिन टोन थाट ने इस तकनीक के संभावित दुरुपयोग की चिंताओं को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया है और वह लोगों को यह समझाने में जुटे हैं कि उन्हें अपने चेहरे को दुनिया के सामने सार्वजनिक कराने की जरूरत क्यों है। हिल अपनी पुस्तक योर फेस बिलॉन्ग्स टु अस में इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से सामने लाए हैं।

यह पुस्तक काफी हद तक क्लियरव्यू एआई से संबंधित हिल की खोजबीन का दस्तावेजीकरण है। इसके अलावा किताब के दो अध्याय फेसबुक और गूगल के फेसियल रिकग्निशन के क्षेत्र में प्रवेश करने और फिर विवादों के डर से बाहर जाने पर केंद्रित हैं।

हिल के अनुसार, यह दिलचस्प है कि गूगल और फेसबुक के पास दुनियाभर के लोगों के नामों और चेहरों का विशाल डेटाबेस होने के बावजूद क्लियरव्यू एआई इन दोनों कंपनियों को इस खेल में मात देने में कामयाब रही। हिल का मानना है कि ये दिग्गज कंपनियां परिणामों को लेकर आशंकित थीं, जबकि एक नई कंपनी होने के नाते क्लियरव्यू एआई के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं था।

क्लियरव्यू एआई से हिल का सामना पहली बार 2019 में हुआ था, जब यह स्टार्टअप अमेरिका में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ था। उन्हें एक रहस्यमयी फर्म के बारे में एक टिप मिली थी जिसने उनका ध्यान खींचा था। यह फर्म किसी व्यक्ति के चेहरे की एक तस्वीर से उसकी पहचान कर सकने का दावा कर रही थी। यह कंपनी जनता की नजरों में नहीं आना चाहती थी इसलिए अथक खोजबीन और कई जगहों से निराश होने और इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के साक्षात्कारों के बाद जाकर हिल इस स्टार्टअप से पर्दा उठाने में कामयाब रहीं।

लेखिका अपने पाठकों को टोन थाट के अतीत के माध्यम से इस तकनीकी उद्यमी के दिमाग में झांकने का मौका देती हैं। टोन थाट का जन्म ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में हुआ, जहां उन्होंने 14 साल की उम्र में खुद से कोड करना सीखा और फिर वह अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को चले गए, जहां उन्होंने ऐप बनाने का काम किया। उन्होंने आखिरकार क्लियरव्यू एआई के साथ सफलता मिली, जिसकी स्थापना उन्होंने रिचर्ड श्वार्ट्ज (जो न्यूयॉर्क के मेयर रुडोल्फ डब्ल्यू गिउलिआनी के सहयोगी थे) के साथ मिलकर की थी। श्वार्ट्ज ने टोन-थाट को निवेश हासिल करने में मदद की थी।

व्यक्ति की पहचान के लिए सॉफ्टवेयर अपलोड की गई तस्वीर की तुलना अपने डेटाबेस में मौजूद 20 बिलियन फोटो से करती है, जिन्हें उपयोगकर्ताओं की सहमति के बिना फेसबुक जैसी साइटों से स्क्रैप किया गया है

क्लियरव्यू एआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक ब्लॉग में टोन-थाट ने फेसियल रिकग्निशन की तकनीक को “चेहरे के लिए गूगल” कहकर हानिरहित दिखाने की कोशिश की है। टोन थाट के अनुसार, उनका एल्गोरिदम परिणाम कीवर्ड के बजाय सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तस्वीरों का उपयोग करता है। किसी व्यक्ति की पहचान करने के लिए यह सॉफ्टवेयर अपलोड की गई तस्वीर की तुलना अपने डेटाबेस में मौजूद 20 बिलियन फोटो से करती है, जिन्हें उपयोगकर्ताओं की सहमति के बिना फेसबुक जैसी साइटों से स्क्रैप किया गया है।

यह सॉफ्टवेयर होटलों व रिटेल स्टोर को बेचने के लिए बनाया गया था और इसका उद्देश्य अपराधियों अथवा अवांछित व्यक्तियों की पहचान करना था। 2020 में इस कंपनी ने अपनी कार्यशैली में कई बदलाव किए और अपराध से लड़ने के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाए। छोटी-मोटी हिंसा और संपत्ति विवादों से लेकर मानव तस्करी और बाल शोषण तक में इसका इस्तेमाल किया गया। इसके बाद क्लियरव्यू ने सरकारों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ विशेष रूप से अनुबंध करने का फैसला किया।

हालांकि अमेरिकी वाणिज्य विभाग की एक एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी द्वारा क्लियरव्यू एआई के एल्गोरिदम को फेसियल रिकॉग्निशन में दुनिया का दूसरा सबसे सटीक माना गया है, लेकिन यह बिल्कुल भी सटीक नहीं है।

उदाहरण के लिए, हिल बताती हैं कि जॉर्जिया में एक 28 वर्षीय अफ्रीकी अमेरिकी व्यक्ति को गिरफ्तार कर किया गया था, क्योंकि क्लियरव्यू एआई के एल्गोरिदम ने उसकी पहचान लुइसियाना में कंसाइनमेंट स्टोर्स में चोरी किए गए क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के रूप में कर दी थी। यह शायद ही पहला मामला हो जब किसी निर्दोष व्यक्ति को एक ऐसी तकनीक के आधार पर लिए गए निर्णय की कीमत चुकानी पड़ी है जो पूरी तरह से सटीक नहीं है। फेसियल रिकग्निशन प्रणालियां अफ्रीकी- अमेरिकियों और महिलाओं की पहचान करते समय गलतियां करने के लिए जानी जाती हैं।

हिल ने एक ऐसे मामले पर भी प्रकाश डाला है जिसमें तकनीकी जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने फेसियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल वयस्क फिल्म अभिनेताओं के असली नाम और पता ढूंढ़ने के लिए किया। पोर्नोग्राफिक वेबसाइट्स पर मिली इन महिलाओं का पीछा करने, उन पर हमला या किसी तरह की चोट पहुंचाने से उस व्यक्ति को रोकने वाला कोई नहीं था। तकनीक गलत हाथों में और अधिक अपराधों को जन्म दे सकती है।

टोन-थाट बताते हैं कि उनके एल्गोरिदम का इस्तेमाल उन लोगों की पहचान में मदद करने के लिए किया गया था, जिन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों की पुष्टि को रोकने की मंशा से 6 जनवरी, 2021 को यूएस कैपिटल पर हमला किया था। यूक्रेन में सरकारी एजेंसियों रूसी आक्रमण के खिलाफ इस तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं, ऐसा भी सुनने में आया है। लेकिन यह बिल्कुल स्पष्ट है कि नियमों के अभाव में यह तकनीक अपूर्ण होने के साथ ही खतरनाक भी है।

हिल अपनी किताब में इस बात पर भी चिंता जताती हैं कि क्या फेसबुक जैसी कंपनियां भविष्य में फिर से इस व्यवसाय में शामिल होंगी। वह चेतावनी भी देती हैं कि सोशल नेटवर्किंग दिग्गज फेसबुक ने ऑगमेंटेड रियलिटी वाले चश्मों में फेसियल रिकग्निशन एल्गोरिदम के इस्तेमाल की संभावना से इनकार नहीं किया है।

लेखिका जाते-जाते अपने पाठकों के सामने एक सवाल छोड़ जाती हैं कि आधुनिक दुनिया में गोपनीयता बनाए रखने का क्या मतलब है? उनके मुताबिक, “जो जानकारी आप अभी मुफ्त में देते हैं, वह हानिरहित लगती तो है लेकिन जब कंप्यूटर इसे बेहतर तरीके से माइन करने लगेंगे तो आपकी परेशानियां बढ़ सकती हैं।” यह ऐसा विषय है जिस पर उपयोगकर्ताओं, कंपनियों और सरकारों को अभी विचार-विमर्श की आवश्यकता है।

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