
आज, यानी 19 नवंबर को दुनिया भर में विश्व शौचालय दिवस मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य बेहतर स्वच्छता और स्वच्छता संबंधी आदतों को बढ़ावा देना तथा बीमारियों की रोकथाम और स्वास्थ्य सुधार में स्वच्छता की भूमिका को समझना है।
संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक सभी के लिए सुरक्षित शौचालय हासिल करने का लक्ष्य रखा है, जो सतत विकास लक्ष्यों का एक प्रमुख हिस्सा है। संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 3.5 अरब लोग बुनियादी स्वच्छता के बिना रह रह रहे हैं और कई बच्चे स्वच्छता की कमी और प्रदूषित पानी के कारण अपनी जान गंवा देते हैं।
विश्व शौचालय दिवस इस मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने का एक अवसर बन गया है, जो खराब परिस्थितियों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
क्या है विश्व शौचालय दिवस 2024 की थीम?
इस साल की थीम 'शौचालय: शांति के लिए एक स्थान' है, जो लोगों के जीवन पर स्वच्छता की कमी के प्रभाव और स्वस्थ और स्थिर समाज के लिए स्थायी स्वच्छता के महत्व पर आधारित है। साल 2030 तक सभी के लिए सुरक्षित शौचालय' सतत विकास लक्ष्य छह के लक्ष्यों में से एक है, लेकिन दुनिया भर में इस लक्ष्य को हासिल करना कठिन लग रहा है।
जब लोग शौचालय का उपयोग नहीं कर पाते हैं, तो वे अक्सर बाहर शौच करते हैं, जिसे खुले में शौच के रूप में जाना जाता है। यह दुनिया भर में कम से कम 41.9 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है और दस्त जैसी बीमारियों के फैलने का कारण बनता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दस्त बच्चों में मृत्यु का एक मुख्य कारण है, स्वच्छता की कमी और गंदे पानी के कारण हर दिन लगभग 1,000 बच्चे मर जाते हैं। स्वच्छता और स्वच्छ पानी तक पहुंच में सुधार करके, हर साल तीन लाख से अधिक बच्चों की जान बचाई जा सकती है।
विश्व शौचालय दिवस के इतिहास की बात करें तो साल 2001 में, सिंगापुर में जैक सिम द्वारा स्थापित विश्व शौचालय संगठन ने शौचालयों को लोगों के लिए अधिक प्रासंगिक और समझने योग्य बनाने के लिए 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस के रूप में चुना।
गैर सरकारी संगठ (एनजीओ) का उद्देश्य शौचालयों के महत्व को सामने लाना था साथ ही इसने 2007 में सस्टेनेबल सैनिटेशन एलायंस से समर्थन हासिल किया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा पानी और स्वच्छता के अधिकार को मौलिक मानव अधिकार के रूप में स्वीकार किए जाने के बाद, 2010 में इस दिन को विश्व शौचालय दिवस के रूप में मान्यता मिली।
भारत की शौचालय क्रांति: स्वच्छ भारत मिशन
भारत में असुरक्षित शौचालयों के कारण 20 फीसदी से अधिक बीमारियां होती हैं और हर दिन 500 बच्चे इससे संबंधित बीमारियों से मरते हैं, लेकिन 2014 में स्वच्छ भारत मिशन शुरू होने के बाद 2019 में ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया।
आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के मुताबिक, स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम)-ग्रामीण के तहत, 11.73 करोड़ से अधिक घरेलू शौचालयों के निर्माण किया गया, जिसके चलते 5.57 लाख से अधिक ओडीएफ प्लस गांव बने हैं। इस पहल ने सार्वजनिक स्वास्थ्य में अहम योगदान दिया। मिशन का आर्थिक प्रभाव भी उतना ही प्रभावशाली था, जिससे ओडीएफ गांवों को स्वास्थ्य सेवा पर हर साल औसतन 50,000 रुपये प्रति परिवार की बचत हुई।
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी ने भी अपने लक्ष्यों को पूरा किया और 63.63 लाख घरेलू शौचालयों और 6.36 लाख से अधिक सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण की सुविधा प्रदान करते हुए अपने लक्ष्यों को हासिल किया। इन प्रयासों के कारण 4,576 शहरों को ओडीएफ का दर्जा हासिल हुआ, जिनमें से कई ओडीएफ प्लस और ओडीएफ प्लस प्लस तक पहुंचे।
इस मिशन ने महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान पर अच्छा असर डाला है, ओडीएफ वाले इलाकों में 93 फीसदी महिलाओं ने बढ़ती सुरक्षा का अनुभव किया। सामूहिक रूप से, एसबीएम ने विश्व शौचालय दिवस और एसडीजी छह के व्यापक लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए एक स्वच्छ, स्वस्थ और अधिक समतापूर्ण भारत की नींव रखी है।
हर किसी को ऐसा शौचालय मिलना चाहिए जो सुरक्षित, स्वच्छ, निजी हो तथा ऐसी प्रणाली से ठीक से जुड़ा हो जो अपशिष्ट को सुरक्षित रूप से अलग करता हो।