संतोषजनक नहीं गोरखपुर में कचरा प्रबंधन की स्थिति, एनजीटी ने समीक्षा के दिए निर्देश

यह मामला राप्ती नदी किनारे फेंके जा रहे कचरे को लेकर था, जिसमें आवेदक ने आरोप लगाया था कि राप्ती नदी के किनारे 500 टन कचरा फेंका गया है, जो नदी में मिल रहा है
कचरे के ढेर से अपने काम के चीजे जमा करते लोग; प्रतीकात्मक तस्वीर; सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट
कचरे के ढेर से अपने काम के चीजे जमा करते लोग; प्रतीकात्मक तस्वीर; सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने  30 जनवरी 2024 को दिए अपने आदेश में कहा है कि गोरखपुर में अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति पर सावधानीपूर्वक समीक्षा करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन के लिए स्पष्ट समयसीमा तय करने की भी बात कही है। साथ ही अदालत ने बजट आबंटित करने के महत्त्व पर भी जोर दिया है। पूरा मामला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का है।

एनजीटी ने अपने आदेश में सभी अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं को एमएसडब्ल्यू नियम, 2016 का पालन करने का भी निर्देश दिया है। इसके अतिरिक्त, ट्रिब्यूनल ने गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट और नगर आयुक्त के साथ-साथ शहरी विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भी अगली सुनवाई पर कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि इस मामले पर अगली सुनवाई 14 मार्च, 2024 को होनी है।

बता दें कि इससे पहले इस मामले में 28 जनवरी, 2024 को नगर निगम और गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। कोर्ट को इस रिपोर्ट में कई खामियां मिली हैं। अदालत के मुताबिक रिपोर्ट में यह नहीं दर्शाया गया है कि वहां ठोस अपशिष्ट नियम, 2016 का उचित तरीके से पालन किया जा रहा है।

गोरखपुर में हर दिन पैदा हो रहा है 434.6 टन कचरा पैदा

इस बारे में साक्ष्यों की कमी को लेकर भी कोर्ट ने रिपोर्ट की आलोचना की है। अदालत का कहना है कि गोरखपुर के नगर आयुक्त का रुख मुख्य रूप से तत्काल उपचारात्मक उपायों को लागू करने के बजाय भविष्य में क्या कदम उठाए जाने चाहिए इस पर केंद्रित है।

गोरखपुर नगर निगम ने रिपोर्ट में दर्शाया है कि यहां हर दिन करीब 434.6 टन कचरा पैदा हो रहा है। लेकिन कोर्ट के मुताबिक यह मात्रा नियोजित अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं और उनकी प्रकृति से मेल नहीं खाती।

कोर्ट के अनुसार वो कचरे के निपटान के लिए चारकोल और बायो-सीएनजी जैसे तरीकों का उपयोग करना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने वास्तव में इसकी जांच नहीं की है कि ये तरीके अच्छे से काम करेंगे या नहीं। हालांकि इस बात का जिक्र किया गया है वहां वर्षों से जमा कचरे में से करीब 120,000 मीट्रिक टन का निपटान कर दिया गया है। लेकिन उन्होंने इस बात का जिक्र नहीं किया है कि अभी भी कितने कूड़े का निपटान करना है।

बता दें कि इस मामले में आवेदक राम मिलन साहनी की शिकायत थी कि राप्ती नदी के नौसड़ अकला बौधा/कलानी तट पर करीब 500 टन कचरा फेंका गया है, जो मुख्य नदी में जा रहा है। उनका आरोप है कि इसकी वजह से बहुत अधिक प्रदूषण हो रहा है और गोरखपुर में रहने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो रही हैं।

बता दें कि इससे पहले 28 अगस्त 2023 को गोरखपुर नगर निगम ने एनजीटी को दिए अपने जवाब में कहा था कि निगम सुथनी गांव में सूखे एवं गीले कचरे को प्रोसेस करने के लिए 500 टीपीडी क्षमता के संयंत्र का निर्माण कर रहा है। इस एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र लागत 2,840.16 लाख रुपए है। इसका करीब 75 फीसदी सिविल कार्य पूरा हो चुका है। इसी तरह गीले कचरे के निपटान के लिए 200 टन प्रति दिन क्षमता के एक बायो-सीएनजी प्लांट का काम भी चल रहा है।

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